TEHZEEB HAFI @DUBAI MUSHAIRA | SEPT 2022

Poetry Detail

TEHZEEB HAFI @DUBAI MUSHAIRA | SEPT 2022-इस पोस्ट मे कुछ नग्मे और शायरियाँ पेश की गयी है जो कि Tehzeeb Hafi जी के द्वारा लिखी एवं प्रस्तुत की गयी है

तपते सेहराओ मे सबके सर पे आंचल हो गया
उसने जुल्फें खोल दी और मस्सला हल हो गया
उसने बातों बातों में मुझसे कहा पागल हो क्या?
और फिर दुनिया ने देखा के मैं पागल हो गया


नही था अपना मगर फिर भी अपना अपना लगा
किसी से मिल के बहोत देर बाद अच्छा लगा
तुम्हे लगा था मै मर जाऊंगा तुम्हारे बगैर
बताओ फिर तुम्हे मेरा मजाक कैसा लगा?
तिजोरियो पे नजर ओर लोग रखते है
मै आसमान चुरा लुंगा जब भी मौका लगा
दिखाती है भरी अल्मारिया बडे दिल से
बताती है कि मोहब्बत में किसका कितना लगा
तुम्हे लगा था मै मर जाऊंगा तुम्हारे बगैर
बताओ फिर तुम्हे मेरा मजाक कैसा लगा?


ये इश्क वो है जिसने बेहरो बर खराब कर दिया
हमें तो उसने जैसे खास कर खराब कर दिया
मै दिल पे हाथ रखके तुझेको शहर भेज दूं मगर
तुझे भी उन हवाओं ने अगर खराब कर दिया
किसी ने नाम लिख के और किसी ने पींग डाल के
मोहब्बतो की आड़ में सज़र खराब कर दिया
तुम्हे ही देखने में मेहव है वो,काम छोड़ कर
तुम्हारी कार ने तो कारिगर खराब कर दिया
मै काफिले के साथ हूं मगर मुझे ये खौफ है
अगर किसी ने मेरा हमसफर खराब कर दिया
तेरी नजर के मयकदे तमाम शब खुले रहे
तेरी शराब ने मेरा जिगर खराब कर दिया

 

मुसलसल वार करने पर भी ज़रा भर नही टूटा
मैं पत्थर हो गया फिर भी तेरा खंज़र नही टूटा
तेरे टुकड़े मेरी खिड़की के शीशो से ज्यादा है
खुदा का शुक्र है के तू मेरे अंदर नही टूटा
हम उसका ग़म भला किस्मत पे कैसे टाल सकते है?
हमारे हाथ में टूटा है,वो गिर कर नही टूटा

 

जब से उसने खेंचा है,खिड़की का पर्दा एक तरफ
उसका कमरा एक तरफ है,बाकि दुनिया एक तरफ
मैने अब तक जितने भी लोगो मे खुद को बाँटा है
बचपन से रखता आया हुँ,तेरा हिस्सा एक तरफ
एक तरफ तुम्हें जल्दी है,उसके दिल मे घर करने की
एक तरफ वो कर देता है,रफता रफता एक तरफ
युं तो आज भी तेरा दुख दिल देहला देता है,लेकिन
तुझसे जुदा होने के बाद का पहला हफ्ता एक तरफ
उसकी आँखो ने मुझसे मेरी खुद्दारी छीनी वरना
पांव की ठोकर से कर देता था,मै दुनिया एक तरफ
मेरी मर्जी थी मै ज़र्रे चुनता या लहरे चुनता
उसने सेहरा एक तरफ रखा और दरिया एक तरफ

 

हम तुम्हारे ग़म से बाहर आ गये, हिज्र से बचने के मंतर आ गये
मैने तुमको अंदर आने का कहा,तुम तो मेरे दिल के अंदर आ गये
एक ही औरत को दुनिया मान कर,इतना घुमा हुँ के चक्कर आ गये
इम्तिहाने इश्क मुश्किल था मगर,नक्ल करके अच्छे नंबर आ गये
तेरे कुछ आशिक तो गंगाराम है,और जो बाक़ी थे निस्तर आ गए


