Poetry Details
इस पोस्ट मे कुछ मशहुर नग्मे और शायरियाँ पेश की गयी है जो कि Tehzeeb Hafi जी के द्वारा लिखी एवं प्रस्तुत की गयी है।
वहां उसने जाने की बात की यहां मेरा चेहरा उतर गया
मेरा आईना मुझे देखकर मेरे खालो ख़त से मुकर गया
वह मेरा नहीं भी तो क्या हुआ मुझे उसकी खुशियां अज़ीज़ है
उसे पहली बेटी अता हुई मेरा घर खिलौनों से भर गया
हमें फुर्सत ही कहां मिली कि हम एक दूजे को देखते हैं
कभी चांद आ गया अब्र में, कभी मैं भी छत से उतर गया
मैं मोहब्बत हूं कि कबील से किसी घर का आखिरी फर्द हूं
कहीं चांद देखा तो रो पड़ा ,कही फ़ूल देखे तो डर गया
तू पुकारता ना फिरे कही मुझे दस्ते-जौं में ग़ुरेज़ में
मैं हुं एक लम्हा रांयगां गुज़र गया तो गुज़र गया
हर एक दिन हम ऐसे दफ्तर काटते हैं फाइल भौंकती है और अफसर काटते हैं
हमसे पूछो क्या है वह याकूत से होंठ हम कीमती कान में पत्थर काटते हैं
अगर कभी वह बाग की सैर को आ जाए भंवरे फुल समझ कर चक्कर काटते हैं
तू है जिसकी हिज्र हंसी नहीं रोक सका हम जैसे तो वस्ल भी रो कर काटते हैं
आज भी उसकी कॉल अगर आ जाती है दिल पर पत्थर रखकर नंबर काटते हैं
यूं उसने एक दिन काटा था मेरे साथ जैसे लकड़हारा कीकर काटते हैं
अब मज़ीद उससे ये रिशता नही रखा जाता
जिससे इक शख्स का पर्दा नही रखा जाता
एक तो बस मे नही,तुझसे मोहब्बत ना करूं
और फिर हाथ भी हल्का नही रखा जाता
पढ़ने जाता हूं तो तस्मे नहीं बांधे जाते
घर पलटता हूं तो बस्ता नहीं रखा जाता
ना पूछो हम दियो का काम कैसा चल रहा है?
हवाएं चल रही हैं और धंधा चल रहा है
मुझे आजाद कर दो एक दिन सब सच बात कर
तुम्हारे और उसके दरमियां क्या चल रहा है
अभी तक कारामद है तेरी आंखों का जादू
यहां अब तक वही मतरूक़ सिक्का चल रहा है
जुदा है इसलिए एक दूसरे से यह किनारे
किसी कश्ती पर इन दोनों में झगड़ा चल रहा है
और इस पर छोड़ रखा है यह कारोबार ए उल्फत
नहीं पूछा कभी उससे कि कैसा चल रहा है?
मैने जो कुछ भी सोचा हुआ है,मै वो वक्त आने पे कर जाऊंगा
तुम मुझे ज़हर लगते हो और मै किसी दिन तुम्हे पी के मर जाऊंगा
तू तो बीनाई है मेरी,तेरे अलावा मुझे कुछ भी दिखता नही
मैने तुझको अगर तेरी घर पे उतारा तो मै कैसे घर जाऊंगा?
मै खला हुँ,खलाओ का नेमुल्बदल खुद खला है तुम्हे क्या पता?
