Andaaz-e-Bayaan aur Mushaira-TEHZEEB HAFI

Poetry  Details:-

Andaaz-e-Bayaan aur Mushaira-TEHZEEB HAFI-इस पोस्ट में TEHZEEB HAFI की लिखी गयी कुछ गज़ले और शायरियाँ पेश की गयी है,जोकि TEHZEEB HAFI के द्वारा प्रस्तुत की गयी है।

तुम्हे हुस्न पर दस्तरस है,मोहब्बत मोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि उसकी आँखो के बारे में क्या जानते हो
ये जोग्राफिया,फलसफा,सायकोलोजी,साइंस रियाजी बगैरा
ये सब जानना भी अहम है मगर उसके घर का पता जानते हो

रुक गया है या वो चल रहा है हमको सब कुछ पता चल रहा है
उसने शादी भी की है किसी से,और गाँव मे क्या चल रहा है

तेरा चुप रहना मेरे जेहेन मे क्या बैठ गया
इतनी आवाजे तुझे दी कि गला बैठ गया
युं नही है के फकत मै ही उसे चाहता हुं
जो भी उस पेड़ की छांव में गया बैठ गया
उसकी मर्जी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इसपे क्या लडना कि फलां मेरी जगह बैठ गया
इतना मीठा था वो गुस्से भरा लेहजा मत पू्छ
उसने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया
बज्मे-ए-जाना मे नशिशते नही होती मखसूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया
अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हे इल्म नही
चीखती तुम रही और मेरा गला बैठ गया

किसे खबर है कि उम्र बस इसपे गौर करने मे कट रही है
ये उदासी हमारे जिस्मो से किस खुशी मे लिपट रही है
मै उसको हर रोज बस यही एक झूठ सुनने को फोन करता हुं
सुनो यहा कोई मसला है तुम्हारी आवाज कट रही है

जिंदगी इतना तेज चलती है भाग कर बस पकड़ना पड़ती है
तुम बहुत खुश रहोगी मेरे साथ ,वैसे हर एक की अपनी मर्जी है

थोड़ा लिखा और ज्यादा छोड़ दिया,आने वालो के लिये रस्ता छोड़ दिया
लड़कियाँ इश्क मे कितनी पागल होती है,फोन बजा और चुल्हा जलता छोड़ दिया
तुम क्या जानो उस दरिया पर क्या गुजरी,तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया

तेरी कैद से मै युही रिहा नही हो रहा
मेरी जिंदगी तेरा हक अदा नही हो रहा
मेरा मौसमो से तो फिर गिला ही फिजूल है
तुझे छू के भी मै अगर हरा नही हो रहा
तेरे जीते जागते और कोई मेरे दिल मे है
मेरे दोस्त क्या ये बहुत बुरा नही हो रहा
ये जो डगमगा लगी है तेरे दिये की लौ
इसे मुझसे तो कोई मसला नही हो रहा

बिछड़ कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा
वो थक जायेगा और मेरे गले से आ लगेगा
मै मुश्किल मे तुम्हारे काम आऊ या ना आऊ
मुझे आवाज दे लेना तुम्हे अच्छा लगेगा
मै जिस कोशिश से उसको भूल जाने मे लगा हुं
ज्यादा भी अगर लग जाये तो हफ्ता लगेगा

बाद मे मुझसे ना कहना घर पलटना ठीक है
वैसे सुनने मे यही आया है रस्ता ठीक है
शाख से पत्ता गिरे,बारिश रुके,बादल छटे
मै ही तो सब कुछ गलत करता हुं,अच्छा ठीक है
जेहन तक तस्लीम कर लेता है उसकी परतरी
आँख तक तक्सीद कर देती है बंदा ठीक है
इक तेरी आवाज सुनने के लिये जिंदा है हम
तु ही जब खामोश हो जाये तो फिर क्या ठीक है

टूट भी जाऊ तो तेरा क्या है,रेत से पूछ आईना क्या है
फिर मेरे सामने उसी का जिक्र,आप के साथ मसला क्या है

सब परिंदो से प्यार लूगा मै,पेड़ का रूप धार लूंगा मै
तू निशाने पे आ भी जाये अगर,कौन सा तीर मार लूंगा मै

क्या खबर उस रोशनी मे और क्या रोशन हुआ
जब वो इन हाथो से पहली मर्तबा रोशन हुआ
वो मेरे सीने से लगकर जिसको रोई कौन था
किसके बुझने पर मै आज उसकी जगह रोशन हुआ
तेरे अपने तेरी किरणो को तरसते है यहाँ
तू ये किन गलियो मे, किन लोगो मे जा रोशन हुआ
अब उस जानिब से इस कसरत से तोहफे आ रहे है
हम घर मे नयी अल्मारिया बनबा रहे है
हमे मिलना तो इन आबादियो से दूर मिलना
उससे कहना कि गये वक्तो मे हम दरिया रहे है
बिछड़ जाने का सोचा तो नही था हमने लेकिन
तुझे खुश रखने के कोशिश मे दुख पहुचा रहे है

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