“Zindagi”-“जिंदगी”-जिंदगी के विषय मे ये सुंदर क्विता को लिखा एवं प्रस्तुत Nidhi Narwal के द्वारा किया गया है।
दिल के मसले ,जिद्दी जज्बात,पूरे झगड़े और अधूरी बात
अनकहे सपने ,जागी सी रात,सलामत यादे और बिगड़े हालात
इनका हल करना है पर अभी अभी मालूम हुआ कल मरना है
कोई बता दे अब मै क्या करू ?जी लूं इन दिन बेफिक्री में
या मौत से मै जरा डरू,जाने किस घड़ी वो मिल जायेगी
मिलते ही मुझको निगल जायेगी,मै बादें कितनी खुली रखूं?
जब वो बाहें फैलाये नजर आयेगी,अब मै संभलना चाहती हुं
बिन रुके मै चलना चाहती हुँ,जो झड़ने को है एक बंद कली
वो कह रही मै खिलना चाहती हुँ,
अच्छा फिलहाल क्या ऐसा हो सकता है?कि मुझे किसी तरह
से पता लग पाये कि मेरे पास आखिर कितना वक्त बचा है
तो मै वक्त को जरा बांट लूंगी,महज मसर्रत मुसीबतो के ढेर
से मै ढूंढ लूंगी,मै छांट लूंगी,मुलाकाते नही तो बातें सही
आज रुक जाते है ना ,चलो जाते नही
चलो माना कि बहस मे शह और मात बची है
मेरे पास फकत ये रात बची है,
मै गिन रही हुँ अब कि कितनी सांसे आती है
मै सोच रही हुँ कितनी सांसे बाकि है?शायद ज्यादा नही..
या सच कहु तो पता नही..जिंदगी गणित नही है
कहाँ शुरु है ?,कहाँ खत्म है?,कहाँ ये ज्यादा ,कहाँ ये कम है?
ये कही पर लिखित नही है,
लेकिन सुन..सुन खुदा पाताल या ऐ हवा
मुझे जिसमे भी मिलने आना है
सुन.. तू बस मेरी मोहब्बत को..फर्ज को..जरा सब्र देना
मेरी लाश पर चड़े फूलो की टूटी कलियो को जरा असर देना
कफन को मेरे अशको के बोझ से दरख्वास्त है मत भर देना
जहाँ दफ्न हो कर भी वो आजाद रहे मेरी रूह को ऐसी कब्र देना
मेरी रूह को ऐसी कब्र देना मेरी रूह को ऐसी कब्र देना
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