रिंदो को तो मयखाने तक जाना है-Vishal Bagh | Deccan Literature Festival Mushaira 2020

Poetry Details:-

रिंदो को तो मयखाने तक जाना है-Vishal Bagh | Deccan Literature Festival Mushaira 2020-इस पोस्ट में कुछ कविताये और गज़ल पेश की गयी है वो Vishal Bagh के द्वारा लिखी और प्रस्तुत की गयी है ।

जिनसे वर्षो की पहचान थी छुट गयी
अजनबी..!आज से हम तुम्हारे हुये

तुमने जब से अपनी पलको पर रखा
कालिख को सब काजल काजल कहते है

जब वो बोले के कोई प्यारा था,उनका मेरी तरफ इशारा था
हम निकल आये जिस्म से बाहर,उसने कुछ इस तरह पुकारा था

शाम ढले मै घर रोशन भी करता था,कितना कुछ तो मै बेमन भी करता था
दुनिया मुझसे सिर्फ मोहब्बत करती है,वो दिवाना पागलपन भी करता था
तुम जो कहते थे के एक दिन छू लोगे,छू लेते ना.. मेरा मन भी करता था
उसके हाथो मे बस हम ही जँचते थे,दावा सोने का कंगन भी करता था
मेरे सिरहाने,ये घुंघरू गुमसुम है,उसके पैरो मे छनछन भी करता था

दानिश मंदो रस्ता बतला सकते हो,दीवाना हुँ वीराने तक जाना है
जन्नत वाले थोड़ा पहले उतरेगें,रिंदो को तो मयखाने तक जाना है

साफ दिखता है तेरे चेहरे पे,इश्क डाले है डेरे चेहरे पे
इतनी शिद्दत से देखिये मुझक, नील पड़ जाये मेरे चेहरे पे
सोलवां साल लग गया जैसे,उसने जब हाथ फेरे चेहरे पे
इतनी आँखे नही है दुनिया में,जितने चेहरे है तेरे चेहरे पे
हम तुझे देख ही नही पाये,इतनी नजरे थी तेर चेहरे पे

उम्र गुजरी है मांझते खुद को,साफ है पर चमक नही पाये
डाल ने फूल की तरह पाला,खार थे ना महक नही पाये

और आसान हुआ जान से जाना मेरा,मेरे रहते नही आयेगा जमाना मेरा
उसने पूछा तो मेरे बारे मे कुछ मत कहना,और ना पूछा तो उसे हाल सुनाना मेरा
यार..छोडो ये दवाये,ये दुआये सारी उसक़ी बांहो से बदल दो ये सिरहाना मेरा
तुमको सीने से लगा लेगा मेरा दावा है उसको जाते ही कोई शेर सुनाना मेरा

आज फिर कुफ्र कमाया हमने,शोर को शेर सुनाया हमने
उसने महफिल से उठाया हमको जिसको पलको पे बिठाया हमने
जीना और उस पे खुशी से जीना,काम खुद अपना बढ़ाया हमने

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *