Tehzeeb Haafi| islambad Mushaira || New Mushaira 2022

Poetry Details:

Tehzeeb Haafi| islambad Mushaira || New Mushaira 2022-इस पोस्ट मे कुछ नग्मे और शायरियाँ पेश की गयी है जो कि Tehzeeb Hafi जी के द्वारा लिखी एवं प्रस्तुत की गयी है

मैने जो कुछ भी सोचा हुआ है,मै वो वक्त आने पे कर जाऊंगा
तुम मुझे ज़हर लगते हो और मै किसी दिन तुम्हे पी के मर जाऊंगा
तू तो बीनाई है मेरी,तेरे अलावा मुझे कुछ भी दिखता नही
मैने तुझको अगर तेरी घर पे उतारा तो मै कैसे घर जाऊंगा?
मै खला हुँ,खलाओ का नेमुल्बदल खुद खला है तुम्हे क्या पता?
मै तुम्हारी तरह कोई खाली जगह तो नही हुँ कि भर जाऊंगा
चाहता हुँ तुम्हे और बोहोत चाहता हुँ, तुम्हे खुद भी मालूम है
हाँ..अगर मुझसे पूछा किसी ने तो मै सीधा मुँह पे मुकर जाऊंगा

उसके चाहने वालो का आज उसकी गली मे धरना है
यही पे रुक जाओ तो ठीक है,आगे जाके मरना है
रुह किसी को सौंप आये हो तो ये जिस्म भी ले जाओ
वैसे भी मैने इस खाली बोतल का क्या करना है

तुझे भी साथ रखता और उसे भी अपना दीवाना बना लेता
अगर मै चाहता तो दिल मे कोई चोर दरवाजा बना लेता
मै अपने ख्वाब पूरे कर के खुश हुँ,पर ये पछतावा नही जाता
के मुस्तकविल बनाने से तो अच्छा था,तुझे अपना बना लेता

घर मे भी दिल नही लग रहा,काम पर भी नही जा रहा
जाने क्या खौफ है?जो तुझे चूम कर भी नही जा रहा
रात के तीन बजने को है,यार ये कैसा महबुब है?
जो गले भी नही लग रहा और घर भी नही जा रहा

अब मज़ीद उससे ये रिशता नही रखा जाता
जिससे इक शख्स का पर्दा नही रखा जाता
एक तो बस मे नही,तुझसे मोहब्बत ना करूं
और फिर हाथ भी हल्का नही रखा जाता

तू भी कब मेरे मुताबिक मुझे दुख दे पाया
किसने भरना था ये पैमाना अगर खाली था
एक दुख ये के तू मिलने नही आया मुझसे
एक दुख ये के उस दिन मेरा घर खाली था

ये दुख अलग है कि उससे मैं दूर हो रहा हूँ
ये ग़म जुदा है वो ख़ुद मुझे दूर कर रहा है
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूँ मैं ताज़ा ग़ज़लें
ये तेरा ग़म है जो मुझको मशहूर कर रहा है

मुझसे मत पूछो कि मुझको और क्या क्या याद है
वो मेरे नज़दीक आया था बस इतना याद है
यूँ तो दश्ते-दिल में कितनों ने क़दम रक्खे मग़र
भूल जाने पर भी एक नक़्श-ए-कफ़-ए-पा याद है
उस बदन की घाटियाँ तक नक़्श हैं दिल पर मेरे
कोहसारों से समंदर तक को दरिया याद है
मुझसे वो काफ़िर मुसलमाँ तो न हो पाया कभी
लेकिन उसको वो तरजुमे के साथ कलमा याद है

उसी ने दुश्मनो को बा खबर रखा हुआ है
ये तू ने जिसको अपना कह के घर रखा हुआ है
मैं पागल तो नहीं के उससे मै तनख्वा मांगू
यही काफी है उसने काम पर रखा हुआ है
मेरे कांधे पे सर रहने नहीं देगा किसी दिन
यही जिसने मेरे कांधे पे सर रखा हुआ है

उसी ने दुश्मनो को खबर रखा हुआ है
ये तू ने जिसको अपना के के घुर रखा हुआ है
मेरे कांधे पे सर रहने नहीं दे गा किसी दिन

ये मैने कब कहा के मेरे हक मे फैसला करे
अगर वो मुझसे खुश नही है तो मुझे जुदा करे
मै उसके साथ जिस तरह गुजारता हुं जिंदगी
उसे तो चाहिये के मेरा शुक्रिया अदा करे
बना चुका हुँ मै,मोहब्बतो के दर्द की दवा
अगर किसी को चाहिये तो मुझसे राब्ता करे
मेरी दुआ है,और इक तरह से बद्दुआ भी है
खुदा तुम्हे तुम्हारे जैसी बेटियाँ अता करे

