TEHZEEB HAFI@AndaazEBayaanAur-Official -2022

Poetry Details-

TEHZEEB HAFI@AndaazEBayaanAur-Official -2022-इस पोस्ट मे कुछ मशहुर नग्मे , शायरियाँ और कुछ नई गज़ले पेश की गयी है जो कि Tehzeeb Hafi जी के द्वारा लिखी एवं प्रस्तुत की गयी है।

गलत निकले सब अंदाजे हमारे,कि दिन आये नही अच्छे हमारे
सफर से बाज़ रहने को कहा है,किसी ने खोल कर तश्मे हमारे
तेरे मौसम बहुत अंदर तक आया,खुले रहते थे दरवाजे हमारे
अगर हम पर यकी आता नही तो कही लगवा को अंगूठे हमारे
बशारत दी है आजादी की उसने,हवा मे फेंक कर पिंजरे हमारे
उस अब्रे मेहरबां से क्या शिकायत,अगर बर्तन नही भरते हमारे
महीने बाद बेटी से मिला हुँ,हमे ले दे गये झगड़े हमारे
गलत निकले सब अंदाजे हमारे,कि दिन आये नही अच्छे हमारे

कदम रखता है जब रस्तो पे यार आहिस्ता आहिस्ता
तो छंट जाता है सब गर्दो गुबार आहिस्ता आहिस्ता
भरी आँखो से होके दिल में जाना सहल थोड़ी है
चढे दरियाओ को करते है पार आहिस्ता आहिस्ता
वो कहता है हमारे पास आओ पर सलीके से
जैसे आगे बढती है कतार आहिस्ता आहिस्ता
इधर कुछ औरते दरवाजे पर दौड़ी हुई आयी
उधर घोड़ो से उतरे शाह सवार आहिस्ता आहिस्ता
किसी दिन करखाना-ए-गज़ल मे काम निकलेगा
पलट आयेगे सब बेरोजगार आहिस्ता आहिस्ता
तेरा पैकर खुदा ने भी तो फुरसत में बनाया था
बनायेगा तेरे जेवर सुनार आहिस्ता आहिस्ता

नही आता किसी पे दिल हमारा,वही कश्ती वही साहिल हमारा
तेरे दर पर करेंगे नौकरी हम,तेरी गलियाँ है मुस्तकबिल हमारा
कभी मिलता था कोई होटलो मे,कभी भरता था कोई बिल हमारा

तुम अकेली नही हो सहेली जिसे अपने वीरान घर को सजाना था
और एक शायर के लफ्जो को सच मान कर उसकी पूजा मे दिन काटने थे
तुम से पहले भी ऐसा ही एक ख्वाब झूठी तस्सली मे जां दे चुका है
तुम्हे भी वो एक दिन कहेगा के वो तुम से पहले किसी को जबां दे चुका है
वो तो शायर है,और साफ ज़ाहिर है,शायर हवा की हथेली पे लिखी हुई
वो पहेली है जिसने अबध और अज़ल के दरीचो को उलझा दिया है
वो तो शायर है,शायर तमन्ना के सेहरा मे रम करने वाला हिरन है
शोब्दा शास सुबहो की पहली किरन है,अदब गाहे उलफ्त का मेमार है
और खुद अपने खवावो का गद्दार है,
वो तो शायर है,शायर को बस फिक्र लोह कलम है,उसे कोई दुख है
किसी का ना गम है,वो तो शायर है,शायर को क्या खौफ मरने से?
शायर तो खुद शाह सवार-ए- अज़ल है,उसे किस तरह टाल सकता है कोई
के वो तो अटल है,मै उसे जानती हुँ सहेली ,वो समंदर की वो लहर है
जो किनारो से वापस पलटते हुये
मेरी खुरदरी एडियो पे लगी रेत भी और मुझे भी बहा ले गया
वो मेरे जंगलो के दरख्तो पे बैठी हुयी शहद की मक्खियाँ भी उड़ा ले गया
उसने मेरे बदन को छुआ और मेरी हडडियो से वो नज्मे कसीदी
जिन्हे पढ के मै काँप उठती हुँ और सोचती हुँ के ये मसला दिलबरी का नही
खुदा की कसम खा के कहती हुँ,वो जो भी कहता रहे वो किसी का नही
सहेली मेरी बात मानो,तुम उसे जानती ही नही,वो खुदा ए सिपाहे सुखन है
और तुम एक पत्थर पे नाखुन से लिखी हुई,उसी की ही एक नज़्म हो

 

 