मै तुम्हारी तरह कोई खाली जगह तो नही हुँ कि भर जाऊंगा
एक दिन बैठे-बैठे मुझे अपनी दुनिया बुरी लग गई
जिसको आबाद करते हुए मेरे मां-बाप की जिंदगी लग गई
सब सवालात अज़बर थे जो इसके बाद में मुझसे पूछे गए
पर सफारी पर इस महकमें मैं किसी और की नौकरी लग गई
क्या करूं उसकी आंखों के आगे अंधेरा नहीं देख सकता था मैं
आप कहते रहे कि गलत आदमी पर मेरी रोशनी लग गई
दिल किसी सम्त किसी सम्त कदम जाता है तेरे मौजूद के चक्कर में अदम जाता है
और तो कुछ नहीं होता तेरे मिलने से मगर एक तूफान-एं-ताल्लुक है जो थम जाता
मुझको सावन में कभी खत ना रवाना करना जाते जाते तेरे मक्तू्ब से नम जाता है
नगमा ए तूले श्बे हिज्र मेरे बस का नहीं मैं अगर लय को पकड़ता हूं तो सम जाता है
इसलिए उससे कहा खुद से परे जाने का जिस तरफ हम उसे कहते हैं वह कम जाता है
मुझे इन छ्तरियों से याद आया तुम्हें कुछ बारिशो से याद आया
मैं तेरे साथ चलना चाहता था तेरी बैसाखियों से याद आया
हजारों चाहने वाले थे उसके वह जंगल पंछीयो याद आया
वहम आई हवा और रोशनी भी कपस भी खिड़कियों से याद आया
बदन पर फूल मुरझाने लगे हैं तुम्हारे नाखूनों से याद आए
जाते-जाते तुम पर एक एहसान न कर दूं तुम को छूकर अंदर से वीरान ना कर दूं
जिससे बचपन की यारी पर हरफ़ आये ऐसी मोहब्बत यारों पे कुर्बान ना कर दूं
मुझसे जुदा होने की बात ना करना फिर से डर लगता है दुनिया को शमशान ना कर दूं
अगर तू मुझे शर्म आती रहेगी मोहब्बत हाथ से जाती रहेगी
यह जंगली फुल मेरे बस में कब है,यह लड़की यूं ही जज्बाती रहेगी
तेरी तस्वीर हट जायेगी लेकिन नजर दीवार पर जाती रहेगी
दरीचो से हवा आए ना आए तेरी आवाज तो आती रहेगी
तुझे मैं इस तरह छूता रहा तो बदन की ताज़गी जाती रहेगी
जब वह किस्सा याद आता है आंख मेरी भर आती है
लड़के की शादी होती है और लड़की मर जाती है
और दिखने में तो शहर की रहने वाली लगती है
लेकिन जिस्म में खेतों की खुशबू है यह लड़की देहाती है
मल्लाहो का ध्यान बटा कर दरिया चोरी कर लेना है
कतरा कतरा करके मैने सारा चोरी कर लेना है
तुम उसको मजबूर किये रखना बातें करते रहने पर
इतनी देर में मैने उसका लहज़ा चोरी कर लेना है
आज तो मै अपनी तस्वीर को कमरे ही मे भुल आया हुँ
लेकिन उसने इक दिन मेरा बटुआ चोरी कर लेना है
मैं चाहता हूं वह मेरी जबीं पर बोसा दे
मगर जली हुई रोटी को घी नहीं लगता
यकीन क्यों नहीं आता तुझे मेरे दिल पर
यह फल कहां से तुझे मौसमी नहीं लगता
मैं उससे मिलने किसी काम से नहीं आता
उसे यह काम कोई काम ही नहीं लगाता
गले तो लगाना है उससे कहो अभी लग जाए
यहीं ना हो मेरा उसके बगैर जी लग जाए
मैं आ रहा हूं तेरे पास यह ना हो कि कहीं
तेरा मजाक हो और मेरी जिंदगी लग जाये
हमारे हाथ ही जलते रहेंगे सिगरेट से
कभी तुम्हारे भी कपड़ों पर स्त्री लग जाए
क्लासरूम हो या हश्र कैसे मुमकिन है?
हमारे होते तेरी गैर हाजीरी लग जाए
मैं पिछले 20 बरस से तेरी गिरफ्त में हूं
क्या इतनी देर में तो कोई आईजी लग जाए
दिल को अब तुझसे जुदा होकर भी जीना आ गया
इस झरोखे में हवा का ताजा झोंका आ गया
इन अंधेरों में पहुंच पाना बहुत दुश्वार था
मैं तेरी आवाज पर पलकें झपकता आ गया
एहतरामन उंगलियो से हॉंठो गिले कर लिया
जब मेरी दहलीज़ पर खुद बह के दरिया आ गया
इस जहां में मेरे जैसा कोई बदकिस्मत भी है
जिसे जो कुछ भी उतार मुझको पूरा आ गया
वह तो कहता था कि तुमसे अच्छे 100 मिल जाएंगे
आज उसे इस हाल में देखा तो रोना आ गया
किसे खबर है कि उम्र बस इसपे गौर करने मे कट रही है
ये उदासी हमारे जिस्मो से किस खुशी मे लिपट रही है
अजीब दुख है हम उसके होकर भी उसको छूने से डर रहे है
अजीब दुख है हमारे हिस्से की आग औरों में बट रही है
मै उसको हर रोज बस यही एक झूठ सुनने को फोन करता हुं
सुनो यहा कोई मसला है तुम्हारी आवाज कट रही है
सो इस ताल्लुक में जो गलतफहमी थी अब दूर हो रही है
रुकी हुई गाड़ियों के चलने का वक्त है धुंध छट रही है
जेहन से यादो के लशकर जा चुके
वो मेरी मेहफिल से उठकर जा चुके
मेरा दिल भी जैसे पाकिस्तान है
सब हकुमत करके बाहर जा चुके
नहीं था अपना मगर फिर भी अपना-अपना लगा
किसी से मिलकर बहुत देर बाद अच्छा लगा
तुम्हें लगा था मैं मर जाऊंगा तुम्हारे बगैर
बताओ फिर तुम्हें मेरा मजाक कैसा लगा
घर मे भी दिल नही लग रहा,काम पर भी नही जा रहा
जाने क्या खौफ है?जो तुझे चूम कर भी नही जा रहा
रात के तीन बजने को है,यार ये कैसा महबुब है?
