Ranjish hi Sahi-रंजिश ही सही ghazal by Ahmad Faraz- Rafaqat Ali Khan

Poetry Details:-

Ranjish hi Sahi-रंजिश ही सही –इस गज़ल को लिखा है Ahmad Faraz ने और इसे स्वर वद्ध Rafaqat Ali Khan जी किया है। इस प्रस्तुति मे कुछ ही शेर पेश किये गये है,बाकि पूरी गज़ल को आपके लिये दिया गया है।

किस किस को बताये जुदाई का सबब
तू मुझसे खफा है तो जमाने के लिये आ

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिये आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिये आ

कुछ तो मेरे पिंदार-ए-मुहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिये आ

अब तक दिल-ए-ख़ुशफ़हम को हैं तुझ से उम्मीदें
ये आख़िरी शम्में भी बुझाने के लिये आ

माना के मुहब्बत का छुपाना है मुहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिये आ

पहले से मरासिम ना सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिये आ

जैसे तुझे आते हैं, न आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिये आ

इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जाँ मुझको रुलाने के लिये आ

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