ये मैने कब कहा के मेरे हक मे फैसला करे
अगर वो मुझसे खुश नही है तो मुझे जुदा करे
मै उसके साथ जिस तरह गुजारता हुं जिंदगी
उसे तो चाहिये के मेरा शुक्रिया अदा करे
बना चुका हुँ मै,मोहब्बतो के दर्द की दवा
अगर किसी को चाहिये तो मुझसे राब्ता करे
बना चुका हुँ मै,मोहब्बतो के दर्द की दवा
अगर किसी को चाहिये तो मुझसे राब्ता करे
मेरी दुआ है,और इक तरह से बद्दुआ भी है
खुदा तुम्हे तुम्हारे जैसी बेटियाँ अता करे

 

मोहब्बत खुद अपने लिये जिस्म चुनती है
और जाल बुनती है उनके लिये
जो ये आग अपने सीनो में भरने को तैयार हो
घुट के जीने से बेज़ार हो
मोहब्बत कभी एक से या कभी एक सौ एक लोगो से
होने का एलान एक साथ करती है
इसमे कई उम्र की जिन्स की कोई कदगर नही
मोहब्बत किसी बेंच पर एक मर्द और औरत में खाई
हुई इक अधूरी कसम है
मोहब्बत में मर जाना,मरना नही
मोहब्बत तो खुद देवताओं का पुनर्जन्म है
मोहब्बत किसी राहेबा की कलाई से उतरी हुई चुढियो की खनक है
मोहब्बत किसी एक मुर्दा सितारे को खैरात में मिलने वाली एक चमक है
मोहब्बत पे शक,तो खुद अपनी ही हस्ती पे शक है
मोहब्बत तो महबूब के कद्दो कामद से जन्मी हुई वो अलामत है
और तेज बारिश में सहमे हुये हाथियो पर बड़ी छतरियो की तरह है,मोहब्बत
सर्द मुल्को में वापस पलटते हुये
अपने जख्मी परो से खलाब-ए-लहू की लकीरे बनाती हुई कूंज है,मूंज है
और दिल की जमीनो को सैराब करती हुई नेहेर है,कहर है,जहर है
जो रगो में उतर कर बदन को उदासी के उस शहर में मार कर
खैराबात कहती है जो केलोरिना ने बस जेहेन मे ही तस्सबुर किया था
मस्जिदो मे सिपारो को सीनो मे महफूज़ करते हुये
बच्चियो को खुदा से डराते हुये मौलवी का मकर है मोहब्बत
कलीशाओ में रूसी अखरोट की लकड़ियो से बनी कुर्सियो
पर बुजुर्गो की आँखो में मरने का डर है,मोहब्बत
मोहब्बत जहीनो पे खुलती ह। इस्को कभी कुंद जेहनो से कोई इनाका नही
मोहब्बत को क्या कोई अपना है या गैर है
इसमे आदमी सब कुछ लुटा कर भी कहता है !चलो खैर है

 

