Ro Pa Rahe Hain Aap Badhai Hai Roiye –इस पोस्ट मे कुछ शायरियाँ प्रस्तुत की गयी है जो कि Abbas Qamar के द्वारा लिखी एवं प्रस्तुत की गयी है।
किसे फुर्सत-ए-मोहसाल है,ये सवाल है
कोई वक्त है भी के जाल है,ये सवाल है
ना है फिक्र-ए-गर्दिशे आसमां,ना ख्याल-ए-जां
मुझे फिर ये कैसा मलाल है,ये सवाल है
वो सवाल जिसका जबाब है,मेरी जिंदगी
मेरी जिंदगी का सवाल है,ये सवाल है
मै बिछड़ के तुझसे बलंदियो पे जो पस्त हुं
ये उरूज है के ज़वाल है ये सवाल है
जिस बुत पे फिदा हो गये,जां जिस पे लुटा दी
उसने भी बिछड़ते हुये,जीने की दुआ दी
सहरा के वही रेत का बेअंत समंदर
हजरत-ए-वहशी दरो दीवार के आदी
अपनी ही किसी धुन मे था उलझा हुआ वो शख्स
सो हमने कहानी भी कोई और सुना दी
तन्हाई से चौंके जो कभी खुद को पुकारा
खामोशी से घबराये तो जंजीर हिला दी
तेरे ख्याल से फूटा था ख्वाव कहते है
तुझे हयात का लुब्बे-लुबाब कहते है
चुना है तुने मुझे जिंदगी के दामन में
मुझे ये लोग तेरा इंतखाब कहते है
इसी का नाम रवानी है बरसर-ए-दरिया
इसी को दश्त में प्यास-ए-सराब कहते है
गुनाहगार है उसके,सो उसकी महफिल में
हम उसके हुस्न को उसका नकाब कहते है
अश्को को आरजू-ए-रिहाई है,रोइए
आँखो की अब इसी में भलाई है,रोइए
खुश है तो फिर मुसाफिर-ए-दुनिया नही है आप
इस दश्त मे बस आबला-पाई* है,रोइए
हम है असीर*-ए-जब्त इजाजत नही हमे
रो पा रहे है आप बधाई है रोइए
हम ऐसे सरफिरे दुनिया को कब दरकार होते है
अगर होते भी है बेइंतेहा दुशवार होते है
खामोशी कह रही है अब ये दोआबा* रवां होगा
हवा चुप हो तो बारिश के शदीद* आसार होते है
शिकायत जिंदगी से क्युं करे?हम खुद ही थम जाये
जो कम रफ्तार होते है वो कम रफ्तार होते है
बदन इनको कभी बहार निकलने ही नही देता
कमर अब्बास तो बकायदा तैयार होते है
—–अर्थ—–
लुब्बे-लुबाब- सार,तत्व
आबला-पाई– पैरो मे छाले पड़ जाना,लंबी कठिन यात्रा के बाद थकावट
असीर-कैदी
दोआबा-दो नदियो के बीच की जमीन
शदीद-कठिन
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