MEIN PANDITJI KA BETA THA WO KAZI SAHAB KI BETI THI -AMRITESH JHA

Poetry Details

MEIN PANDITJI KA BETA THA WO KAZI SAHAB KI BETI THI -इस कविता को लिखा और प्रस्तुत AMRITESH JHA ने किया है।

मै उनसे बातें तो नही करता,पर उनकी बाते लाजबाब करता हुँ
पेशे से शायर हुँ यारो,अल्फाजो से दिल का इलाज करता हुँ


उन्हे तो मे उस खुदा से भी छीन लाता,पर उनकी बातो ने मुझे कायर बना रखा है
युं तो मुझे शौक नही है शायरी का,पर गूंज की आँखो ने मुझे शायर बना रखा है


मै मंदिर मे बैठा था,वो मस्जिद मे बैठी थी
मै पंडित जी का बेटा था,वो काजी सहाब की बेटी थी
मै बुलेट पर चल कर आता था,वो बुर्खे मे गुजरती थी
मै कायल था उसकी आँखो का,वो मेरी नजर पर मरती थी
मै खड़ा रहता था चौराहे पर,वो भी छत पर चड़ती थी
मै पूजा कर आता था मजारो की,वो मंदिर मे नमाज पड़ती थी
वो होली पे मुझे रंग लगाती,मै ईद का जश्न मनाता था
वो वेष्णो देवी जाती थी,मै हाजी अली हो आता था
वो मुझको कुरान सुनाती,मै उसको वेद समझाता था
वो हनुमान चालीसा पढती थी,मै सबको अजान सुनाता था
उसे मागता था मै मेरे रब से,वो अल्लाह से मेरी दुआ करती थी
ये सब उन दिनो की बात है,जब वो मेरी हुआ करती थी
फिर इस मजहबी इश्क का ऐसा अंजाम हुआ
वो मुसलमानो मे हो गई और मै हिंदुओ मे बदनाम हुआ
मै मंदिर मे रोता था,वो मस्जिद मे रोती थी
मै पंडित जी का बेटा था,वो काजी सहाब की बेटी थी
रोते रोते हम लोगो की तब शाम ढला करती थी
अपने अब्बू से छुपकर वो मस्जिद के पीछे मिला करती थी
मै पिघल जाता था बर्फ सा वो जब भी छुआ करती थी
ये सब उन दिनो की बात है,जब वो मेरी हुआ करती थी
कुछ मजहबी कीड़े आकर,हमारी दुनिया उजाड़ गये
जो खुदा से ना हारे थे,वो खुदा के बंदो से हार गये
जीतने की कोई गुंजाइश ना थी,मै इश्क का हारा बाजी था
जो उसका निकाह कराने आया था,वो उसी का बाप काजी था
जो गूंज रही थी मेरे कानो में,वो उसके शादी की शहनाई थी
मै कलियाँ बिछा रहा था राहो में,आज मेरी जान की विदाई थी
मै वहीं मंदिर में बैठा था,पर आज वो डोली में बैठी थी
मै पंडित जी का बेटा था,वो काजी सहाब की बेटी थी

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