Poetry Details
कड़्कड़ कर विध्वंस मचाते उतरे सारे वज्र धरा पर
सर सर गिरती वर्षा पहुंची जैसे तैसे वसुधा के घर
तीनो लोक में मच गई हलचल समय ही ऐसा गुजरा था
मां जमुना भीतर एक बालक सूरज बनकर उतरा था
इतिहास का जो काला पन्ना सबने मिलकर फाड़ दिया
धर्म के नीचे योद्धा को एक अधर्मी कह कर गाड दिया
गाथा यह उसे वीर की जिनके रोम रोम में दिनकर हो
जिसे दाह मिला जीवन भर जैसे बेलपत्र बिन शंकर हो
अब शेष बची कहानी उनकी हम तो सुना ना पाएंगे
कहानी को विस्तार स्वरूप खुद कर्ण सुनाने आएंगे
कि अभी की है नहीं द्वापर की बीती बात है ,
जहां कौन किसका है सगा कौन किसके साथ है
जहा कौन है माता-पिता और कौन भाई बंद है,
जहां बिछ रही लाशों पर बैठे स्वयं परमानंद है
जहां वंश के आधार मुझको व्यर्थ बतलाया गया
और हक किसी का छिनने में अर्थ बतलाया गया
जहां दुर्योधन ही है सभी बस पक्ष उनके हैं अलग
जहां बस कपट की बात है बस कक्ष उनके है अलग
कृष्ण ही बस धर्म की यहां डोर लेकर चल रहे
गोविंद ही बस है यहां जो दुख में हंस कर जल रहे
उनके अलावा कौन है जो मेरे आगे टिक सके
अरे वह स्वयं ही है परम ले अवतार ही जो दिख सके
और रण में जो कुछ भी हुआ मैं उसको ना दोहराऊंगा
मैं सत्य कहने आ गया हूं सत्य कह कर जाऊंगा
मैं चुनुगा दुरुयोधन,भले दुरुयोधन तुम ना चुनो
मुझ अधर्मी से प्रथम तुम धर्म क्या है वो सुनो
धर्म और अधर्म की बुनियाद ही गर कर्म है
और कर्म से निर्मल है जो अगर उसके संग में धर्म है
तो कह दो कान्हा इस जहां में दान करना पाप है
और इस जहां में सूत के घर जन्म लेना श्राप है
कह दो क्षत्रियो को जाके बाण को तुम फेंक दो
और रण में खींची प्रत्यांचा पर गोत्र रख कर देख लो
अरे युद्ध रण पे था ही नही वह रण ही अंतर्मन में था
और योग्यता की लाश बन मै गिर गया उस रण पे था
श्राप और वचनों के जब मै मर रहा था ढ़ेर पर
तब कर्ण को इस मार डाला भगवानो ने घेर कर
एक मित्र था जो मित्रता की था कदर करता मेरे
दुर्योधन ही था जो सॉन्ग सफर करता मेरे
फिर वह चुनेगा लक्ष्य को और मैं प्रत्यंचा तान दूं
अरे उसके खातिर ना तो फिर मै किसके खातिर जान दूं
100 भी अर्जुन आ गए तो 100 से भीड़ मै जाऊंगा
और जो कहा था पहले भी मैं फिर उसे दोहराऊंगा
पांडवो को तुम रखो, मै कौरवो की भीड से
तिलक शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीड़ मै
सूरज का अंश हो के फिर भी हुँ अछूत मै
आर्यव्रत को जीत ले ऐसा हुँ सूत पूत मै
कुंती पुत्र हुँ मगर न हुँ उसी को प्रिय मै
इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हुँ क्षत्रिय मै
जो लिखा नसीब में वही सत्य क्यों यहां
जो तुम्हारे बस में ना हो उसको सत्य क्यों कहा
हर बार वर्तमान को नियति पर क्यों हो थोपते
और मैं जवाब मांगू तो क्यों नियति नियति भोंकते
नियति की कोई भूल नहीं इसे निष्का्रण अपमान कहो
कोन्तैय नहीं,राधे है या करण मुझे अधिरथ की संतान कहो
कुंती का मै अंश नहीं ना मुझसे उसका नाता है
मैं कर्ण हूं तो बस कर्ण हीं हूं जो सूत पुत्र कहलाता है
आओ अब बताऊं महाभारत के सारे पात्र यह
भोले की सारी लीला थी कृष्ण के हाथ सूत्र थे
बलशाली बताया जिन्हें वह सारे राज्पुत्र थे
काबिल दिखाया बस लोगों को ऊंची गोत्र के
यह गोत्र वर्ण जात पात सब कली के नाम है
द्वापर में बीते कल से ही तो कलयुग बदनाम है
तभी सोने को पिघला कर डाला सोण तेरे कंठ में
नीची जाति हो के किया वेदो का पठन तूने
गुनाह था तेरा यही तू सारथी का अंश था
तो क्यों छिपे मेरे पीछे मै उन्ही का वंश था
ये ऊंच नीच की ही जड़ वोअहंकारी द्रोण था
वीरों की उसकी सूची में अर्जुन के सिवा कौन था?
