Tehzeeb Hafi – The University Of Lahore

Poetry Details:-

Tehzeeb Hafi – The University Of Lahore –इस पोस्ट मे कुछ मशहुर नग्मे और शायरियाँ पेश की गयी है जो कि Tehzeeb Hafi जी के द्वारा लिखी एवं प्रस्तुत की गयी है।

ये मैने कब कहा के मेरे हक मे फैसला करे
अगर वो मुझसे खुश नही है तो मुझे जुदा करे
मै उसके साथ जिस तरह गुजारता हुं जिंदगी
उसे तो चाहिये के मेरा शुक्रिया अदा करे
मेरी दुआ है,और इक तरह से बद्दुआ भी है
खुदा तुम्हे तुम्हारे जैसी बेटियाँ अता करे
बना चुका हुँ मै,मोहब्बतो के दर्द की दवा
अगर किसी को चाहिये तो मुझसे राब्ता करे

 

अब मज़ीद उससे ये रिशता नही रखा जाता
जिससे इक शख्स का पर्दा नही रखा जाता
एक तो बस मे नही,तुझसे मोहब्बत ना करूं
और फिर हाथ भी हल्का नही रखा जाता
पढने जाता हुँ,तो तस्मे नही बांधे जाते
घर पलटता हुँ तो बस्ता नही रखा जाता

 

मेरे बस मे नही वरना कुदरत का लिखा हुआ काटता
तेरे हिस्से मे आये बुरे दिन कोई दूसरा काटता
लारियो से ज्यादा बहाव था तेरे हर इक लफ्ज मे
मै इशारा नही कट सकता तेरी बात क्या काटता
तेरे होते हुये मोमबत्ती बुझायी किसी और ने
क्या खुशी रह गयी थी जन्मदिन की मै केक क्या काटता
कोई भी तो नही जो मेरे भूखे रहने पे नाराज हो
जेल मे तेरी तस्वीर होती तो हँस कर सजा काटता

 

ये किस तरह का ताल्लुक है आपका मेर साथ
मुझे ही छोड़ के जाने का मशवरा मेरे साथ
वो झाँकता नही खिड़की से दिन निकलता है
तुझे यकीन नही आ रहा तो आ मेरे साथ
यही कही हमे रस्तो ने बद्दुआ दी थी
मगर मै भूल गया और कौन था मेरे साथ?


अब उस जानिब से इस कसरत से तोहफे आ रहे है
के हम घर मे नयी अल्मारीयाँ बनवा रहे है

 

जो तेरे साथ रहते हुये सौ गवार हो
लानत हो ऐसे शख्स पे और बेशुमार हो
अब इतनी देर भी ना लगा, ये ना हो कहीं
तू आ चुका हो और तेरा इंतजार हो
एक आस्तीं चढाने की आदत को छोड़कर
‘हाफी’ तुम आदमी तो बहुत शानदार हो


अब वो मिलने आये तो उसको घर ठहराना
धूप पड़े उस पर तो तुम बादल बन जाना
तुम को दूर से देखते देखते गुजर रही है
मर जाना पर किसी गरीब के काम ना आना


रुक गया है या वो चल रहा है हमको सब कुछ पता चल रहा है
मेरा लिखा हुआ रायगां था,उसका काटा हुआ चल रहा है
मुझसे कल वक्त पूछा किसी ने,कह दिया के बुरा चल रहा है
उसने शादी भी की है किसी से,और गाँव मे क्या चल रहा है

 

पलट के आये तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे
उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गयी तो
हम ऐसे बुज़दिल भी पहली सफ में खड़े मिलेंगे
तुझे ये सड़के मेरे तबस्सुत से जानती है
तुझे हमेशा ये सब इशारे खुले मिलेंगे
हमें बदन और नसीब दोनो संवारने है
हम उसके माथे का प्यार लेकर गले मिलेंगे
ना जाने कब उसकी आँखे छलकेंगी मेरे ग़म मे
ना जाने किस दिन मुझे ये बर्तन भरे मिलेंगे
तू जिस तरह चूम कर हमें देखता है हाफी
हम एक दिन तेरे बाजुओ मे मरे मिलेंगे

 

उसके हाथो मे जो खंज़र है,ज्यादा तेज़ है
और फिर बचपन से ही उसका निशाना तेज़ है
जब कभी उस पार जाने का ख्याल आता मुझे
कोई आहिस्ता से कहता था कि दरिया तेज है
अपना सब कुछ हार के लौट आये हो ना मेरे पास
मै तुम्हे कहता भी रहता था कि दुनिया तेज है
आज मिलना था बिछड़ जाने की नीयत से हमें
आज भी वो देर से पहुचा है कितना तेज है
आज उसके गाल चूमे है तो अंदाजा हुआ
चाय अच्छी है मगर थोड़ा सा मीठा तेज है

