Jism Par Nishaan – Vinod Arya

Poetry Details:-

Jism Par Nishaan -जिस्म पर निशान-एस पोस्ट में इस कविता के अलावा और भी २-३ कविताएँ और शायरी लिखी गयी है,जो कि Vinod Arya के द्वारा लिखी और प्रस्तुत की गयी है, Wordsutra यु-टयुब चैनल पर प्रदर्शित किया गया है।

बात बेबात सबको हँसाने वाले दोस्त
कितना बदल गये अब कमाने वाले दोस्त
उनके लेहजे से पैसो की बू आती है
हाथ मिलाते है आजकल गले लगाने वाले दोस्त
किसे अपना कहु कि मेरे हाल पर
रोता दुशमन देखा और कुछ मुस्कराने वाले दोस्त
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कमीज जो फटी है सिलवा देगी वो
हर खोई चीज दिलवा देगी वो
मौत के ये केहने पर मैने जीना छोड दिया
उसने कहा था कि माँ से मिलवा देगी वो
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एक दोस्त के जीतने पर दूसरा हार नही जाता
इन छोटी छोटी बातो से प्यार नही जाता
चली जाती होगी तमाम परेशानिया मगर
फकत माथा चूमने से बुखार नही जाता
मेरी मौत के बारे बताना उसको मिलकर
सुना है उसके गाँव में तार नही जाता
अपनी इज्जत बेचकर गया था उससे मिलने
हाँ, एक बार गया था बार बार नही जाता
जब तूने बनाया सबको तो फिर ये फासला कैसा
क्यो तेरे बुत पूजने चमार नही जाता
पूरे हफ्ते तो जाता है आदमी घर अपने
एक रोज की बात है इतवार नही जाता
तुम्हारी गल्तिओ पर चिल्लाऊगा तुम्हारे पैर छूकर
ऐसे गालियाँ देने से संस्कार नही जाता
शाम होते उसका घर कितना दिलकश लगता है
तुम्हे अच्छा नही लगता,चलो यार नही जाता
लुटने पर आबरू हर कोई मिलने जाता है
बडी असमंज्स की बात है पेहरेदार नही जाता
तेरे हिज्र का मारा वो हिंदु भी रोजा रखता है
वो कायदे नही जानता सो इफ्तार नही जाता
जब भी मिलता है वो मेरी औकात दिखाया करता है
मेरा उससे मिलना कभी बेकार नही जाता
क्यो किसी सुबह उनके घर से चीख सुनाई नही देती
क्या हर सुबह उनके घर अखबार नही जाता
ये किसकी गजले तुम सीने से लगाये रखते हो
आर्या क्या लिखता है कि खुमार नही जाता
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ये जो रिशतो मे आई है वही खार हुँ मै
तुमने पेहचाना,तुम्हारा यार हुँ मै
लगा दी है आग जिसने पूरे शहर में
एक बिका हुआ सा अखबार हुँ मै
क्यो वजह पूछते हो बाहार ना निकलने की
तुम्ही ने तो कहा था गवांर हुँ मै
ग्यारह महीने करता हुँ बहनो का इंतजार
राखियाँ बनाने का करोबार हुँ मै
ख्वाहिश थी कि वो माथा चूमे मेरा
मैने झूठ कह दिया कि बीमार हुँ मै
इधर मै,उधर तुम और बीच में ये महामारी
तुम से मिल नही सकता कितना लाचार हुँ मै
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सारे किस्से तुमको बताऊंगा एक दिन
खुद को बर्बादी से बचाऊंगा एक दिन
वो बेहरे भी रखेंगे कानों पर हाथ
इतनी जोर से चिल्लाऊंगा एक दिन
देख कर सूरज भी जलेगा बहुत
जुगनुओ से रोशनी लाऊंगा एक दिन
परछाई भी पीछा छोड देगी मेरा
इस कदर तन्हा हो जाऊंगा एक दिन
फोन पर खामोशी गर बढने लगे
आर्या की बाते सुनाऊंगा एक दिन
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पैदल सफर करता है ,बटुए में शहर रखता है
आदमी थक जाता है,तब गोद में सर रखता है
मरना तो है उसे,बीमारी या भुख से
कंधो पर बच्चा होता है,शीशी में जहर रखता है
बस एक तुम्हारा हिज्र,जिसका हल नही कोई
बाकी तो मेरी खैरियत चारागर रखता है
कभी किसी शायर को तडपा के देखिये
क्या खूब गजल लिखता है,क्या खूब बेहर रखता है
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मौत से मुझे मिला दे यार
रकीब की तस्वीर दिखा दे यार
वफा अगर से गुनाह है तो
मुझे इसकी सजा दे यार
जिस्म पर निशां नये से है
मेरे आगे तो छुपा दे यार
नाखून खरोचने लगे है बदन
मुझे खुद से बचा दे यार
इबादत असर नही करती
कोई नया खुदा दे यार
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तुमने बेच दिया है जमीर तो मजबूरियो का हवाला दो
मै ठंडे फर्श पर भी सोता हुँ तो पगडी सर पर रहती है

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