Toh Pata Chale-तो पता चले-Jai Ojha

Poetry Details:-

Toh Pata Chale-तो पता चले-ये कविता Jai Ojha के द्वारा लिखी एवं प्रस्तुत की गयी है ये Breakup poetry है

जो कभी तुम मोहब्बत करो तो पता चले
शिद्दत से किसी को चाहो तो पता चले
युं इश्क तो किया होगा तुमने कई दफा
लेकिन कभी डूब के चाहो और बिखर जाओ तो पता चले
जो कभी मोहब्बत करो तो पता चले
क्या याद है तुमको हमारी मोहब्बत का वो जमाना
वो सर्द रातो मे मेरा रजाई मे घुस कर मेरा तुमसे घंटो बतियाना
अरे कितने झूठे थे तुम्हारे वो वादे तुम्हारे वो मैसेजेस
जो वो चैट पढकर दोबारा मुझसे नजरे मिला सको तो पता चले
जो कभी मोहब्बत करो तो पता चले
और जो लव यु फोर एवर लिख दिया करती हमेशा आखिर में
तो कभी फुर्सत मे आ कर उस फोर एवर शब्द के मायने
मुझे समझा जाओ तो पता चले
जो कभी मोहब्बत करो तो पता चले
खैर अब मेरे काँल लोग्स मे भी कहाँ नजर आती हो तुम
वो सुबह चार बजे तक चलने वाला फसाना
अब शायद रकीब को ही सुनाती हो तुम
बाते तो वो भी करता होगा बेहिसाब तुमसे
लेकिन कभी सर्द रात मे फोन चार्ज मे लगा कर
खड़े खड़े तुमसे बतिया सके तो पता चले
जो कभी मोहब्बत करो तो पता चले
कभी जो तलब हो तलाश हो मेरी तरह उसे भी तुम्हारी उसे अगर
तो ब्लाँक हो के फेसबुक पे बार बार तुम्हारा नाम ड़ाल कर सर्च करता रहे
तो पता चले ,जो कभी मोहब्बत करो तो पता चले
खैर मै भी जानता हुं वो भी नही देख पाता होगा तुम्हे जख्मी होते हुए
अरे आखिर कोई कैसे देख ले तुम्हारे कोमल बदन पे चोट लगते हुऐ
अरे मरहम तो वो भी बना होगा तुम्हरे घाव पे
लेकिन कभी तुम्हारी उंगली कट जाने पर अपनी जीभ तले दबा सके
तो पता चले ,जो कभी मोहब्बत करो तो पता चले
जिंदगी तो उसने भी माना होगा तुम्हे
लेकिन कभी खुदा मान के इबादत कर सके तो पता चले
जो कभी मोहब्बत करो तो पता चले
खैर अब तो जाती हो तुम उसके संग दो जहानो में
घूमती हो उसका हाथ थामे शहर शहर ठिकानो मे
लेकिन है हिम्मत तुममे अगर तो जहाँ किया था
मुझ से ता उम्र साथ निभाने का वादा कभी उस वीराने
हो आओ तो पता चले,जो कभी मोहब्बत करो तो पता चले
हमारी मोहब्बत को गुमनाम तो कर दिया है तुमने हर जगह से
लेकिन वो दरख्त जहाँ पर गुदा है नाम मेरा और तुम्हारा
जाओ और उसे बेनाम कर आओ
तो पता चले ,जो कभी मोहब्बत करो तो पता चले
अब तो उसके संग कई राते भी बिताई होगी तुमने
सिरहाने उसके बैठकर वो कहानियाँ भी सुनाई होगी तुमने
सुबह की चाय भी जो पीती हो उसके साथ अक्सर
बची हो हलक में थोड़ी सी वफा अगर
तो जो मेरे मुह लगी काँफी,जो मेरे साथ बैठ कर पीया करती थी
उस काँफी का एक घूँट भी अपने गले से उतार कर दिखा सको
तो पता चले,जो कभी मोहब्बत करो तो पता चले
जो कभी तुम जानना चाहो गम-ए- तन्हाई क्या है
तो उस कैफै मे जैसे मै जाता हुँ अकेले जाके इक शाम बिता आओ
तो पता चले,जो कभी मोहब्बत करो तो पता चले
तुम्हे तो शायद लगता होगा कि बर्बाद हो गया हुँ मै
लेकिन नही ,इस गम मे रह कर हर गम से आजाद हो गया हुँ मै
अरे कितना चैन और सुकुन है उस नींद मे
जो वो तकिया आसुओ से गीला करके फिर पलट के उसपे सो सको
तो पता चले,जो कभी मोहब्बत करो तो पता चले
बड़ा मुश्किल है जमाने से अपना गम छुपाना
जो सुबह उठ कर इक झूठी मुस्कान लिये,काम पर निकल सको
तो पता चले,जो कभी मोहब्बत करो तो पता चले
युं तो तुमने भी जता दिया कि तुम्हे दर्द नही होता
और मै भी हुँ बेफिक्र इतना कि मुझे भी फर्क नही पढता
कोई अफसोस नही है मुझे तुम्हारे जाने का अब
अरे तुम जाओ यार देर से ही सही तुम्हे मेरी अहमियत
तो पता चले,जो कभी मोहब्बत करो तो पता चले
लेकिन याद रखना इतना बहुत आसान है रिशते तोड़ देना
किसी को छोड़ देना,जो ता उम्र किसी एक के होकर निभा सको
तो पता चले ,जो कभी मोहब्बत करो तो पता चले

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *