Tehzeeb Hafi Latest Mushaira -Tehzeeb Hafi

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Tehzeeb Hafi Latest Mushaira –इस पोस्ट मे कुछ मशहुर नग्मे और शायरियाँ पेश की गयी है जो कि Tehzeeb Hafi जी के द्वारा लिखी एवं प्रस्तुत की गयी है।

अब मज़ीद उससे ये रिशता नही रखा जाता
जिससे इक शख्स का पर्दा नही रखा जाता
एक तो बस मे नही,तुझसे मोहब्बत ना करूं
और फिर हाथ भी हल्का नही रखा जाता
पढने जाता हुँ,तो तस्मे नही बांधे जाते
घर पलटता हुँ तो बस्ता नही रखा जाता
दरो दिवार पे जंगल का गुमा होता है
मुझसे अब घर मे परिंदा नही रखा जाता

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तुझे भी खौफ था तेरी मुखालफत करुंगा मै
और अब अगर नही करुंगा तो गलत करुंगा मै
उसे कहो कि अहदे तरके रस्म और आह लिख कर दे
कलाई काट कर लहू से दस्खत करुंगा मै

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मुझसे मिलता है पर जिस्म की सरहद पार नही करता
इसका मतलब तू भी मुझसे सच्चा प्यार नही करता
दुश्मन अच्छा हो तो जंग मे दिल को ढाँढस रहती है
दुश्मन अच्छा हो तो वो पीछे से वार नही करता

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शैतान के दिल पर चलता हुं सीनो मे सफर करता हुं
उस आँख का क्या बचता है मै जिस आँख मे घर करता हुं
जो मुझमे उतरे है उनको मेरी लहरो का अंदाजा है
दरियाओ मे उठता बैठता हुं सैलाब बसर करता हुं
मेरी तन्हाई का ज़हर तुम्हारी बिनाई ले डूबेगा
मुझे इतने करीब से मत देखो आँखो पर असर करता हुँ

-* –

उसके हाथो मे जो खंज़र है,ज्यादा तेज़ है
और फिर बचपन से ही उसका निशाना तेज़ है
जब कभी उस पार जाने का ख्याल आता मुझे
कोई आहिस्ता से कहता था कि दरिया तेज है
आज मिलना था बिछड़ जाने की नीयत से हमें
आज भी वो देर से पहुचा है कितना तेज है
अपना सब कुछ हार के लौट आये हो ना मेरे पास
मै तुम्हे कहता भी रहता था कि दुनिया तेज है
आज उसके गाल चूमे है तो अंदाजा हुआ
चाय अच्छी है मगर थोड़ा सा मीठा तेज है

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तुम्हे हुस्न पर दस्तरस है,मोहब्बत मोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आँखो के बारे में क्या जानते हो
ये जोग्राफिया,फलसफा,सायकोलोजी,साइंस रियाजी बगैरा
ये सब जानना भी अहम है ,मगर उसके घर का पता जानते हो

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जो मेरे साथ मोहब्बत मे हुई,आदमी एक दफा सोचेगा
रात इस डर मे गुजारी हमने,कोई देखेगा तो क्या सोचेगा

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उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे
पलट के आये तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गयी तो
हम ऐसे बुज़दिल भी पहली सफ में खड़े मिलेंगे
तुझे ये सड़के मेरे तबस्सुत से जानती है
तुझे हमेशा ये सब इशारे खुले मिलेंगे
हमें बदन और नसीब दोनो सवारने है
हम उसके माथे का प्यार लेकर गले मिलेंगे
ना जाने कब उसकी आँखे छलकेगी मेरे ग़म में
ना जाने किस दिन मुझे ये बर्तन भरे मिलेंगे
तू जिस तरह से चूम कर देखता है ‘हाफी’
हम एक दिन तेरे बाजुओ मे मरे मिलेंगे

-*-

पायल कभी पहने कभी कंगन उसे कहना
ले आये मोहब्बत मे नयापन उसे कहना
मयकश कभी आँखो के भरोसे नही रहते
शबनम कभी भरती नही बर्तनो से कहना
घर बार भुला देती है दरिया की मोहब्बत
कशती मे गुजार आया हुं जीवन उसे कहना

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घर मे भी दिल नही लग रहा,काम पर भी नही जा रहा
जाने क्या खौफ है?जो तुझे चूम कर भी नही जा रहा
रात के तीन बजने को है,यार ये कैसा महबुब है?
जो गले भी नही मिल रहा और घर भी नही जा रहा

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अब वो मिलने आये तो उसको घर ठहराना
धूप पड़े उस पर तो तुम बादल बन जाना
तुम को दूर से देखते देखते गुजर रही है
मर जाना पर किसी गरीब के काम ना आना

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इक तेरा हिज्र दायमी है मुझे
वर्ना हर चीज़ आरजी़ है मुझे
मेरी आँखो पे दो मुक़दस हाथ
ये अंधेरा भी रौशनी है मुझे
मैं सुख़न में हूँ उस जगह कि जहाँ
साँस लेना भी शाइरी है मुझे
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे

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मुझसे मत पूछो,के उस शख्स मे क्या अच्छा है?
अच्छे अच्छो से ,मुझे मेरा बुरा अच्छा है
किस तरह मुझसे मोहब्बत मे कोई जीत गया
ये ना कह देना के बिस्तर मे बड़ा अच्छा है

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