Poetry Details:-
SAHI SAMAY MERA SAHI SAMAY PAR NAHI AAYA-सही समय मेरा पर नही आया-इस पोस्ट मे कुछ शायरी और गजले प्रस्तुत की गयी है जिन्हे AKASH SAXENA के द्वारा लिखा एवं पेश किया गया है।
जब मैने डूब कर दरिया-ए-मोहब्बत पार किया
तब कही जा कर उसने मेरा एतबार किया
जिन्हे खुश रखने की खातिर तिल तिल मरा हुँ मै
उन्ही अपनो ने मेरी पीठ पर वार किया
ये जिस्मानी इश्क कहाँ मुक्कमल हुआ भला
मैने जितना भी किया उसकी रूह से प्यार किया
वो उसकी खामोशी को उसकी खामी समझता है साहब
उस औरत पर उसके पति ने अत्याचार किया
हक दो उस बाप को कानून हाथ मे लेने का
दरिंदो ने जिसकी बच्ची का बलात्कार किया
जिसने रोजे मे बनायी शाम तक दिवार मंदिर की आकाश
दिहाड़ी मिलने पर उसने इफ्तार किया
जनाजे पे एक शख्स यही समय पर नही आया
वो जो हमसफर था वही समय पर नही आया
एक यार था मेरी खुशियो मे शरीक सदियो से
बुरे वक्त मे एक ये भी समय पर नही आया
मुझसे पहले जाना था जिसे वादे के अनुसार
वादा निभाने को वह भी समय पर नही आया
अच्छे वक्त के इंतजार में गुजार दी है जिंदगी
सही समय मेरा सही समय पर नही आया
इस बार कौल पर कहा “वक्त पे घर आऊंगा”
माँ कहती है आकाश कभी समय पर नही आया
कुछ तो लहजे को मेरे युं टाप रहे
मानो सपने मे भी नाम मेरा ही जाप रहे
ऐसे रहे है उससे मिले जख्म दिल पर
मिलन के बाद जैसे गर्दन पर छाप रहे
इतने गरम मिजाज का है महबूब मेरा
गरमी के सूरज मे जैसे ताप रहे
उससे बिछड़ कर ऐसे हो गये हम
सर्दी के ठंडे पानी मे जैसे भाप रहे
किसी और से मुझको लेना क्या है जान
शुरू से मेरे दिल मे आप रहे
क्यो सुनते हो ऐसे वैसो की बाते
आकाश तुम तो कई शहरो के बाप रहे
दे रहा था दलील अपने ज्ञान पर
एक सच मर गया झूठे बयान पर
नंगे पाँव तपती धूप मे माँगता भीख
वो भी ऐसे जैसे खड़ा को पायदान पर
क्या याद है तुम्हे पहली नजर का किस्सा
तुम सोफे पर बैठी थी मै दीवान पर
अक्सर एक ही जगह मिलते थे हम दोनो
वक्त-ए- नमाज पहली अजान पर
मिलन की रात हम एक होने वाले थे
वो दबी आवाज मे बोली कोई है रोशनदान पर
रहमते मोहब्बत है जो है सुकुं मे तू
तेरे सामने तीर नही आता कमान पर
जिसे ईद का चाँद समझ खोलते रहे रोजा
उसने रोजे तक ना रखे रमजान पर
तुम क्या जानो जायका मोहब्बत का
तुमने रखा नही नमक इश्क का जबान पर
तब तक ऐसे ही लिखते रहो कलाम
जब तक ना चड़े नशा हर इंसान पर