Tum akeli nahi ho saheli-Tehzeeb Haafi

Poetry Details:-

Tum akeli nahi ho saheli-Tehzeeb Haafi-इस पोस्ट में TEHZEEB HAFI की लिखी गयी कुछ नई शायरियाँ पेश की गयी हैऔर नज़्म “एक सहेली की नसीहत” पेश की गयी है ,जोकि TEHZEEB HAFI के द्वारा प्रस्तुत की गयी है।

मैने जो कुछ भी सोचा हुआ है,मै वो वक्त आने पे कर जाऊंगा
तुम मुझे ज़हर लगते हो और मै किसी दिन तुम्हे पी के मर जाऊंगा

*** एक सहेली की नसीहत***

तुम अकेली नही हो सहेली जिसे अपने वीरान घर को सजाना था
और एक शायर के लफ्जो को सच मान कर उसकी पूजा मे दिन काटने थे
तुम से पहले भी ऐसा ही एक ख्वाब झूठी तस्सली मे जां दे चुका है
तुम्हे भी वो एक दिन कहेगा के वो तुम से पहले किसी को जबां दे चुका है
वो तो शायर है,और साफ ज़ाहिर है,शायर हवा की हथेली पे लिखी हुई
वो पहेली है जिसने अबध और अज़ल के दरीचो को उलझा दिया है
वो तो शायर है,शायर तमन्ना के सेहरा मे रम करने वाला हिरन है
शोब्दा शास सुबहो की पहली किरन है,अदब गाहे उलफ्त का मेमार है
वो तो शायर है,शायर को बस फिक्र लोह कलम है,उसे कोई दुख है
किसी का ना गम है,वो तो शायर है,शायर को क्या खौफ मरने से?
शायर तो खुद शाह सवार-ए- अज़ल है,उसे किस तरह टाल सकता है कोई
के वो तो अटल है,मै उसे जानती हुँ,वो लहर है जो किनारे से वापस पलटते हुये
मेरी खुरदरी एडियो पे लगी रेत भी और मुझे भी बहा ले गया
वो मेरे जंगलो के दरख्तो पे बैठी हुयी शहद की मक्खियाँ भी उड़ा ले गया
उसने मेरे बदन को छुआ और मेरी हडडियो से वो नज्मे कसीदी
जिन्हे पढ के मै काँप उठती हुँ और सोचती हुँ के ये मसला दिलबरी का नही
खुदा की कसम खा के कहती हुँ,वो जो भी कहता रहे वो किसी का नही
सहेली मेरी बात मानो,तुम उसे जानती ही नही,वो खुदा ए सिपाहे सुखन है
और तुम एक पत्थर पे नाखुन से लिखी हुई,उसी की ही एक नज़्म हो

–***–

मुझे आज़ाद कर दो एक दिन सब सच बता कर
तुम्हारे और उसके दरमियां क्या चल रहा है
अभी तक कारमद है तेरी आँखो का जादू
यहाँ अब तक वही मतरूक सिक्का चल रहा है
जुदा है इसलिये एक दूसरे से ये किनारे
किसी कश्ती पे इन दोनो मे झगड़ा चल रहा है
उसी पर छोड़ रखा है ये कारोबार-ए-उलफत
नही पूछा कभी उससे के कैसा चल रहा है

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