दिलो दिमाग मे हजार वस वसे लिये किसी स्याह धुंध से अटी हुई शबे शिकस्त मे
तेरी गुलाम तेरा नाम लेके रास्तो मे सो गई है,तेरे इंतजार में
नजूमियो को तेरे बाप की घड़ी जमीन मे दबा के तेरे लौटने का वक्त मापना था
उसको अपनी पेश गोईयो का दुख निगल गया,चरागे इंतजार बुझ के राख हो गया है
चाँद ढल गया,बरामदो से उड़ने वाली धूल ने तेरी ज़ईफ माँ की जुल्फ देख ली
तेरी बहन सुहागनो मे और नागिनो मे फर्क करते करते थक गई
हथेलियो पे तेरे इंतजार का गुबार जम गया,तेरा कहीं पता नही
ना जाने कितने दिन से बस्तियो मे तेरे नाम की हवा नही घुली
कोई हमारे बिस्तरो मे साँप छोड़ कर चला गया है और हमारी आँख तक नही खुली
मेरे लिए तमाम उम्र काला ए इल्म फिल्म था, मगर तेरी जुदाइयो के साए में अजीब खौफ दिल में फैलते चले गए
तेरे बगैर घर में कब सुकून है, छतों पर बूम उड़ रहे है, टंकियों में खून है।
सितारें कैद हो गए है चांद पर ग्रहण है। कि अब यहां पे हर चमकने वाली चीज बैन है।
दीयों के मुंह पर टेप है, ये रोशनी का रेप है। मैं और कितनी देर तेरी नर्क में जलूं खुदा ए खुदपरस्त,
कि खुदकुशी से पहले एक बात कहना चाहूंगी, ” रहे वफ़ा में मैने कब तेरा कहा नही किया,
सुना है तूने अपने बाकी बीबीयो के साथ भी यही किया ” . ….

 

 

सुबहें रौशन थी और गर्मियों की थका देने वाले दिनों में
सारी दुनिया से आज़ाद हम मछलियों की तरह मैली नहरों में गोते लगाते
अपने चेहरों पे कीचड़ लगाकर डराते थे एक दूसरे को
किनारों पर बैठे हुए हमने जो अहद एक दूसरे से लिये थे
उसके धुँधले से नक्शे आज भी मेरे दिल पर कहीं नक्श है
ख़ुदा रोज़ सूरज को तैयार करके हमारी तरफ़ भेजता था
और हम साया-ए-कुफ़्र में इक दूजे के चेहरे की ताबिंदगी की दुआ माँगते थे
उस का चेहरा कभी मेरी आँखों से ओझल नहीं हो सका
उसका चेहरा अगर मेरी आँखों से हटता तो मैं काएनातों में फैले हुए उन मज़ाहिर की तफ़्हीम नज़्मों में करता
कि जिस पर बज़िद है ये बीमार
जिन को खुद अपनी तमन्नाओं की आत्माओं ने इतना डराया
कि इनको हवस के क़फ़स में मोहब्बत की किरनों ने छूने की कोशिश भी की तो ये उस से परे हो गए
इनके बस में नहीं कि ये महसूस करते एक मोहब्बत भरे हाथ का लम्स
जिनसे इंकार कर कर के इनके बदन खुरदुरे हो गए
एक दिन जो ख़ुदा और मोहब्बत की एक क़िस्त को अगले दिन पर नहीं टाल सकते
ख़ुदा और मोहब्बत पर राए-ज़नी करते थकते नहीं
और इस पर भी ये चाहते हैं कि मैं इनकी मर्ज़ी की नज़्में कहूँ
जिन में इन की तशफ़्फी का सामान हो, आदमी पढ़ के हैरान हो
जिस को ये इल्म कहते है, उस इल्म की बात हो
फ़लसफ़ा, दीन, तारीख़, साइंस, समाज, अक़ीदा, ज़बान-ए-म‌आशी, मुसावात,
इंसान के रंग-ओ-आदात-ओ-अतवार ईजाद, तक़लीद, अम्न, इंतिशार, लेनिन की अज़मत के किस्से
फ़ितरी बलाओं से और देवताओं से जंग, सुल्ह-नामा लिए तेज़ रफ़्तार घोड़ों पर सहमे सिपाही
नज़िया-ए-समावात में कान में क्या कहा और उसकी जुराबों के फीतों की डिबिया
कौन था, जिस ने पारे को पत्थर में ढाला
और हर्शल की आँखे जो बस आसमानों पर रहती,
क्या वो इंग्लैंड का मोहसिन नहीं
समंदर की तस्ख़ीर और अटलांटिक पे आबादियाँ, मछलियाँ कश्तियों जैसी क्यों है
और राफेल के हाथ पर मट्टी कैसे लगी,
ये सवाल और ये सारी बातें मेरे किस काम की
पिछले दस साल से उसकी आवाज़ तक मैं नहीं सुन सका
और ये पूछते है कि हेगेल के नज़दीक तारीख़ क्या है

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