 

आईने आँख मे चुभते थे,बिस्तर से बदन कतराता था
इक याद बसर करती थी मुझे,मै साँस नही ले पाता था
इक शख्स के हाथ मे था सब कुछ,मेरा खिलना भी मुरझाना भी
रोता था तो रात उजड़ जाती, हँसता तो दिन बन जाता था
मै रब से राबते मे रहता मुमकिन है उससे राबता हो
मुझे हाथ उठाना पड़ते थे,तब जा के वो फोन उठाता था
मुझे आज भी याद है बचपन मे कभी उस पर अगर नजर पड़ती
मेरे बस्ते से फूल बरसते थे मेरी तख्ती पर दिल बन जाता था

 

तुम्हे हुस्न पर दस्तरस है,मोहब्बत मोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आँखो के बारे में क्या जानते हो
ये जोग्राफिया,फलसफा,सायकोलोजी,साइंस रियाजी बगैरा
ये सब जानना भी अहम है ,मगर उसके घर का पता जानते हो

 


नही आता किसी पे दिल हमारा,वही कश्ती वही साहिल हमारा
तेरे दर पर करेंगे नौकरी हम,तेरी गलियाँ है मुस्तकबिल हमारा
कभी मिलता था कोई होटलो मे,कभी भरता था कोई बिल हमारा


किसे खबर है कि उम्र बस इसपे गौर करने मे कट रही है
ये उदासी हमारे जिस्मो से किस खुशी मे लिपट रही है
मै उसको हर रोज बस यही एक झूठ सुनने को फोन करता हुं
सुनो यहा कोई मसला है तुम्हारी आवाज कट रही है


हम मिलेंगे कही,अजनबी शहर की ख्वाब होती हुई शाहाराओ पे और शाहाराओ पे फैली हुई धूप में
एक दिन हम कहीं साथ होगे वक्त की आंधियो से अटी साहतो पर से मट्टी हटाते हुये,एक ही जैसे आँसू बहाते हुये
हम मिलेंगे घने जंगलो की हरी घास पर और किसी शाखे नाजुक पर पड़ते हुये बोझ की दास्तानो मे खो जायेगे
हम सनोबर के पेड़ो की नोकीले पत्तो से सदियो से खोये हुये देवताओ की आँखे चभो जायेंगे
हम मिलेंगे कही बर्फ के वादियो मे घिरे पर्वतो पर,बांझ कब्रो मे लेटे हुये कोह पेमाओ की याद में नज्म कहते हुये
जो पहाड़ो की औलाद थे,और उन्हे वक्त आने पर माँ बाप ने अपनी आगोश मे ले लिया
हम मिलेंगे कही शाह सुलेमान के उर्स मे हौज़ की सीढियो पर वज़ू करने वालो के श्फ़ाक चेहरो के आगे
संगेमरमर से आरस्ता फर्श पर पैर रखते हुये,आह भरते हुये और दरख्तो को मन्नत के धागो से आजाद करते हुये हम मिलेंगे
हम मिलेंगे कही नारमेंडी के साहिल पे आते हुये अपने गुम गश्तरश्तो की खाके सफर से अटी वर्दियो के निशां देख कर
मराकिश से पलटे हुये एक जर्नेल की आखिरी बात पर मुस्कुराते हुये,इक जहाँ जंग की चोट खाते हुये हम मिलेंगे
हम मिलेंगे कही रूस की दास्ताओ की झूठी कहानी पे आखो मे हैरत सजाये हुये,शाम लेबनान बेरूत की नरगिसी चश्मूरो की आमद के
नोहू पे हँसते हुये,खूनी कज़ियो से मफलूह जलबानियाँ के पहाड़ी इलाको मे मेहमान बन कर मिलेंगे
हम मिलेंगे एक मुर्दा जमाने की खुश रंग तहज़ीब मे ज़स्ब होने के इमकान मे,इक पुरानी इमारत के पहलू मे उजड़े हुये लाँन में
और अपने असीरो की राह देखते पाँच सदियो से वीरान जिंदान मे
हम मिलेंगे तमन्नाओ की छतरियो के तले ,ख्वाहिशो की हवाओ के बेबाक बोसो से छलनी बदन सौंपने ले लिये रास्तो को
हम मिलेंगे जमीं से नमूदार होते हुये आठवें बर्रे आज़म में उड़ते हुये कालीन पर
हम मिलेंगे किसी बार में अपनी बकाया बची उम्र की पायमाली के जाम हाथ मे लेंगे और एक ही घूंट में हम ये सैयाल अंदर उतारेंगे
और होश आने तलक गीत गायेंगे बचपन के किस्से सुनाता हुआ गीत जो आज भी हमको अज़बर है बेड़ी बे बेड़ी तू ठिलदी तपईये पते पार क्या है पते पार क्या है?
हम मिलेंगे बाग मे ,गांव मे ,घूप में, छांव में, रेत मे, दश्त में, शहर मे,मस्जिदो में,कलीसो में,मंदर मे ,मेहराब मे, चर्च में,मूसलाधार बारिश मे
बाजार मे,ख्वाब मे,आग मे,गहरे पानी में,गलियो मे ,जंगल में और आसमानो मे
कोनो मकां से परे गैर आबद सैयाराए आरजू मे सदियो से खाली पड़ी बेंच पर
जहा मौत भी हम से दस्तो गरेबां होगी,तो बस एक दो दिन की मेहमान होगी

