MOHABBAT ME HAMARA TAZURBE KHARAB HAI || MICKEY SINGH|| VOICE OF SURAT

Poetry Details

MOHABBAT ME HAMARA TAZURBE KHARAB HAI || MICKEY SINGH|| VOICE OF SURAT –इस पोस्ट मे कुछ शायरी और कविता प्रस्तुत की गयी है जिन्हे लिखा और प्रस्तुत MICKEY SINGH ने किया है।

लफ्ज़ो से हमें बाते घुमाना नही आता
नज़रो से हमे सच को छुपाना नही आता
इन सब कामों में,बहोत होशियार है माशूका हमारी
हमे तो झूठे को भी झूठा बताना नही आता


खामोश खड़े देखा खुद को,
अकेला किसी गुमशुदा राहों में था
सोचा कुछ पल बैठेगे महबूब के साथ,
वो भी कमबखत किसी ओर की बांहो में था


कितना सुकून मिलता अगर हमारे रिशते में
गलतफहमी की डोर बहुत कच्ची होती
ये जो दलीलें दे रही हो,अपने सही होने की
काश ये सारी सच्ची होती
ये इन बेफजूल सवालो को परे रख पूछती
हमारी खैरियत हमसे,पर ये हकीकत तो तब होता
जब तुम बहोत अच्छी होती


ख्वाव तो हसीन लगने लगे है
दुआ करते है तुम्हारा दीदार ना हो
मुलाकातो तक हम खुद संभल जायेंगे
मगर समझायेंगे दिल को,कही तुम से प्यार ना हो
खबर लगी है के बिक चुका है जिस्म,एक अंधेरी रात में
फिर रूह का काँपना तो जायज लगता है,कही वो हमारा यार ना हो


हमारे रहते हुये तुम्हे किसी गैर जिस्म की चाहत होना
अगर नशा नही तो हमारे हाथ में तुम आज ठंडी शराब है
नही उठाना चाहते तुम्हारे किरदार पर सवाल कोई
तुम झूठी हो हमारा तो बस इतना जबाब है
ना कहे कोई हमसे इश्क की खूबसूरती लिखने को
मोहब्बत में हमारे तजुर्बे खराब है


तुम विशाल सागर बनो,नाले का गंदा पानी बनना छोड़ दो
मेरे झूठे किस्से बता कर,ओरो की कहानी बनना छोड़ दो
जान बन सको तो मेरी काशी बाई,गैरो की मस्तानी बनना छोड़ दो


हमारा उनके गालो पे आई जुल्फो को अपनी उंगलियो से हटाना उन्हे पसंद नही आ रहा
चड़ा है उन्हे किसी गैर के जिस्म का सुरूर बता रही है
अपनी कातिल अदाओ से हर शरीफ शख्स को अपनी तलब लगा सकती है
उस वहम को अपना गुरूर बता रही है
कुछ दिनो पहले हम भी थे उनकी जिंदगी के शहंशाह
पर आज वो रकीब को अपना अगला हुजूर बता रही है
जब उनसे रुखसत होने की वजह पूछी
तो उन्हे इतनी शिद्दत से चाहना,वो इसे मेरा कसूर बता रही है


तुम्हारे बिना जीना मुश्किल है
ये बात लिखकर भेजा रकीब को एक पैगाम ही तो है,तुम ऐतबार रखो
अक्सर मिलने जाती थी उससे,आज बिताई साथ उसके शाम ही तो है,नही तुम ऐतबार रखो
ये बताओ आँखो में नमी क्यो है तुम्हारे?
बस निकाह के कागजात पर रकीब का नाम ही तो है,तुम ऐतबार रखो


बहोत वक्त गुजर गया तुमसे मुलाकात नही हुई
जरा मिलने तो आओ,कहती है मेरा मिजाज ठीक नही
ये जो हाफिज़ बने फिर रहे है तुम्हारे,कोई मतलब इन्हे भी होगा
लेकिन ये जो तुम कर रही हो,इतना लिहाज ठीक नही
रहबर बनके तुमने ख्वाब तो मेरे सजाये थे
पर आज हथेली पर नाम किसी गैर का,सच बताऊं ये रिवाज ठीक नही

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