Ikram Aarfi | Harf Zaar Mushaira | 15 Jan 2023

Poetry Details

इस पोस्ट में स्टोरिया आर्ट गैलरी फ़ैसलाबाद में आयोजित हर्फ़ ज़ार मुशायरा में इकराम अर्फ़ी द्वारा पेश की गयी शायरिया प्र्स्तुत है

तेरी आंखों की तमन्ना से एक किनारा कर लूं
गैर मुमकिन है की मिट्टी को सितारा कर लूं
इस कदर कहते मोहब्बत है कि दुनिया वाले
एक मुट्ठी भी अगर दें तो गुजारा कर लूं
तुम किसी चांद के परतो को नजर से रोको
मैं किसी फूल की पत्ती को इशारा कर लूं
जलती बुझती हुई आंखों से दारीच्चा देखूं
आखरी बार मोहब्बत का नजारा कर लूं
रेखता कैसी मोहब्बत का सबब है ‘इकराम’
लखनवी यार की गाली भी गवांरा कर लूं


घर को संवारने की अजब ये तरंग है
बाहर चटाई भी नहीं अंदर पलंग है
तकबीर कर रहा हूं के आफाक ले उड़े
हाथों में मेरे डोर नहीं है पतंग है
आंखें मुती हो तो दिलों की खबर भी लूं
आंखों से मेरी जंग थी आंखों से जंग है
मुमकिन नहीं के नाखून ए दिल से जुदा हो गोस्त
जो रंग बेदिली का वही दिल का रंग है
जानेजहा की तेज तबीयत है क्या करें
जानेजहा को दिल में उतरने का ढंग है
इकराम नाचता है कोई देखता नहीं
दीवाना आदमी है सरासर मलंग है


ये शाखो में तय सब्ज रुतो की जय
एक जमीनज्यादा जैसे पर्वत है
मुझे ऐसे बेकार तेरे जैसे शह
आए दुख कीदीवार,थोड़ी सी तो ढह
लोरी देती है दो हाथों की लय
सिमटी आंखों में सारे बदन की मय

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