जो गले भी नही लग रहा और घर भी नही जा रहा
रातें किसी याद में काटती हैं और दिन दफ्तर खा जाता है
दिल जीने पर मायल होता है तो मौत का डर खा जाता है
सच पूछो तो तहज़ीब हाफी मैं ऐसे दोस्त से हजिस हूं
मिलता है तो बात नहीं करता और फोन पर सर खा जाता है
उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे
पलट के आये तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गयी तो
हम ऐसे बुज़दिल भी पहली सफ़ में खड़े मिलेंगे
तुझे ये सड़के मेरे तबस्सुत से जानती है
तुझे हमेशा ये सब इशारे खुले मिलेंगे
ना जाने कब उसकी आँखे छलकेगी मेरे गम में
ना जाने किस दिन मुझे ये बर्तन भरे मिलेंगे
तू जिस तरह चूम कर हमें देखता है ‘हाफी’
हम एक दिन तेरे बाजूओं में मरे मिलेगे
तुम्हे हुस्न पर दस्तरस है,मोहब्बत मोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आँखो के बारे में क्या जानते हो
ये जोग्राफिया,फलसफा,सायकोलोजी,साइंस रियाजी बगैरा
ये सब जानना भी अहम है मगर उसके घर का पता जानते हो
जिस शख्स को देखकर जीते हो खुद उसको बुरा कह देते हो
‘हाफी’ तुम्हें याद नहीं रहता तुम पी कर क्या कह देते हो
उससे मिलने का अभी सोच रहा होता हूं और दर पर कोई जंजीर लगा देता है
जब भी सो्चु कि उसे मैं भुला देना है फेसबुक पर कोई तस्वीर लगा देता है
मैं यह कब कहा कि मुझको अकेला नहीं छोड़ता,
छोड़ता है मगर एक दिन से ज्यादा नहीं छोड़ता
कौन सेहराओं की प्यास है इन मकानों की बुनियाद में
बारिशों से अगर बच भी जाए तो दरिया नहीं छोड़ता
दूर उम्मीद की खिड़कियों से कोई झांकता है मुझे
और मेरे गली छोड़ने तक दरींचा नहीं छोड़ता
मैं जिसे छोड़कर तुमसे छुपा कर मिला हूं
अगर आज वो देख लेता तो शायद वो दोनों को जिंदा नही छोड़ता
कोन-ओ-इम्कान में दो तरह ही के तो शोब्दाबाज़ है
एक पर्दा गिरता है और एक पर्दा नही छोड़ता
लोग कहते है ‘तहज़ीब हाफी’ उसे छोड़्कर ठीक है
हिज्र इतना ही आसां होता तो तौसां नही छोड़ता
मोहब्बत में जो सुन रखा था वैसा कुछ नही होता
के इसमे वंदा मरता है ,ज्यादा कुछ नही होता
चलो माना कि मेरा दिल मेरे महबूब का घर है
पर उसके पीछे उसके घर में क्या क्या कुछ नही होता
ये फिल्मो में ही सब को प्यार मिल जाता है आखिर में
मगर सचमुच में इस दुनिया में ऐसा कुछ नही होता
मेरी गुरबत ने मेरी दुनिया छीन ली ‘हाफी’
मेरी अम्मा तो कहती थी कि पैसा कुछ नही होता
भरम रखा है तेरे हिज्र का वर्ना क्या होता है मैं रोने पर आ जाऊं तो झरना क्या होता है
मौत तो मेरी मुट्ठी में रहती है उसकी खातिर इससे भी आगे जा सकता हूं मरना क्या होता है
मेरा छोड़ो मैं नहीं थकता मेरा काम यही है लेकिन तुमने इतने प्यार का करना क्या होता
जिन पर वह आंखें उठी हैं उनसे जाकर पूछो डूबना क्या होता है पार उतरना क्या होता है
तूने क्या किंदील जला दी शहजादी ,सुर्ख हुई जाती है वादी शहजादी
शीश महल को साफ किया तेरे कहने पर,आईनो से गर्त हटा दी शहजादी
तेरे ही कहने पर एक सिपाही ने अपने घर को आग लगा दी शहजादी
मैं तेरे दुश्मन लश्कर का शहजादा,जंग करूं के तुझसे शादी शहजादी