अगर धनंजय ही श्रेष्ट था क्यों डरे एकलव्य से
मांगा क्यों अंगूठा क्यों जताया पर्थ भव्य है
ज्ञान पथ पर बिखरे जो दिखाएं कांटे वो गुरु
जो ज्ञान सब की थाली में समान बाटे वो गुरु
गुरु वो है जिनके होते सृष्टि खिलखिलाती है
गुरु के चरणों पर ही तो दृष्टि तिलमिलाती हैं
अब बताओ कैसे मैं उस द्रोण को गुरु कहूं?
जो मुझको शिष्य ना कहे मैं उसकी घ्र्णा क्यों सहूं
उन राजवंशियो को उसकी शिक्षा जा मिले
इन आधार लेती बेलो से हम व्रक्ष कई गुना भले
अरे पार्थ के ही इर्द गिर्द रची हुई कथा है ये
और पार्थ से जो श्रेष्ठ था उस कर्ण की व्यथा है ये
रथ पर सजाया उसने कृष्ण हनुमान को
योद्धाओं की युद्ध में भिढ़ाया भगवान को
नंदलाल तेरी ढाल पीछे अंजनैया थे,
नियति कठोर थी जो दोनों वंदनीय थे
इन ऊंचे ऊंचे लोगो में मै ठहरा छोटी जात का
खुद से ही अनजान मैं ना घर का ना घाट का
सोने सा था तन मेरा,अभेद मेरा अंग था
कर्ण का कुंडल चमके लाल नीले रंग का
इतिहास साक्षी है योद्धा मैं निपूण थ
बस एक मजबूरी थी मैं वचनों का शौकीन था
अगर ना दिया होता वचन वो मैं कुंती माता को
तो पांडवों के खून से मैं धोता अपने हाथ को
और मैंने यह कहा नहीं कि मैं सही और सब गलत
पर मेरी गल्ती गल्ती है और उनकी गल्ती बात अलग
हां,द्रोपदी के संग हुआ जो उसमें मेरी भूल थी
पर दूसरे क्षण आंख मूंद मैने वो कबूल की
पर द्रोपदी ने जो किया वो कैसे केशव भूलू मै
कैसे भूलू वो स्वयंवर?कैसे विष वो पी लूं मै?
साम दाम दंड भेद सूत्र मेरे नाम का गंगा मां का
लाडला मैं खामखा बदनाम था
कौरवों से हो के भी कोई कर्ण को ना भूलेगा
जाना जिसने मेरा दुख वो कर्ण कर्ण बोलेगा
भास्कर पिता मेरे हर किरण मेरा सुवर्ण है
वन में अशोक मैं तू तो खाली पर्ण है
कुरुक्षेत्र की उस मिट्टी में मेरा भी लहू जीर्ण है
देख छान के उसे मिट्टी को कण-कण में कर्ण है
अब इस कर्ण के लौटने का समय आ चुका है
लेकिन जाते-जाते आपके दो सवालों के जवाब
एक मैं कर्ण हूं तो मैं अर्जुन विरोधी हूं?
नही,मैं हालातों के विरोध में था,अर्जुन के कभी नहीं
और दूसरा तुम कर्ण हो तो तुम कृष्ण का द्वेश करते हो?
नहीं, यह सब करने के लिए मुझे कृष्ण की लीला ने ही तो कहा था
छोटी सी बात है फर्क बस इतना है की अर्जुन को सब मिला है
मुझे सब पाना पड़ा है शायद यही एक अंतर है कर्ण और अर्जुन में
तभी तुम चाह कर भी कभी अर्जुन की तरह महसूस नहीं कर पाते हो
कभी आपको हुआ ही नहीं कि मैं अर्जुन हूं लेकिन हर बार लगता है,मैं कर्ण हुं
तो यह कर्ण जाते-जाते इन कर्णों से कुछ कहना चाहेगा, सुनेंगे?
बीते कल को छोड़ दो अब आने वाला आएगा
बीते कल में जो हुआ वह कल तुम्हें सताएगा
हर एक मोड़ पर तुम्हें अर्जुन खड़े मिलेंगे अब
पथ में फूलों के अलावा कांटे भी खिलेंगे अब
कई द्रोण मिलके तुम्हें नीचे खींचते रहेंगे
बेवजह कई शोन भी जलेंगे अब
तब आईने में देख कर खुद को तुम निहारना
और भीतर तुम्हारे सो रहे हैं उसे कर्ण को पुकाराना
फिर चाहे जितने युद्ध हो किसी भी कुरुक्षेत्र में
तुम्हारा तीर पहले होगा हर पंछी के नेत्र में और तेरे योग्यता के खातिर
अगर तू खुद प्रत्यांचा खींचेगा तो जाहिर है वर्तमान में हर बार कर्ण जीतेगा