racha hai srishti ko jis prabhu ne-रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने-Dhiraj kant

Bhajan Details:-

racha hai srishti ko jis prabhu ne-रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने-इस सुंदर भजन को श्री धीरज कांत के द्वारा गाया गया है,इस भजन को श्री फणीभूषण चौधरी ने इसकी रचना की है ।

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है
जो पेड़ हमने लगाया पहले
जो पेड़ हमने लगाया पहले
उसी का फल हम अब पा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ।।

इसी धरा से शरीर पाये,
इसी धरा में फिर सब समाये
इसी धरा से शरीर पाये,
इसी धरा में फिर सब समाये
है सत्य नियम यही धरा का,
है सत्य नियम यही धरा का,
एक आ रहे है एक जा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है।।

जिन्होने भेजा जगत में जाना,
जिन्होने भेजा जगत में जाना
तय कर दिया लौट के फिर से आना,
तय कर दिया लौट के फिर से आना
जो भेजने वाले है यहाँ पे,
जो भेजने वाले है यहाँ पे,
वही फिर वापस बुला रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ।।

बैठे है जो धान की बालियो में,
बैठे है जो धान की बालियो में
समाए मेहंदी की लालियो में,
हर डाल हर पत्ते में समाकर,
हर डाल हर पत्ते में समाकर,
गुल रंग बिरंगे खिला रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है।।

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है,
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
जो पेड़ हमने लगाया पहले
उसी का फल हम अब पा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है।।
वही ये सृष्टि चला रहे है
वही ये सृष्टि चला रहे है

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