 

मै आईनो से गुरेज करते हुये पहाड़ो की कोख मे साँस लेने वाली उदास
झीलो मे अपने चेहरे का अक्स देखू तो सोचता हुँ,कि मुझ मे ऐसा भी
क्या है मरियम?तुम्हारी बेसाख्ता मोहब्बत जमीं पे फैले हुये समंदर
की वो सतहो से मावरा है,मोहब्बतो के समंदरो मे बस एक वो हीरा-ऐ-हिज्र
है जो बुरा है मरियम,खलान गर्दो को जो सितारे मुआवजे मे मिले थे,वो
उनकी रोशनी मे सोचते है कि वक्त ही तो खुदा है मरियम,और इस ताल्लुक
की गठरियो मे,रुकी हुई साअतो से हट कर मेरे लिये और क्या है मरियम?
अभी बहोत वक्त है कि हम वक्त दे जरा एक दूसरे को मगर हम एक साथ
रहकर भी खुश ना रह सके तो माफ करना,कि मैने बचपन ही दुख की दहलीज
पर गुजारा मै उन चिरागो का दुख है जिनकी लबे शबे इंतजार मे बुझ गयी,मगर
उनसे उठने वाला धुंआ जमानो मकां मे फैला हुआ है,मै कोसारो और उनके
जिस्मो से बहने वाली उन आबशारो का दुख हुँ जिनको जमीं की गलियो पे
रेंगते रेंगते जमाने गुजर गये है, जो लोग दिल से उतर गये है ,किताबे आँखो
पे रख के सोये थे मर गये है मै उनका दुख हुँ,जो जिस्म लज्जती से उकता के
आईनो की तसल्लियो मे पले बडे है ,मै उनका दुख हुँ,मै घर से भागे हुये का
दुख हुँ,मै रात जागे हुये का दुख हुँ,मै साहिलो से बधी हुई कस्तियो का दुख हुँ,
मै लापता लड़कियो का दुख हुँ,खुली हुई खिड़कियो का दुख हुँ,मिटी हुई तख्तियो
का दुख हुँ,थके हुये बादलो का दुख हुँ,जले हुये जंगलो का दुख हुँ,जो खुल के बरसी
नही है मै उस घटा का दुख हुँ,जमीं क दुख हुँ,खुदा का दुख हुँ,बला क दुख हुँ,जो
शाख सावन मे फूटती वो शाख तुम हो,जो पींग बारिश के बाद बन बन के टूटती है
वो पींग तुम हो ,तुम्हारे होठो से सातो से समातो का सबक लिया है तुम्हारी ही
साक-ए-संदली से समंदरो ने नमक लिया है,तुम्हारा मेरा मामला ही जुदा है मरियम
,तुम्हे तो सब कुछ पता है मरियम!


तेरा चुप रहना मेरे जेहेन मे क्या बैठ गया
इतनी आवाजे तुझे दी कि गला बैठ गया
युं नही है के फकत मै ही उसे चाहता हुं
जो भी उस पेड़ की छांव में गया बैठ गया
इतना मीठा था वो गुस्से भरा लेहजा मत पू्छ
उसने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया
उसकी मर्जी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इसपे क्या लडना कि फलां मेरी जगह बैठ गया
बज्मे-ए-जाना मे नशिशते नही होती मखसूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया

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