इंसान हो? Insaan Ho? –ये सुंदर कविता लिखी और सुनाई Pallavi Mahajan के द्वारा है,इस कविता मे Body-Shaming की जो समस्या है उसके बारे मे बहुत ही अच्छे ढंग से बताया गया है।
बस नही जिस पर यहा
उसके लिये बाते सहे
कब तक नही बोले यहा
कब तक यहा सुनता रहे
वैसे तो सब कुछ ठीक है
रंग पर है सांवलां
वैसे तो सब कुछ ठीक है
रंग पर है सांवलां
पूछो बदल सकता है क्या?
मैने कही पर था पढा
बाहार से वो कैसा दिखे
उसके तो बस मे है नही
कैसे हुआ फिर फैसला
वो गलत है या है सही
अरे! देखो कितना गोल है
अरे! देखो कितना गोल है
कुछ नही करता यहा
अरे तुम क्यो ऐसे हो सुनो
खाते हो शायद बस हवा
रखता है वो भी आइना
उसको भी दिखता है यहा
उसने ना की कोशिश कोई
क्या सोच कर तूने कहा
उसने ना की कोशिश कोई
क्या सोच कर तूने कहा
बात ऐसी हो सुनो
तुम तंज कसना छोड दो
तुमसे ना मागी राय जब
मुफ्त ना बाटा करो
बात ऐसी हो सुनो
तुम तंज कसना छोड दो
तुमसे ना मागी राय जब
मुफ्त ना बाटा करो
बात मेरी मान लो
इंसा है वो इंसा कहो
रंग कैसा रूप कैसा
ये नही चर्चा करो
बात मेरी मान लो
इंसा है वो इंसा कहो
रंग कैसा रूप कैसा
ये नही चर्चा करो
उसके हुनर को जान लो
तुम सक्शियत पेहचान लो
उसके हुनर को जान लो
तुम सक्शियत पेहचान लो
इंसान हो..इंसान हो.
इंसान हो तो इंसान को भी
अब जरा सम्मान दो
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