वो चांदनी का बदन, खुशबुओ का साया है, बहुत अज़ीज़ हमे है मगर पराया है- बशीर बद्र|Bashir Badr

Poetry Details:-

वो चांदनी का बदन, खुशबुओ का साया है, बहुत अज़ीज़ हमे है मगर पराया है, बशीर बद्र-इस पोस्ट मे बशीर बद्र जी के द्वारा लिखी गयी कुछ गजले और शायरिया उन्ही के द्वार प्रस्तुत की गयी है।

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा
इतना मत चाहो उसे,वो बेवफा हो जायेगा
अगर तलाश करुं,कोई मिल ही जायेगा
मगर तुम्हारी तरह,कौन मुझको चाहेगा?
तुम्हे जरूर कोई चाहतो से देखेगा
मगर वो आँखे हमारी कहाँ से लायेगा?
ना जाने कब तेर दिल पर नयी सी दस्तक हो?
मकान खाली हुआ है,तो कोई आयेगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फरिशतो जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा
मै अपनी राह में दीवार बन के बैठा हुँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा?


रेत भरी है इन आँखो में,आँसू से तुम धो लेना
कोई सूखा पेड़ मिले तो उससे लिपट के रो लेना
उसके बाद बहुत तन्हा हो,जैसे जंगल का रस्ता
जो भी तुम से प्यार से बोले साथ उसी के हो लेना
कुछ तो रेत की प्यास बुझाओ,जनम जनम की प्यासी है
साहिल पर चलने से पहले अपने पांव भिगो लेना
रोते क्युं हो?दिलवालो की किस्मत ऐसी होती है
सारी रात युं ही जागोगे,दिन निकले तो सो लेना
मैने दरिया से सीखी है,पानी की पर्दादारी
ऊपर ऊपर हँसते रहना,गहराई मे रो लेना

 


मेरी जिंदगी भी मेरी नही,ये हजार खानो मे बँट गयी है
मुझे एक मुठ्ठी जमीन दे,ये जमीन कितनी सिमट गयी
मुझे पढने वाला पढे भी क्या?मुझे लिखने वाला लिखे भी क्या?
जहाँ मेरा नाम लिखा गया,वही रोशनाई उलट गयी
तेरी याद आये तो चुप रहुँ,जो मै चुप रहुँ तो गज़ल कहुँ
ये अजीब आग की बेल थी,मेरे तन बदन से लिपट गयी
मेरी बंद पलको पे टूट कर,कोई फूल रात बिखर गया
मुझे सिसकियो ने जगा दिया,मेरी कच्ची नींद उचट गयी
कही चाँद राहो मे खो गया,कही चाँदनी भी भटक गयी
मै चिराग,वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गयी
कभी हम मिले भी तो क्या मिले,वही दूरिया वही फासले
ना कभी हमारे कदम बढे,ना कभी तुम्हारी झिझक गयी
तुझे भूल जाने की कोशिशे,कभी कामयाब ना हो सकी
तेरी याद शाखे गुलाब है , जो हवा चली तो लचक गयी
मेरी दांस्ता का उरूज था,तेरी नर्म पलको की छांंव मे
मेरे साथ था तुझे जागना,तेरी आँख कैसे झपक गयी?
तेरे हाथ से मेरे ओठ तक वही इंतजार की प्यास है
मेरे नाम की जो शराब थी,कहीं रास्ते मे छलक गयी

 


वो चाँदनी का बदन,खुशबुओ का साया है,बहुत अजीज हमे है मगर पराया है
उतर भी आओ कभी आसमां के जीनो से ,तुम्हे खुदा ने हमारे लिये बनाया है
तमाम उम्र मेरा दम इसी धुंये मे घुटा,वो एक चिराग था मैने उसे बुझाया है
आँखो मे रहा दिल मे उतर कर नही देखा,कशती के मुसाफिर ने समंदर नही देखा
बेवक्त अगर जाऊंगा सब चौंक पड़ेगे,एक उम्र हुई दिन मे कभी घर नही देखा
जिस दिन से चला हुँ मेरी मंजिल पे नजर है,आँखो ने कभी मील का पत्थर नही देखा
ये फूल मुझे कोई विरासत मे मिले है,तुमने मेरा कांटो भरा बिस्तर नही देखा
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला,मै मोम हुँ उसने मुझे छूकर नही देखा

 


स्याहियो के बने हर्फ हर्फ धोते है,ये लोग रात मे कागज कहाँ भिगोते है
किसी की राह मे दहलीज पर दिये ना रखो,किवाड़ सूखी हुई लकड़ियो के होते है
चिराग पानी मे मौजो से पूछते होगे,वो कौन लोग है जो कशतिया ड़ुबोते है ?
कदीम कस्बो मे कैसा सुकून होता है ?थके थकाये हमारे बुजुर्ग सोते है
चमकती है कई सदियो मे आंसुओ से जमीं,गजल के शेर कहाँ रोज रोज होते है?
उदास आँखो से आँसू नही निकलते है ये मोतियो की तरह सीपियो मे पलते है
मै शाहराह नही रास्ते का पत्थर हुँ यहाँ सवार भी पैदल उतर के चलते है
उन्हे कभी ना बताना ,मै उनकी आँखे हुँ वो लोग फूल समझके मुझे मसलते है
कई सितारो को मै जानता हुँ बचपन से कहीं भी जाँऊ मेरे साथ साथ चलते है
ये एक पेड़ है आ इससे मिलके रो ले हम,यहाँ से तेरे मेरे रास्ते बदलते है

 

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