Na Nar Mein Koi Ram Bacha| ना नर में कोई राम बचा| by Shubham Shyam

Poetry Details

ना नर में कोई राम बचा,नारी में ना कोई सीता है
ना धरा बचाने की खातिर,विष कोई शंकर पीता है
ना श्री कृष्ण सा धर्म अधर्म का किसी में ग्यान बचा है
ना हरीश चंद्र सा सत्य किसी के अंदर रचा बसा है
ना गौतम बुद्ध सा धैर्य बचा,ना नानक जी का परम त्याग
बस नाच रही है नर के भीतर,प्र्तिशोध की कुटिल आग
फिर बोलो कि उस स्वर्णिम युग का क्या अंश बाकि तुम में
कि किस की धूनी में रमकर तुम फूले नही समाते हो
तुम स्वयं को श्रेष्ठ बताते हो?
तुम भीष्म पितामह की भांति अपनी ही जिद पर अड़े रहे
तुम अपने धर्म को श्रेष्ठ बता दुर्योधन के संग खड़े रहे
तुम शकुनि के षडयंत्रो से घ्रणित रहे तुम दंग रहे
तुम कर्ण के जैसे होकर भी दुर्योधन दल के संग रहे
एक दुर्योधन फिर सत्ता के लिए युद्ध में जाता है
कुछ धर्मांधो के अंदर फिर थोड़ा धर्म जगाता है
फिर धर्म की चिलम में नफरत की चिंगारी से आग लगाकर
चरस का धुंआ फूंक-फूंक मतवाले होते जाते हो
तुम स्वयं को श्रेष्ठ बताते हो ?

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