हम मिलेंगे कही,अजनबी शहर की ख्वाब होती हुई शाहाराओ पे और शाहाराओ पे फैली हुई धूप में
एक दिन हम कहीं साथ होगे वक्त की आंधियो से अटी साहतो पर से मट्टी हटाते हुये,एक ही जैसे आँसू बहाते हुये
हम मिलेंगे घने जंगलो की हरी घास पर और किसी शाखे नाजुक पर पड़ते हुये बोझ की दास्तानो मे खो जायेगे
हम सनोबर के पेड़ो की नोकीले पत्तो से सदियो से खोये हुये देवताओ की आँखे चभो जायेंगे
हम मिलेंगे कही बर्फ के वादियो मे घिरे पर्वतो पर,बांझ कब्रो मे लेटे हुये कोह पेमाओ की याद में नज्म कहते हुये
जो पहाड़ो की औलाद थे,और उन्हे वक्त आने पर माँ बाप ने अपनी आगोश मे ले लिया
हम मिलेंगे कही शाह सुलेमान के उर्स मे हौज़ की सीढियो पर वज़ू करने वालो के श्फ़ाक चेहरो के आगे
संगेमरमर से आरस्ता फर्श पर पैर रखते हुये,आह भरते हुये और दरख्तो को मन्नत के धागो से आजाद करते हुये हम मिलेंगे
हम मिलेंगे कही नारमेंडी के साहिल पे आते हुये अपने गुम गश्तरश्तो की खाके सफर से अटी वर्दियो के निशां देख कर
मराकिश से पलटे हुये एक जर्नेल की आखिरी बात पर मुस्कुराते हुये,इक जहाँ जंग की चोट खाते हुये हम मिलेंगे
हम मिलेंगे कही रूस की दास्ताओ की झूठी कहानी पे आखो मे हैरत सजाये हुये,शाम लेबनान बेरूत की नरगिसी चश्मूरो की आमद के
नोहू पे हँसते हुये,खूनी कज़ियो से मफलूह जलबानियाँ के पहाड़ी इलाको मे मेहमान बन कर मिलेंगे
हम मिलेंगे एक मुर्दा जमाने की खुश रंग तहज़ीब मे ज़स्ब होने के इमकान मे,इक पुरानी इमारत के पहलू मे उजड़े हुये लाँन में
और अपने असीरो की राह देखते पाँच सदियो से वीरान जिंदान मे
हम मिलेंगे तमन्नाओ की छतरियो के तले ,ख्वाहिशो की हवाओ के बेबाक बोसो से छलनी बदन सौंपने ले लिये रास्तो को
हम मिलेंगे जमीं से नमूदार होते हुये आठवें बर्रे आज़म में उड़ते हुये कालीन पर
हम मिलेंगे किसी बार में अपनी बकाया बची उम्र की पायमाली के जाम हाथ मे लेंगे और एक ही घूंट में हम ये सैयाल अंदर उतारेंगे
और होश आने तलक गीत गायेंगे बचपन के किस्से सुनाता हुआ गीत जो आज भी हमको अज़बर है बेड़ी बे बेड़ी तू ठिलदी तपईये पते पार क्या है पते पार क्या है?
हम मिलेंगे बाग मे ,गांव मे ,घूप में, छांव में, रेत मे, दश्त में, शहर मे,मस्जिदो में,कलीसो में,मंदर मे ,मेहराब मे, चर्च में,मूसलाधार बारिश मे
बाजार मे,ख्वाब मे,आग मे,गहरे पानी में,गलियो मे ,जंगल में और आसमानो मे
कोनो मकां से परे गैर आबद सैयाराए आरजू मे सदियो से खाली पड़ी बेंच पर
जहा मौत भी हम से दस्तो गरेबां होगी,तो बस एक दो दिन की मेहमान होगी

मै आईनो से गुरेज करते हुये पहाड़ो की कोख मे साँस लेने वाली उदास
झीलो मे अपने चेहरे का अक्स देखू तो सोचता हुँ,कि मुझ मे ऐसा भी
क्या है मरियम?तुम्हारी बेसाख्ता मोहब्बत जमीं पे फैले हुये समंदर
की वो सतहो से मावरा है,मोहब्बतो के समंदरो मे बस एक वो हीरा-ऐ-हिज्र
है जो बुरा है मरियम,खलान गर्दो को जो सितारे मुआवजे मे मिले थे,वो
उनकी रोशनी मे सोचते है कि वक्त ही तो खुदा है मरियम,और इस ताल्लुक
की गठरियो मे,रुकी हुई साअतो से हट कर मेरे लिये और क्या है मरियम?
अभी बहोत वक्त है कि हम वक्त दे जरा एक दूसरे को मगर हम एक साथ
रहकर भी खुश ना रह सके तो माफ करना,कि मैने बचपन ही दुख की दहलीज
पर गुजारा मै उन चिरागो का दुख हुं जिनकी लबे शबे इंतजार मे बुझ गयी,मगर
उनसे उठने वाला धुंआ जमानो मकां मे फैला हुआ है,मै कोसारो और उनके
जिस्मो से बहने वाली उन आबशारो का दुख हुँ जिनको जमीं की गलियो पे
रेंगते रेंगते जमाने गुजर गये है, जो लोग दिल से उतर गये है ,किताबे आँखो
पे रख के सोये थे मर गये है मै उनका दुख हुँ,जो जिस्म खुद लज्जती से उकता के
आईनो की तसल्लियो मे पले बडे है ,मै उनका दुख हुँ,मै घर से भागे हुये का
दुख हुँ,मै रात जागे हुये का दुख हुँ,मै साहिलो से बधी हुई कस्तियो का दुख हुँ,
मै लापता लड़कियो का दुख हुँ,खुली हुई खिड़कियो का दुख हुँ,मिटी हुई तख्तियो
का दुख हुँ,थके हुये बादलो का दुख हुँ,जले हुये जंगलो का दुख हुँ,जो खुल के बरसी
नही है मै उस घटा का दुख हुँ,जमीं क दुख हुँ,खुदा का दुख हुँ,बला क दुख हुँ,जो
शाख सावन मे फूटती वो शाख तुम हो,जो पींग बारिश के बाद बन बन के टूटती है
वो पींग तुम हो ,तुम्हारे होठो से सातो से समातो का सबक लिया है तुम्हारी ही
साक-ए-संदली से संदरो ने नमक लिया है,तुम्हारा मेरा मामला ही जुदा है मरियम
,तुम्हे तो सब कुछ पता है मरियम!

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