Tehzeeb Hafi’S Famous Shayari -2021-Tehzeeb Hafi

Poetry Details:-

Tehzeeb Hafi’S Famous Shayari -2021 –इस पोस्ट मे कुछ मशहुर नग्मे और शायरियाँ पेश की गयी है जो कि Tehzeeb Hafi जी के द्वारा लिखी एवं प्रस्तुत की गयी है।

कैसे उसने ये सब कुछ मुझसे ये छुप कर बदला
चेहरा बदला रस्ता बदला बाद मे घर बदला
मै उसके बारे मे ये कहता था लोगो से
मेरा नाम बदल देना वो शख्स अगर मुझसे बदला
वो भी कहता था मै तब्दीली ले आऊँगा
और फिर उसने नजरे बदली और नंबर बदला


जो मेरे साथ मोहब्बत मे हुई,आदमी एक दफा सोचेगा
रात इस डर मे गुजारी हमने,कोई देखेगा तो क्या सोचेगा


ये मैने कब कहा के मेरे हक मे फैसला करे
अगर वो मुझसे खुश नही है तो मुझे जुदा करे
मै उसके साथ जिस तरह गुजारता हुं जिंदगी
उसे तो चाहिये के मेरा शुक्रिया अदा करे


उसके हाथो मे जो खंज़र है,ज्यादा तेज़ है
और फिर बचपन से ही उसका निशाना तेज़ है
जब कभी उस पार जाने का ख्याल आता मुझे
कोई आहिस्ता से कहता था कि दरिया तेज है
आज मिलना था बिछड़ जाने की नीयत से हमें
आज भी वो देर से पहुचा है कितना तेज है
अपना सब कुछ हार के लौट आये हो ना मेरे पास
मै तुम्हे कहता भी रहता था कि दुनिया तेज है
आज उसके गाल चूमे है तो अंदाजा हुआ
चाय अच्छी है मगर थोड़ा सा मीठा तेज है


तुम्हे हुस्न पर दस्तरस है,मोहब्बत मोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आँखो के बारे में क्या जानते हो
ये जोग्राफिया,फलसफा,सायकोलोजी,साइंस रियाजी बगैरा
ये सब जानना भी अहम है ,मगर उसके घर का पता जानते हो


तलिस्मे यार ये पहलू निकाल लेता है
के पत्थरो से भी खुशबू निकाल लेता है
है बेलिहाज कुछ ऐसा कि आँख लगते ही
वो सर के नीचे से बाजू निकाल लेता है
कोई गली तेरे मफरूरे दो जहाँ की तरफ
नही निकलती मगर तू निकाल लेता है
खुदा बचाये वो कज्जाक शहर मे आया
हो जेब खाली तो आँसू निकाल लेता है
अजीब सर्फ-ए-तकल्लुम है यार आशुफता
के बात बात पे चाकू निकाल लेता है
अगर कभी उसे जंगल मे शाम हो जाये
तो अपनी जेब से जुगनू निकाल लेता है


थोड़ा लिखा और ज्यादा छोड़ दिया,आने वालो के लिये रस्ता छोड़ दिया
लड़कियाँ इश्क मे कितनी पागल होती है,फोन बजा और चुल्हा जलता छोड़ दिया
तुम क्या जानो उस दरिया पर क्या गुजरी,तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया


उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे
पलट के आये तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गयी तो
हम ऐसे बुज़दिल भी पहली सफ में खड़े मिलेंगे
तुझे ये सड़के मेरे तबस्सुत से जानती है
तुझे हमेशा ये सब इशारे खुले मिलेंगे
हमें बदन और नसीब दोनो सवारने है
हम उसके माथे का प्यार लेकर गले मिलेंगे


पायल कभी पहने कभी कंगन उसे कहना
ले आये मोहब्बत मे नयापन उसे कहना
मयकश कभी आँखो के भरोसे नही रहते
शबनम कभी भरती नही बर्तनो से कहना
घर बार भुला देती है दरिया की मोहब्बत
कशती मे गुजार आया हुं जीवन उसे कहना
इक शब से ज्यादा नही दुनिया के मसहरी
इक शब से ज्यादा नही दुल्हन उसे कहना
रह रह के दहक उठती है ये आतिश-ए-वहशत
दीवाने है सेहराओ का ईंधन उसे कहना


