Mere Gaon Aaoge… | Rahgir | Jashn-e-Rekhta 2022

Poetry Details

Mere Gaon Aaoge… | Rahgir | Jashn-e-Rekhta 2022-इस उत्तम गीत को लिखा एवं प्रस्तुत किया है,Rahgir जी ने |

तुम मुड़ तो पाओगे पर लौट न पाओगे ×2
मेरी याद आएगी उस मकाम पे कभी
तुम पकड़ के गाड़ी शायद मेरे गांव आओगे ×2
मैं मिलूंगा ही नहीं उस मकान पे कभी
तुम पकड़ के गाड़ी शायद …………


एक बार क्या हुआ कि
सूरत स्टेट के बाहर ठंडी बेंच थी चाय गरम थी
और बगल में एक ताऊ के हाथ में बींड़ी थी जो लगभग खत्म सी थी
मैंने बस दो चार चुस्कियां ली थी कि इतने में ताऊ ने दूसरी सुलगा ली थी
और पहली को फेंका ज़मीन पर
और जूती से कुचल दिया
मुझे जाने क्यों तेरी याद आई, मैं उठा और चल दिया

 

शामों का काम तो ढलना है, ढलेंगी तब भी
हवाओं का काम तो चलना है चलेंगी तब भी
हो जुल्फों की तो यह फितरत है उड़ेंगी तब भी
कोई और संवारेगा तो भी मेरी याद आएगी
तुम सोच तो लोगे पर बोलना पाओगे
दिल की बात आएगी न जबान पे कभी
तुम पकड़ के गाड़ी शायद मेरे गांव आओगे
मैं मिलूंगा ही नहीं उस मकान पे कभी


क्या हुआ कि
वो भी गांव से आई थी और मैं भी गांव से आया था ×2
और इस रूखे बिगड़े शहर ने लेकिन हम को अपनाया था
और एक छोटे से कमरे के कोने को किचन बना
हम उस पर चाय बनाते थे
फिर फर्श पर गद्दा डाल के बाहों में सो जाते थे
तब भी दुनिया में दर्द बहुत था ×2 ,तब भी मुद्दे अखबार में थे
पर हम दोनों को क्या मतलब था हम दोनों तो प्यार में थे
तब भी था बेड़ा गर्क जहां का ×2, तब भी डाकू सरकार में थे
पर हम दोनों को क्या मतलब था हम दोनों तो प्यार में थे


शब्द हैं, दर्द है, कलाकारी है, गीत बना लूंगा
गीतों की कीमत भारी है, मैं कमा लूंगा
तेरा नाम न लूंगा होशियारी है मैं छुपा लूंगा
कोई गुनगुन गुनायेगा तो तुम समझ ही जाओगे
तुम पैसे ओहदों पर इतरा न पाओगे ×2
इतनी तालियां होंगी मेरे नाम पे कभी
तुम पकड़ के गाड़ी शायद मेरे गांव आओगे
मैं मिलूंगा ही नहीं उस मकान पे कभी


के जिनके लिए हम बरसाते तीरों में बैठ गए
वो जाकर किसी और की लकीरों में बैठ गए


खनकेगी तेरे पैरों में जंजीर जब-जब ×2
तुझे याद आएगा राहगीर तब तब
तेरे कल को चुभेंगे आज के तीर जब जब
तुझे याद आएगा राहगीर तब तब


के घर भरा होगा महंगे सामान से शीशे दागी नहीं होंगे
और बच्चे भी तमीजदार होंगे बागी नहीं होंगे
और वक्त पे खाना मिलेगा और वक्त पे सब काम होंगे
सजे संवरे लोग होंगे और रंग-बिरंगे जाम होंगे
पर एक रात नींद खुलेगी कोई एक दो बजे होंगे
तुम उठोगे बिना आहट के खिड़की पर जाओगे
और एकदम से लगेगा कि कुछ कमी सी है कहीं
तुम जुल्फें खोलोगे वह वहां नहीं गिरेगी जहां तुम चाहोगे
क्योंकि कुछ चीजें आजाद रहती हैं और आजाद ही बहती हैं

 

ये वक्त किसी का सगा ही नहीं ×2, चलता है चलता ही जाएगा
ये हुस्न किसी का रुका ही नहीं ×2, ढलता है ढलता ही जाएगा
जिस पेड़ ने सावन ठुकराया ×2, वो पेड़ झड़ता जाएगा
और बिना ज़ख्म ही दुखेगा शरीर जब जब
तुझे याद आएगा राहगीर तब तब
खनकेगी तेरे पैरों में जंजीर जब-जब
तुझे याद आएगा राहगीर तब तब

 

कि मैं वो पायल जिसे उसने पहना तो था ×2
फिर उतार कर कहा कि कोई और दिखाओ
और दुकानदार ने दो चार बार कहा तो था
कि मैडम यह चीज नहीं मिलेगी बाजार घूम आओ

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