SWAYAM SRIVASTAV@DUBAI MUSHAIRA | NOOR-E-SUKHAN KOLKATA

Poem Details

इस पोस्ट मे ‘स्वयं श्रीवास्तव जी ‘ गज़ल प्र्स्तुत की गयी है।

पत्थर की चमक है ना नगीने की चमक है
चेहरे पे सीना तान के जीने की चमक है
पुरखों से विरासत में हमें कुछ ना मिला था
जो दिख रही है खून पसीने की चमक है
जिस रास्ते पर चल रहे उस पर है छल पड़े
कुछ देर के लिए मेरे माथे पे बल पड़े
हम सोचने वालों की यार लौट चलें क्या
फिर सोचा यार छोड़ो चल पड़े तो चल पड़े
मुश्किल थी संभालना ही पड़ा घर के वास्ते
फिर घर से निकलना ही पड़ा घर के वास्ते
मजबूरियों का नाम हमने शौक रख लिया
हर शौक बदलना ही पड़ा घर के वास्ते
मुझको ना रोकिए ना यह नजराने दीजिए
मेरा सफर अलग है मुझे जाने दीजिए
ज्यादा से ज्यादा हो गए की हार जाएंगे
किस्मत तो हमे अपनी आजमाने दीजिये
डरना नहीं किसी के भी पैरों की नाप से
आखिर में पुण्य जीत ही जाएगा पाप से
गीता में कृष्ण ने कहा अर्जुन से बस यही
पहली लड़ाई जीतनी है अपने आप से
एक शख्स क्या गया कि पूरा काफिला गया
तूफान था तेज पेड़ को जड़ से हिल गया
जब सल्तनत से दिल की ही रानी चली गई
फिर क्या मलाल तख्त गया या किला गया
आंखों से मेरे नींद की आहट चली गई
वह घर से गया घर की सजावट चली गई
इतनी हुई खता के लव को लव से छू लिया
इन शहद से होठों की तरावट चली गई
जो याद तेरे पांव की जंजीर बनी है
वो याद मेरे हाथ की लकीर बनी है
पानी जो कहीं चांद पे ढूंढे नही मिला
पानी पे उसी चांद की तस्वीर बनी है
किस्मत में कोई रंग क्या धानी भी लिखा है
बस हर्फ़ ही लिखे हैं की मानी भी लिखा है
सुखी जुबान जिंदगी से पूछने लगी
बस प्यास ही लिखी है कि पानी भी लिखा है

प्रेम करने चली तो उसे भी वही
जो महज़ थी कहानी सुनाती गई
नर्तकी एक अकबर के दरबार में
कैसे दीवार में थी चुनाव दी गई
एक अपराधमें दोनों शामिल रहे
किंतु चांदी की चम्मच रिहा हो गई
बाद में क्या हुआ यह पता है
तुम्हें पांव के घुंघरूओ को सजा हो गई
सामना करने कीजब जरूरत थी तब
आपकी ओर से पीठ रख दी गई
आपका इश्क कैसा सलीम आपके
सामने आखिरी ईंट रख दी गई

 

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