मेरे बस मे नही वरना कुदरत का लिखा हुआ काटता
तेरे हिस्से मे आये बुरे दिन कोई दूसरा काटता
लारियो से ज्यादा बहाव था तेरे हर इक लफ्ज मे
मै इशारा नही कट सकता तेरी बात क्या काटता
मैने भी जिंदगी और शबे हिज्र काटी है सबकी तरह
वैसे तो बेहतर तो ये था मै कम से कम कुछ नया काटता
तेरे होते हुये मोमबत्ती बुझायी किसी और ने
क्या खुशी रह गयी थी जन्मदिन की मै केक क्या काटता
कोई भी तो नही जो मेरे भूखे रहने पे नाराज हो
जेल मे तेरी तस्वीर होती तो हँस कर सजा काटता


बाद मे मुझसे ना कहना घर पलटना ठीक है
वैसे सुनने मे यही आया है रस्ता बंदा ठीक है
जेहन तक तस्लीम कर लेता है उसकी बरतरी
आँख तक तस्दीक कर देती है बंदा ठीक है


अब वो मिलने आये तो उसको घर ठहराना
धूप पड़े उस पर तो तुम बादल बन जाना
तुम को दूर से देखते देखते गुजर रही है
मर जाना पर किसी गरीब के काम ना आना


तू भी कब मेरे मुताबिक मुझे दुख दे पाया
किसने भरना था ये पैमाना अगर खाली था
एक दुख ये के तू मिलने नही आया मुझसे
एक दुख ये के उस दिन मेरा घर खाली था


मुझसे मिलता है पर जिस्म की सरहद पार नही करता
इसका मतलब तू भी मुझसे सच्चा प्यार नही करता
दुश्मन अच्छा हो तो जंग मे दिल को ढाँढस रहती है
दुश्मन अच्छा हो तो वो पीछे से वार नही करता
रोज तुझे टूटे दिल कम कीमत पर लेना पड़ते है
इससे अच्छा था तू इश्क का कारोबार नही करता
शैतान के दिल पर चलता हुं सीनो मे सफर करता हुं
उस आँख का क्या बचता है मै जिस आँख मे घर करता हुं
जो मुझमे उतरे है उनको मेरी लहरो का अंदाजा है
दरियाओ मे उठता बैठता हुं सैलाब बसर करता हुं
मेरी तन्हाई का बोझ तुम्हारी बिनाई ले डूबेगा
मुझे इतने करीब से मत देखो आँखो पर असर करता हुँ


जो तेरे साथ रहते हुये सौ गवार हो
लानत हो ऐसे शख्स पे और बेशुमार हो
एक आस्तीं चढाने की आदत को छोड़कर
‘हाफी’ तुम आदमी तो बहुत शानदार हो


आईने आँख मे चुभते थे,बिस्तर से बदन कतराता था
इक याद बसर करती थी मुझे,मै साँस नही ले पाता था
इक शख्स के हाथ मे था सब कुछ,मेरा खिलना भी मुरझाना भी
रोता था तो रात उजड़ जाती हँसता तो दिन बन जाता था
मै रब से राबते मे रहता मुमकिन है उससे राबता हो
मुझे हाथ उठाना पड़ते थे,तब जा के वो फोन उठाता था
मुझे आज भी याद है बचपन मे कभी उस पर अगर नजर पड़ती
मेरे बस्ते से फूल बरसते थे मेरी तख्ती पर दिल बन जाता था
हम एक जिंदान मे जिंदा थे हम एक जंजीर मे बड़े हुये
एक दूसरे को कभी देखके हम हँसते थे तो रोना आता था
वो जिस्म नजर अंदाज नही हो पाता था इन आँखो से
मुजरिम ठहराता था अपना कहने को तो घर ठहराता था


टूट भी जाऊ तो तेरा क्या है,रेत से पूछ आईना क्या है
फिर मेरे सामने उसी का जिक्र,आपके साथ मसला क्या है


तेरा चुप रहना मेरे जेहेन मे क्या बैठ गया
इतनी आवाजे तुझे दी कि गला बैठ गया
युं नही है के फकत मै ही उसे चाहता हुं
जो भी उस पेड़ की छांव में गया बैठ गया
इतना मीठा था वो गुस्से भरा लेहजा मत पू्छ
उसने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया
उसकी मर्जी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इसपे क्या लडना कि फलां मेरी जगह बैठ गया
बज्मे-ए-जाना मे नशिशते नही होती मखसूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया


किसे खबर है कि उम्र बस इसपे गौर करने मे कट रही है
ये उदासी हमारे जिस्मो से किस खुशी मे लिपट रही है
अजीब दुख है हम उसके होकर भी उसको छूने से डर रहे है
अजीब दुख है हमारे हिस्से की आग ओरो मे बँट रही है
मै उसको हर रोज बस यही एक झूठ सुनने को फोन करता हुं
सुनो यहा कोई मसला है तुम्हारी आवाज कट रही है

 

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