Muzdum Khan | Adbi Dhaba | Islamabad Mushaira | 19th March | Urdu Shayari

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Muzdum Khan | Adbi Dhaba | Islamabad Mushaira | 19th March | Urdu Shayari-इस पोस्ट में मज़दम खान जी द्वारा लिखी कुछ शायरियाँ और गज़ल पेश किये गये है

न सिर्फ ये के जहन्नम खिताब में भी नहीं
अली के मानने वालों के ख्वाब में भी नहीं

ना कोई बीन बजाई ना टोकरी खोली बस एक फोन मिलाने पर सांप बैठा है
कोई भी लड़की अकेली नजर नहीं आती यहां हर एक खजाने पर सांप बैठा है
मुझे अपनी खबर नहीं होती थी एहसास नहीं होता था कोई
मगर इसका यह मतलब नहीं है मेरे पास नहीं होता था कोई
एक ऐसी चुड़ैल की जद में था मैं पिछले बरस की शाम में
जो ऐसी जगह से भी नोचती थी जहां मांस नहीं होता था कोई
मुझे जड़ से उखाड़ने वालों की सांसों का उखड़ना रिवायत है
मैं पेड़ नहीं होता था कोई मैं घास नहीं होता था कोई
ठहराव तो उसमें था ही नहीं रुकती थी निकाल लिया करती थी
मैं कपड़े बदलते सोचता था वह मर्द बदल लिया करती थी
मुझे अपने बनाए रास्तों पर भी जूते पहनना पढ़ते थे
वो लोगों के सीनों पर भी जूते उतार के चल लिया करती थी
मेरे हाथ जबू हो जाते थे मेरे चश्मे स्याह हो जाते थे
मैं उसको नकाब का कहता था वो कालिक मल लिया करती थी
उस औरत ने बेज़ार किया एक बार नहीं सौ बार किया
गानों पर उछाल नहीं पाती थी बातो पर उछाल लिया करती थी
तारीख महल को शहजादी ने रोशन रखा कनिजों से
कभी उनको जला लिया करती थी कभी उनसे जल लिया करती थी
आदाबे तिजारत से भी ना वाकिफ थी शेरो अदब की तरह
मुझे वैसा प्यार नहीं देती थी जैसी गजल लिया करती थी

तुम नहीं उतरोगी मैं उतारूंगा गहराई में
पगड़ी बड़ी होती है दुपट्टे से लंबाई में

ता हुं तु सां सुन्नी हो या सिया बादशाह हो
इश्क तो हंकू जो नहीं थिया बादशाह हो
तो सां मै मरण द अखियां आसां
आपको भी मार दीयां बादशाहां
औ दां घर मौत दे फरिश्ते दे नाल है
जेडा हेक वारी गिया,गिया बादशाहो

दुनिया मेरे खिलाफ थी तू भी खिलाफ है
ये सच नहीं है, है तो मुझे इख्तलाफ है
जो भी करें जहां भी करें जिस तरह करें
उसको मेरी तरफ से सभी कुछ माफ है
भीगे हुए हैं दामन और रुमाल वस्ती
हालांके आसमान पर मतला भी साफ है
आवाज ही सुनी ना हो जिस शख्स ने कभी
उसके लिए मैं जो भी कहूं इंकशाफ है
बदनाम हो गया हूं मोहब्बत के नाम पर
मुझदम ये मेरा सबसे बड़ा ऐतराफ़ है

बस एक मै जिससे सचमुच में दिलबरी की
वरना हर आदमी से उसने दो नंबरी की
जज्बात में भी हमने खुद को अकेला रखा
बाग़ात में भी हमने जोड़ों की मुखबरी की
हर दूसरे से इश्क की तकरीर मत करो
चिड़िया की तरह घोसला तब्दील मत करो

वो जो मेरी ताबकारी में पिघलने लग गया
जो सितारा भी नहीं था वह भी जलने लग गया
बाग होते ही नहीं सहरा नवर्दो के लिए
सीनों से उतरा तो कांटों पर चलने लग गया
खूबसूरत औरतो ने कर दी बिनाई अता
आंखें मलने वाला आखिर हाथ मलने लग गया
दूसरा पांव नहीं रखने दिया मैंने उसे
पहले पांव रखते ही चश्मा उबलने लग गया
चले जाओ मगर इतनी मदद करते हुए जाओ
मैं तन्हा मर ना जाऊं दोअद्दत करते हुए जाओ
चिरागों की जलन से खत्म हो जाती है तारीकी
हसद करते हुए आओ हसद करते हुए जाओ
यही सीखा है गालिब के तनाजूर में यगाना से
सनत करना नहीं आता तो रद्द करते हुए जाओ
वहपलक झपकाने से पहले हदों को तोड़ने वालों
अगर हद में नहीं रहना तो हद करते हुए जाओ
मकां से जा रहे हो ला मकान से तो नहीं मुझदम
खामोशी से ना जो शद्दोमत करते हुए जाओ

मैं नहीं मिला तो वह चीख उठा,’नहीं मिल रहा’
यहाँ मुफ्त में कोई तजुर्बा नहीं मिल रहा
ये खला भी फैलता जा रहा है
चहार सम इसे भी हमारी तरह खु्दा नहीं मिल रहा
तेरे साथ भी मुझे शायराना हजूम से
बड़े दुख की बात है रास्ता नहीं मिल रहा
यहां एक दूसरे तक को लोग न मिल सके
तेरा और मेरा तो फलसफां नही मिल रहा
मुझे शेयर खाने से रोक मत है निशानची
मैं बलोच हूं मुझे असला नहीं मिल रहा

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