Ram | Psycho Shayar |

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इस कविता को अभि मुन्डे द्वारा लिखा और प्रस्तुत किया गया है

दस तक गिनूंगा
राम लिखते ही पढते ही सुनते ही देखते ही या दिखते ही
मन में जो पहला विचार आता है,,उसे बांध कर रखिये पूछूंगा
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८
नौ नौ नौ हाथ काट कर रख दूंगा,ये नाम समझ आ जाये तो
कितनी दिक्कत होगी पता है राम समझ आ जाए तो
भाई राम-राम तो कह लोग पर राम सा दुख भी सहना होगा
पहली चुनौती यह होगी की मर्यादा में रहना होगा
और मर्यादा में रहना मतलब कुछ खास नहीं कर जाना है
बस,,बस त्याग को गले लगाना है और अहंकार जलाना है
अब अपने रामलला की खातिर इतना ना कर पाओगे
अरे शबरी का झूठा खाओगे तो पुरुषोत्तम कहलाओगे
काम क्रोध के भीतर रहकर तुमको शीतल बना होगा
बुद्ध भी जिसकी छांव में बैठे हैं वैसा पीपल बनना होगा
बनना होगा यह सब कुछ और वह भी शून्य में रहकर प्यारे
तब ही तुमको पता चलेगा,थे कितने अद्भुत राम हमारे
सोच रहे हो कौन हूं मैं? चलो बात ही देता हूं तुमने ही तो नाम दिया था मैं पागल कहलाता हूं
नया-नया हूं यहां पर दो ना पहले किसी को देखा है
वैसे तो हूं त्रेता से है मुझे किसी ने कलयुग भेजा है
भई बात वहां तक फैल गई है कि यहां कुछ तो मंगल होने को है
के भरत से भारत हुए राज्य में ,सुना है राम जी आने को है
बड़े भाग्यशाली हो तुम सब,नही वहां पे सब यही कहते हैं
कि हम तो राम राज्य में रहते थे, पर इन सब में राम रहते हैं
यानि तुम सब में राम का अंश छुपा है,नही मतलब वो……
तुममे वो आते है रहने ? सच है या फिर गलत खबर ?
ग़र सच ही है,तो क्या कहने
तो सबको राम पता ही होगा,घर के बडो ने बताया होगा
तो बताओ…… बताओ,फिर की क्या है राम ?
बताओ,फिर की क्या है राम ? बताओ
अरे पता है तुमको क्या है राम ?
या बस हाथ धनुष तर्कश में बांण,या फिर वन में जिन्होंने किया गुजारा
या फिर कैसे रावण मारा लक्ष्मण जिनको कहते हैं भैया जिनकी पत्नी सीता मैया
फिर ये तो हो गई वही कहानी एक था राजा एक थी रानी
क्या सच में तुमको राम पता है ? या वह भी आकर हम बताएं ?
बड़े दिनों से हूं यहां पर सब कुछ देख रहा हूं कब से प्रभु से मिलने आया था मैं उन्हें छोड़कर मिला हूं सबसे
एक बात कहूं ग़र बुरा ना मानो ……
नही तुम तुरंत ही क्रोधित हो जाते हो, पूरी बात तो सुनते भी नहीं सीधे है घर पर आ जाते हो
ये तुम लोगो के … नाम जपो में पहले सा आराम नहीं – २
इस जबरदस्ती के जय श्री राम में सब कुछ है… बस राम नहीं !
यह राजनीति का दाया बाया जितना मर्जी खेलो तुम
दाया बाया … अरे दाया बाया
ये तुम्हारी वर्तमान प्रादेशिक भाषा में क्या कहते हैं उसे
हां … लेफ्ट एंड राइट
यह राजनीति का दाया बाया जितना मर्जी खेलो तुम
चेतावनी को लेकिन मेरी अपने जहन में डालो तुम
निजी स्वार्थ के खातिर ग़र कोई राम नाम को गाता हो
तो खबरदार अगर जुर्रत की और मेरे राम को बांटा तो …
भारत भू का कवि हूं मैं,तभी निडर हो कहता हूं
राम है मेरी हर रचना में मैं बजरंग में रहता हूं
भारत की नींव है कविताएं,और सत्य हमारी बातों में
तभी कलम हमारी तीखी और साहित्य हमारे हाथों में
तो सोच समझ कर राम कहो तुम,ये बस आतिश का नारा नहीं
जब तक राम हृदय में नहीं,तुमने राम पुकार नहीं
राम कृष्ण की प्रतिभा पर पहले भी खड़े सवाल हुए
ये लंका और ये कुरुक्षेत्र यूं ही नहीं थे लाल हुए
अरे प्रसन्न हंसना भी है और पल-पल रोना भी है राम
सब कुछ पाना भी है और सब पाकर खोना भी है राम
ब्रह्मा जी के कुल से होकर जो जंगल में सोए हो
जो अपनी जीत का हर्ष से छोड़ रावण की मौत पर रोए हो
शिवजी जिनकी सेवा खातिर मारुति रूप में आ जाए
शेषनाग खुद लक्ष्मण बनकर जिनके रक्षक हो जाए
और तुम लोभ क्रोध अहंकार छल कपट सीने से लगाकर सो जाओगे
तो कैसे भक्त बनोगे उनके? कैसे राम समझ पाओगे ?
अघोर क्या है पता नहीं और शिव जी का वरदान चाहिए
ब्रह्मचर्य का इल्म नही…इन्हे भक्त स्वरूप हनुमान चाहिये
भगवा क्या है क्या है पता लहराना सबको होता है
भगवा क्या है वह जाने जो भगवा ओढ के सोता है
राम से मिलना… राम से मिलना… राम से मिलना है ना तुमको ?
निश्चित मंदिर जाना होगा पर उससे पहले भीतर जा संग अपने राम को लाना होगा
जय सियाराम …और हां…
अवधपुरी का उत्सव हैकोई कसर नहीं… सब खूब मानना
मेरे प्रभु है आने वाले रथ को उनके खूब सजना
वह द्वापर में कोई राह तके है मुझे उनको लेनेजाना है
चलिए तो फिर मिलते हैं हमें भी अयोध्या आना है
जय सियाराम फिर से

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