Tehzeeb Hafi | Azrah-e-Sukhan | Mushaira | 23-01-2022

Poetry Details

इस पोस्ट मे कुछ मशहुर नग्मे और शायरियाँ पेश की गयी है जो कि Tehzeeb Hafi जी के द्वारा लिखी एवं प्रस्तुत की गयी है।

मल्लाहो का ध्यान बटा कर दरिया चोरी कर लेना है
कतरा कतरा करके मैने सारा चोरी कर लेना है
तुम उसको मजबूर किये रखना बातें करते रहने पर
इतनी देर में मैने उसका लहज़ा चोरी कर लेना है
जाने क्युं मुझको चोपाल मे आने से रोका जाता है
जैसे मैने इन लोगो का किस्सा चोरी कर लेना है
आज तो मै अपनी तस्वीर को कमरे ही मे भुल आया हुँ
लेकिन उसने इक दिन मेरा बटुआ चोरी कर लेना है


युं तो उसके बस मे क्या क्या कुछ नही
पर बरसता है तो भरता कुछ नही
बस्तियां नक्शे पे साबित कर मुझे
तू तो कहता था के दरिया कुछ नही
शायरो के मसले ही और है
पास तो बैठो मैं कहता कुछ नही
कैसे मै माँ बाप को राजी करुं?
इश्क तो करता है,करता कुछ नही

आज जिन झीलो का बस कागज मे नक्शा रह गया
एक मुद्दत तक मै उन आँखो से बहता रह गया
मै उसे नाकाबिले बर्दास्त समझा था मगर
वो मेरे दिल में रहा,और अच्छा खासा रह गया
जो अधुरे थे तुझे मिलकर मुकम्मल हो गये
जो मुकम्मल था,वो तेरे गम मे आधा रह गया
वो तबस्सुम का ताबर्रुक बांटता था, और मै
चीखता था “ऐ सखी फिर मेरा हिस्सा रह गया”
आज का दिन साल का सबसे बड़ा दिन था तो फिर
जो तेरे पहलू मे लेटा था,वो अच्छा रह गया
जिस्म की चादर पे रातें फैलती तो थी मगर
मेरे कांधो पर तेरा बोसा अधुरा रह गया

मै उससे ये तो नही कह रहा जुदा ना करे
मगर वो कर नही सकता,तो फिर कहा ना करे
वो जैसे छोड़ गया था मुझे,उसे भी कभी
खुदा करे के कोई छोड़ दे,खुदा ना करे

 

जो तेरे साथ रहते हुये सौ गवार हो
लानत हो ऐसे शख्स पे और बेशुमार हो
अब इतनी देर ना लगा,ये ना हो कहीं
तू आ चुका हो और तेरा इंतजार हो

मै फूल हुँ तो फिर तेरे बालो मे क्युं नही
तू तीर है तो मेरे कलेजे के पार


कौन तुम्हारे पास से उठ कर घर जाता है
तुम जिसको छू लेती हो,वो मर जाता है
इसीलिये तो सबसे ज्यादा भाती हो
कितने सच्चे दिल से झूठी कसमे खाती हो


हम मिलेंगे कही,अजनबी शहर की ख्वाब होती हुई शाहाराओ पे और शाहाराओ पे फैली हुई धूप में
एक दिन हम कहीं साथ होगे वक्त की आंधियो से अटी साहतो पर से मट्टी हटाते हुये,एक ही जैसे आँसू बहाते हुये
हम मिलेंगे घने जंगलो की हरी घास पर और किसी शाखे नाजुक पर पड़ते हुये बोझ की दास्तानो मे खो जायेगे
हम सनोबर के पेड़ो की नोकीले पत्तो से सदियो से खोये हुये देवताओ की आँखे चभो जायेंगे
हम मिलेंगे कही बर्फ के वादियो मे घिरे पर्वतो पर,बांझ कब्रो मे लेटे हुये कोह पेमाओ की याद में नज्म कहते हुये
जो पहाड़ो की औलाद थे,और उन्हे वक्त आने पर माँ बाप ने अपनी आगोश मे ले लिया
हम मिलेंगे कही शाह सुलेमान के उर्स मे हौज़ की सीढियो पर वज़ू करने वालो के श्फ़ाक चेहरो के आगे
संगेमरमर से आरस्ता फर्श पर पैर रखते हुये,आह भरते हुये और दरख्तो को मन्नत के धागो से आजाद करते हुये हम मिलेंगे
हम मिलेंगे कही रूस की दास्ताओ की झूठी कहानी पे आखो मे हैरत सजाये हुये,शाम लेबनान बेरूत की नरगिसी चश्मूरो की आमद के
नोहू पे हँसते हुये,खूनी कज़ियो से मफलूह जलबानियाँ के पहाड़ी इलाको मे मेहमान बन कर मिलेंगे
हम मिलेंगे एक मुर्दा जमाने की खुश रंग तहज़ीब मे ज़स्ब होने के इमकान मे,इक पुरानी इमारत के पहलू मे उजड़े हुये लाँन में
और अपने असीरो की राह देखते पाँच सदियो से वीरान जिंदान मे
हम मिलेंगे तमन्नाओ की छतरियो के तले ,ख्वाहिशो की हवाओ के बेबाक बोसो से छलनी बदन सौंपने ले लिये रास्तो को
हम मिलेंगे जमीं से नमूदार होते हुये आठवें बर्रे आज़म में उड़ते हुये कालीन पर
हम मिलेंगे किसी बार में अपनी बकाया बची उम्र की पायमाली के जाम हाथ मे लेंगे और एक ही घूंट में हम ये सैयाल अंदर उतारेंगे
और होश आने तलक गीत गायेंगे बचपन के किस्से सुनाता हुआ गीत जो आज भी हमको अज़बर है बेड़ी बे बेड़ी तू ठिलदी तपईये पते पार क्या है पते पार क्या है?
हम मिलेंगे कही बाग मे ,गांव मे ,घूप में, छांव में, रेत मे, दश्त में, शहर मे,मस्जिदो में,कलीसो में,मंदर मे ,मेहराब मे, चर्च में,मूसलाधार बारिश मे
बाजार मे,ख्वाब मे,आग मे,गहरे पानी में,गलियो मे ,जंगल में और आसमानो मे
कोनो मकां से परे गैर आबद सैयाराए आरजू मे सदियो से खाली पड़ी बेंच पर
जहा मौत भी हम से दस्तो गरेबां होगी,तो बस एक दो दिन की मेहमान होगी


तुम्हे हुस्न पर दस्तरस है,मोहब्बत मोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आँखो के बारे में क्या जानते हो
ये जोग्राफिया,फलसफा,सायकोलोजी,साइंस रियाजी बगैरा
ये सब जानना भी अहम है ,मगर उसके घर का पता जानते हो


बिछड़ कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा
वो थक जायेगा और मेरे गले से आ लगेगा
मै मुश्किल मे तुम्हारे काम आऊ या ना आऊ
मुझे आवाज दे लेना तुम्हे अच्छा लगेगा
मै जिस कोशिश से उसको भूल जाने मे लगा हुं
ज्यादा भी अगर लग जाये तो हफ्ता लगेगा


महीनो बाद दफ्तर आ रहे है
हम एक सदमे से बाहर आ रहे है
तेरी बांहो से दिल उक्ता चुका है
अब इस झूले मे चक्कर आ रहे है
समंदर कर चुका तस्लीम हमको
खजाने खुद ही ऊपर आ रहे है
यही इक दिन बचा था देखने को
उसे बस मे बिठा कर आ रहे है

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