अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हो मुमकिन है..हम तो उस दिन राय देंगे ..जब धोखा खाएंगे-Nida Fazli

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अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हो मुमकिन है..हम तो उस दिन राय देंगे ..जब धोखा खाएंगे-Nida Fazli-इस पोस्ट मे निदा फाज़ली जी के द्वारा लिखी गयी कुछ नज्में और शायरिया पेश की गयी है,एक नज्म जो उन्होने अपने पिता के इंतकाल पर लिखी थी , भारत-पाकिस्तान युद्ध पर भी एक नज्म पेश की गयी है।

बात कम कीजे ,ज़हानत को छुपाते रहिये
ये बड़ा शहर है, कुछ दोस्त बनाते रहिये
दुशमनी लाख सही ,खत्म ना कीजे रिशता
दिल मिले या ना मिले,हाथ मिलाते रहिये

सफर मे धूप तो होगी,जो चल सको तो चलो
सभी है भीड़ में,तुम भी निकल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नही देता
मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो


अपना गम लेके कही ओर ना जाया जाये
घर मे बिखरी हुई चीजो को सजाया जाये
घर से मस्जिद है बहुत दूर,चलो युं करले
किसी रोते हुये बच्चे को हँसाया जाये


तन्हा तन्हा दुख झेलेंगे महफिल महफिल गायेंगे
जब तक आँसू पास रहेगे तब तक गीत सुनायेगे
तुम जो सोचो, वो तुम जानो हम तो अपनी कहते है
देर ना करना घर जाने मे,वरना घर खो जायेंगे
अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हो मुमकिन है
हम तो उस दिन राय देगें,जिस दिन धोखा खायेंगे
बच्चो के छोटे हाथो को,चाँद सितारे छूने दो
चार किताबे पढकर ये भी,हम जैसे हो जायेगे


तुम्हारी कब्र पर मै फातहा पढने नही आया
नही आया मुझे मालूम था,तुम मर नही सकते
तुम्हारी मौत की सच्ची खबर जिसने उड़यी थी ,वो झूठा था
वो तुम कब थे ?कोई सुखा हुआ पत्ता हवा से हिल के टूटा था
मेरी आँखे तुम्हारे मंजरो मे कैद है अब तक मै जो भी देखता हुँ
सोचता हुँ वो वही है,जो तुम्हारी नेक नामी और बदनामी की दुनिया थी
कही कुछ भी नही बदला तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियो मे साँस लेते है
मै लिखने के लिये जब भी कलम कागज उठाता हुँ,
तुम्हे बैठा हुआ मै अपनी ही कुर्सी मे पाता हुँ
बदन मे मेरे जितना भी लहू है वो तुम्हारी लग़्ज़िशो,नाकामियो के साथ बहता है
मेरी आवाज मे छुपकर तुम्हारा जेहन रहता है,मेरी बीमारियो मे तुम,मेरी लाचारियो मे तुम
तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है, वो झूठा है
तुम्हारी कब्र मे मै दफन हुँ,तुम मुझमे जिंदा हो
कभी फुर्सत मिले तो फातहा पढने चले आना


कराची एक माँ है,बंबई बिछड़ा हुआ बेटा
ये रिश्ता प्यार का पाकीजा रिश्ता है
जिसे अब तक ना कोई तोड़ पाया है
ना कोई तोड़ पायेगा
गलत है रेडियो,झूठी है सब अखबार की खबरे
ना मेरी माँ कभी तलवार ताने रन मे आयी है
ना मैने अपनी माँ के सामने बंदूक उठायी है


बजी घंटियाँ, सब्ज मीनार गुंजे
सुनहरी सदाओ ने उजली हवाओ की पेशानियो पर रहमत के, बरकत के पैगाम लिखे
वुजू करती सुबह खुली कोहनियो तक मुनव्वर हुई
झिलमिलाये अंधेरे ,भजन गाते आंचल ने पूजा की थाली से बांटे सवेरे
खुले द्वार बच्चो ने बस्ता उठाया,बुजुर्गो ने पेड़ो को पानी पिलाया
नये हादसो की खबर लेके बस्ती की गलियो मे अखबार आया
खुदा की हिफाजत की खातिर पुलिस ने पुजारी के मंदिर मे,मुल्ला की मस्जिद मे पहरा लगाया
खुदा इन मकानो मे लेकिन कहाँ था?सुलगते मोहल्लो के दीवारो दर मे वही जल रहा था
जहाँ तक धुआंं था


पिया नही जब गाँव में,आग लगे सब गाँव मे
कितनी मीठी थी इमली,साजन थे जब गाँव मे


सुना है मैने कई दिन से तुम परेशां हो
किसी ख्याल मे हर वक्त खोई रहती हो
गली के मोड़ तक जाती हो,लौट आती हो
कही की चीज कही रख के भूल जाती हो
किचिन मे रोज कोई प्याली तोड़ देती हो
मसाला पीस के सिल युंही छोड़ देती हो
नसीहतो से खफा,मश्वरो से उलझन सी
कमर मे दर्द की लहरे,रगो मे ऐंठन सी
यकीन जानो बहुत दूर भी नही वो घड़ी
हर एक फसाने का उनवा बदल चुका होगा
मेरे पलंग की चौड़ाई घट चुकी होगी
तुम्हारे जिस्म का सूरज पिघल चुका होगा


आँख को जाम लिखो,जुल्फ को बरसात लिखो
जिससे नाराज हो उस शख्स की हर बात लिखो


कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी,चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिसको चाहा उसे अपना ना सके,जो मिला उससे मोहब्बत ना हुई


कुछ भी बचा ना कहने को हर बात हो गयी
आओ कही शराब पिये रात हो गयी
नक्शा उठा के कोई नया शहर ढूंढिये
इस शहर मे तो सबसे मुलाकात हो गयी
रस्ते मे वो मिला था मै बच कर निकल गया
उसकी फटी कमीज मेरे साथ हो गयी


बस युं ही जीते रहो,कुछ ना कहो
सुबह जब सो के उठो घर के अफरात की गिनती कर लो
टाँग पे टाँग रखे रोज का अखबार पढो
इस जगह कहद गिरा ,जंग वहा पे बरसी
कितने महफूज हो तुम शुक्र करो
रेडियो खोल के फिल्मो के नये गीत सुनो
घर से जब निकलो तो,शाम तक के लिये ओंठो पे तबस्सुम सीलो
दोनो हाथो मे मुसासे भर लो मुँह मे कुछ खोखले बेमानी से जुमले रख लो
मुखतलिफ हाथो मे सिक्को की तरह घिसते रहो,कुछ ना कहो
उजली पोशाख समाजी इज्जत और क्या चाहिये जीने के लिये
रोज मिल जाती है पीने के लिये,बस युंही जीते रहो

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