सुफेद शर्ट थी तुम सीढियो में बैठे थे
मै क्लास से निकली थी मुस्कुराते हुये
हमारी पेहली मुलाकात याद है ना तुम्हे
इशारे करते थे तुम मुझको आते जाते हुये
तमाम रात वो आँखे ना भूलती थी मुझे
के जिन में मेरे लिये इज्जत और वकार दिखे
मुझे ये दुनिया वयांबान थी मगर इक दिन
तुम एक बार दिखे और बेशुमार दिखे
मुझे ये डर था के तुम भी कहीं वही तो नही
जो जिस्म पर ही तमन्ना के दाग छोड़ते है
खुदा का शुक्र के तुम उन से मुख्तलिफ निकले
जो फूल तोड़ के गुस्से में बाग छोड़ते है
ज्यादा वक्त ना गुजरा था इस ताल्लुक को
के उस के बाद वो लम्हा करीं करीं आया
छुआ था तुम ने मुझे और मुझे मोहब्बत पर
यकीन आया था लेकिन कभी नही आया
फिर उसके बाद मेरा नशा-ए- सकूत गया
मै कशमकश में थी,तुम मेरे कौन लगते हो
मै अम्रता तुम्हे सोचूं तुम मेरे साहिर हो
मै फारिहा तुम्हे देखू तो जाँन लगते हो
हम एक साथ रहे और हमे पता ना चला
ताल्लुकात की हद बंदिया भी होती है
मोहब्बतो के सफर में को रास्ते है वही
हवस की सम्त में पगडंडिया भी होती है
तुम्हारे वास्ते जो मेरे दिल में है ‘हाफी’
तुम्हे मैं काश ये सब कुछ कभी बता पाती
और अब मजीद ना मिलने की कोई वजह नही
बस अपनी माँ से मैं आँखे नही मिला पाती

 

सुबह रोशन थी और गर्मियो के थका देने वाले दिनो मे
सारी दुनिया से आजाद हम मछलियो की तरह मैली नेहरो मे गोते लगाते
अपने चेहरे पे कीचड़ लगा कर डराते थे
एक दूसरे को किनारो पे बैठे हुये हमने जो अहद एक दूसरे से लिये थे
उसके धुंधले से नक्शे आज भी मेरे दिल पर कही नक्श है
खुदा रोज सूरज को तैयार करके हमारी तरफ भेजता था
और हम साया एक कुफ्र मे एक दूजे के चेहरे की ताबिंदगी की दुआ मांगते थे
उसका चेहरा कभी मेरी आँखो से ओझल नही हो सका
,उसका चेहरा अगर मेरी आँखो से हटता तो मै कायनातो मे फैले हुये
उन मज़ाहिर की तफीम नज़्मो मे करता
के जिस पर बजिद ने ये बीमार जिन्न को खुद अपनी तमन्नो की आत्माओ ने
इतना डराया के इनको हवस के कफ़स मे मोहब्बत की किरणो ने छूने की कोशिश भी की
तो ये उससे परे हो गये
इनके बस मे नही के ये महसूस करते इक मोहब्बत भरे हाथ का लंम्स
जिससे इन्कार कर करके इनके बदन खुरदरे हो गये
एक दिन जो खुदा और मोहब्बत की इक किस्त को
अगले दिन पर नही टाल सकते,खुदा और मोहब्बत पे रायज़नी करते थकते नही
और इस पर भी ये चाहते है कि मै इनकी मर्जी की नज़्मे कहूं
जिनमे इनकी तशफी का सामान हो,आदमी पढके हैरान हो
जिसको ये इल्म कहते है,उस इल्म की बात हो
फलसफां,दीन,तारीख,साय,समाज,अकीदा,जबाने,माशी
मशावात,इंसान के रंगो आदातो अतवार,ईजाद तकलीद,अम्ल इंतशार
नैनन की अज़मद के किस्से,खितरी बलाओ से और देवताओ से जंग,सुलह नामा लिये तेज रफ्तार
घोड़ो पे सहमे सिपाही ,नजरियाये समावात के काट ने क्या कहा ?
और उसके जुराबो के फीतो की डिब्बीया,किमीया के खजानो का मुह खोलने वाला बाबल कौन था ?
जिसने पारे को पत्थर में ढाला समंदर की तक्सीर
और एटलांटिक पे आबादीया,मछलियाँ कश्तियो जैसी क्यो है ?
और राफेल के हाथ पर मट्टी कैसे लगी? ये सवाल
और ये सारी बाते मेरे किस काम की
पिछले दस साल से उसकी आवाज तक मै नही सुन सका,
और ये पूछते है के हेगल के नजदीक तारीख क्या है ?

जेहन से यादो के लशकर जा चुके
वो मेरी मेहफिल से उठकर जा चुके
मेरा दिल भी जैसे पाकिस्तान है
सब हकुमत करके बाहर जा चुके

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