TAHZEEB HAFI DUBAI 2019 MUSHAIRA

Poetry Details:-

TAHZEEB HAFI DUBAI 2019 MUSHAIRA-इस पोस्ट मे कुछ मशहुर नग्मे और शायरियाँ पेश की गयी है जो कि Tehzeeb Hafi जी के द्वारा लिखी एवं प्रस्तुत की गयी है।

जो तेरे साथ रहते हुये सौ गवार हो
लानत हो ऐसे शख्स पे और बेशुमार हो
अब इतनी देर भी ना लगा, ये ना हो कहीं
तू आ चुका हो और तेरा इंतजार हो
एक आस्तीं चढाने की आदत को छोड़कर
‘हाफी’ तुम आदमी तो बहुत शानदार हो

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आईने आँख मे चुभते थे,बिस्तर से बदन कतराता था
इक याद बसर करती थी मुझे,मै साँस नही ले पाता था
इक शख्स के हाथ मे था सब कुछ,मेरा खिलना भी मुरझाना भी
रोता था तो रात उजड़ जाती हँसता तो दिन बन जाता था
मै रब से राबते मे रहता मुमकिन है के उससे राबता हो
मुझे हाथ उठाना पड़ते थे,तब जा के वो फोन उठाता था
मुझे आज भी याद है बचपन मे कभी उस पर अगर नजर पड़ती
मेरे बस्ते से फूल बरसते थे मेरी तख्ती पर दिल बन जाता था

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ये किस तरह का ताल्लुक है आपका मेर साथ
मुझे ही छोड़ के जाने का मशवरा मेरे साथ
वो झाँकता नही खिड़की से दिन निकलता है
तुझे यकीन नही आ रहा तो आ मेरे साथ

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तुझे भी साथ रखता और उसे भी अपना दीवाना बना लेता
अगर मै चाहता तो दिल मे कोई चोर दरवाजा बना लेता
मै अपने ख्वाब पूरे कर के खुश हुँ,पर ये पछतावा नही जाता
के मुस्तकविल बनाने से तो अच्छा था,तुझे अपना बना लेता


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घर मे भी दिल नही लग रहा,काम पर भी नही जा रहा
जाने क्या खौफ है?जो तुझे चूम कर भी नही जा रहा
रात के तीन बजने को है,यार ये कैसा महबुब है?
जो गले भी नही मिल रहा और घर भी नही जा रहा


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मेरे बस मे नही वरना कुदरत का लिखा हुआ काटता
तेरे हिस्से मे आये बुरे दिन कोई दूसरा काटता
लारियो से ज्यादा बहाव था तेरे हर इक लफ्ज मे
मै इशारा नही कट सकता तेरी बात क्या काटता
मैने भी जिंदगी और शबे हिज्र काटी है सबकी तरह
वैसे तो बेहतर तो ये था मै कम से कम कुछ नया काटता
तेरे होते हुये मोमबत्ती बुझायी किसी और ने
क्या खुशी रह गयी थी जन्मदिन की मै केक क्या काटता
कोई भी तो नही जो मेरे भूखे रहने पे नाराज हो
जेल मे तेरी तस्वीर होती तो हँस कर सजा काटता

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उसकी तस्वीरे है दिल कश तो होगी,जैसी दीवारे है वैसा साया है
एक मै हुँ जो तेरे कत्ल की कोशिश मे था,एक तू है जो जेल मे खाना लाया है


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एक और शख्स छोड़ कर चला गया तो क्या हुआ,हमारे साथ कौन सा ये पहली मर्तवा हुआ
मेरे खिलाफ दुशमनो की सफ़ में है वो,और मै बहुत बुरा लगूंगा उस पे तीर खेंचता हुआ
अज़ल से इन हथेलियो में हिज्र की लकीर थी,तुम्हारा दुख तो जैसे मेरे हाथ मे बढा हुआ


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सुना है अब वो आँखे और किसी को रो रही है,मेरे चश्मो से कोई और पानी भर रहा है
बहुत मजबूर होकर मै तेरी आँखो से निकला,खुशी से कौन अपने मुल्क से बाहर रहा है
गले मिलना ना मिलना तो तेरी मर्जी है लेकिन तेरे चेहरे से लगता है तेरा दिल कर रहा है


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पहले उसकी खुशबू मैने खुद पर तारी की,फिर मैने उस फूल से मिलने की तैयारी की
इतना दुख था मुझको तेरे लौट के जाने का,मैने घर के दरवाजो से भी मुँहमारी की

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उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे
पलट के आये तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गयी तो
हम ऐसे बुज़दिल भी पहली सफ़ में खड़े मिलेंगे
तुझे ये सड़के मेरे तबस्सुत से जानती है
तुझे हमेशा ये सब इशारे खुले मिलेंगे
हमें बदन और नसीब दोनो संवारने है
हम उसके माथे का प्यार लेकर गले मिलेंगे
ना जाने कब उसकी आँखे छलकेगी मेरे गम में
ना जाने किस दिन मुझे ये बर्तन भरे मिलेंगे

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तुम्हे हुस्न पर दस्तरस है,मोहब्बत मोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आँखो के बारे में क्या जानते हो
ये जोग्राफिया,फलसफा,सायकोलोजी,साइंस रियाजी बगैरा
ये सब जानना भी अहम है मगर उसके घर का पता जानते हो


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धूप पड़े उस पर तो तुम बादल बन जाना
अब वो मिलने आये तो उसको घर ठहराना
तुम को दूर से देखते देखते गुजर रही है
मर जाना पर किसी गरीब के काम ना आना


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थोड़ा लिखा और ज्यादा छोड़ दिया,आने वालो के लिये रस्ता छोड़ दिया
लड़कियाँ इश्क मे कितनी पागल होती है,फोन बजा और चुल्हा जलता छोड़ दिया
तुम क्या जानो उस दरिया पर क्या गुजरी,तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया


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किसे खबर है कि उम्र बस इसपे गौर करने मे कट रही है
ये उदासी हमारे जिस्मो से किस खुशी मे लिपट रही है
अजीब दुख है हम उसके होकर भी उसको छूने से डर रहे है
अजीब दुख है हमारे हिस्से की आग ओरो मे बँट रही है
मै उसको हर रोज बस यही एक झूठ सुनने को फोन करता हुं
सुनो यहा कोई मसला है तुम्हारी आवाज कट रही है
मुझ जैसे पेड़ो के सूखने और सब्ज़ होने से क्या किसी को
ये बेल शायद किसी मुसीबत मे है जो मुझसे लिपट रही है
सो इस ताल्लुक मे जो गलतफेहमियां थी अब दूर हो रही है
रुकी हुई गाडियो के चलने का वक्त है,धुंध छट रही है


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क्या खबर उस रोशनी मे और क्या रोशन हुआ
जब वो इन हाथो से पहली मर्तबा रोशन हुआ
वो मेरे सीने से लग कर जिसको रोई कौन था
किसके बुझने पर मै आज उसकी जगह रोशन हुआ
तेरे अपने तेरी किरणो को तरसते है यहाँ
तू ये किन गलियो मे,किन लोगो मे जा रोशन हुआ
मेरे जाने पर सभी रोये ,बहुत रोये मगर इक दिया
मेरी तवक्को से सिवा रोशन हुआ
मैने पुछा था के मुझ जैसा भी कोई और है?
दूर जंगल मे कहीं इक मकबरा रोशन हुआ
जाने कैसी आग मे वो जल रहा है इन दिनो
उसने मुँह पोंछा तो मेरा तौलिया रोशन हुआ

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