Tehzeeb Haafi |Mushaira |

Poetry Details

Tehzeeb Hafi – इस पोस्ट मे कुछ मशहुर नग्मे और शायरियाँ पेश की गयी है जो कि Tehzeeb Hafi जी के द्वारा लिखी एवं प्रस्तुत की गयी है।

युं तो उसके बस मे क्या क्या कुछ नही
पर बरसता है तो भरता कुछ नही
बस्तियां नक्शे पे साबित कर मुझे
तू तो कहता था के दरिया कुछ नही
शायद उनके मसले ही और है
पास तो बैठो मैं कहता कुछ नही
कैसे मै माँ बाप को राजी करुं?
इश्क तो करता है,करता कुछ नही


आज जिन झीलो का बस कागज मे नक्शा रह गया
एक मुद्दत तक मै उन आँखो से बहता रह गया
मै उसे नाकाबिले बर्दास्त समझा था मगर
वो मेरे दिल में रहा,और अच्छा खासा रह गया
जो अधुरे थे तुझे मिलकर मुकम्मल हो गये
जो मुकम्मल था,वो तेरे गम मे आधा रह गया
वो तबस्सुम का ताबर्रुक बांटता था, और मै
चीखता था “ऐ सखी फिर मेरा हिस्सा रह गया”
आज का दिन साल का सबसे बड़ा दिन था तो फिर
जो तेरे पहलू मे लेटा था,वो अच्छा रह गया
जिस्म की चादर पे रातें फैलती तो थी मगर
मेरे कांधो पर तेरा बोसा अधुरा रह गया


मुझसे मिलता है पर जिस्म की सरहद पार नही करता
इसका मतलब तू भी मुझसे सच्चा प्यार नही करता
दुश्मन अच्छा हो तो जंग मे दिल को ढाँढस रहती है
दुश्मन अच्छा हो तो वो पीछे से वार नही करता

ये आईने मे जो मुस्का रहा है मेरे होंठो का दुख दोहरा रहा है
मेरी मर्जी ,मै उस पर जो लुटाऊ तुम्हारी जेब से क्या जा रहा है

तू भी कब मेरे मुताबिक मुझे दुख दे पाया
किसने भरना था ये पैमाना अगर खाली था
एक दुख ये के तू मिलने नही आया मुझसे
एक दुख ये के उस दिन मेरा घर खाली था


अब वो मिलने आये तो उसको घर ठहराना
धूप पड़े उस पर तो तुम बादल बन जाना
तुम को दूर से देखते देखते गुजर रही है
मर जाना पर किसी गरीब के काम ना आना


आईने आँख मे चुभते थे,बिस्तर से बदन कतराता था
इक याद बसर करती थी मुझे,मै साँस नही ले पाता था
इक शख्स के हाथ मे था सब कुछ,मेरा खिलना भी मुरझाना भी
रोता था तो रात उजड़ जाती हँसता तो दिन बन जाता था
मै रब से राबते मे रहता मुमकिन है उससे राबता हो
मुझे हाथ उठाना पड़ते थे,तब जा के वो फोन उठाता था
मुझे आज भी याद है बचपन मे कभी उस पर अगर नजर पड़ती
मेरे बस्ते से फूल बरसते थे मेरी तख्ती पर दिल बन जाता था


तुम्हे हुस्न पर दस्तरस है,मोहब्बत मोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आँखो के बारे में क्या जानते हो
ये जोग्राफिया,फलसफा,सायकोलोजी,साइंस रियाजी बगैरा
ये सब जानना भी अहम है ,मगर उसके घर का पता जानते हो


कोई समंदर,कोई नदी होती ,कोई दरिया होता
हम जितने प्यासे थे,हमारा एक गिलास से क्या होता?
ताने देने से और हम पर शक करने से बेहतर था
गले लगा कर तुमने हिज्रत का दुख बांट लिया होता


तेरा चुप रहना मेरे जेहेन मे क्या बैठ गया
इतनी आवाजे तुझे दी कि गला बैठ गया
युं नही है के फकत मै ही उसे चाहता हुं
जो भी उस पेड़ की छांव में गया बैठ गया
इतना मीठा था वो गुस्से भरा लेहजा मत पू्छ
उसने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया
उसकी मर्जी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इसपे क्या लडना कि फलां मेरी जगह बैठ गया
बज्मे-ए-जाना मे नशिशते नही होती मखसूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया


बाद मे मुझसे ना कहना घर पलटना ठीक है
वैसे सुनने मे यही आया है रस्ता ठीक है
जेहन तक तस्लीम कर लेता है उसकी बरतरी
आँख तक तस्दीक कर देती है बंदा ठीक है
शाख से पत्ता गिरे,बारिश रुके,बादल छटे
मै ही तो सब कुछ गलत करता हुं,अच्छा ठीक है


रुक गया है या वो चल रहा है हमको सब कुछ पता चल रहा है
मेरा लिखा हुआ रायगां था,उसका काटा हुआ चल रहा है
ठीक है बस काम रोशनी का,चल रही है हवा चल रहा है
उसने शादी भी की है किसी से,और गाँव मे क्या चल रहा है


थोड़ा लिखा और ज्यादा छोड़ दिया,आने वालो के लिये रस्ता छोड़ दिया
तुम क्या जानो उस दरिया पर क्या गुजरी,तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया
लड़कियाँ इश्क मे कितनी पागल होती है,फोन बजा और चुल्हा जलता छोड़ दिया


बहुत मजबूर हो कर मै तेरी आँखो से निकला
खुशी से कौन अपने मुल्क से बाहर रहा है
गले मिलना,ना मिलना तेरी मर्जी है लेकिन
तेरे चेहरे से लग रहा है तेरा दिल कर रहा है..!!


जो तेरे साथ रहते हुये सौ गवार हो
लानत हो ऐसे शख्स पे और बेशुमार हो
अब इतनी देर भी ना लगा, ये ना हो कहीं
तू आ चुका हो और तेरा इंतजार हो
एक आस्तीं चढाने की आदत को छोड़कर
‘हाफी’ तुम आदमी तो बहुत शानदार हो


उसके हाथो मे जो खंज़र है,ज्यादा तेज़ है
और फिर बचपन से ही उसका निशाना तेज़ है
जब कभी उस पार जाने का ख्याल आता मुझे
कोई आहिस्ता से कहता था कि दरिया तेज है
आज मिलना था बिछड़ जाने की नीयत से हमें
आज भी वो देर से पहुचा है कितना तेज है
अपना सब कुछ हार के लौट आये हो ना मेरे पास
मै तुम्हे कहता भी रहता था कि दुनिया तेज है
आज उसके गाल चूमे है तो अंदाजा हुआ
चाय अच्छी है मगर थोड़ा सा मीठा तेज है

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