Poetry Details:
NA TUM MILE HOTE NA ISHQ HUA HOTA || ना तुम मिले होते,ना इश्क हुआ होता || DIVYA GUPTA || –इस पोस्ट मे कुछ कविताये प्रस्तुत की गयी है जो कि DIVYA GUPTA के द्वारा लिखी और प्रस्तुत की गयी है।
लिखा है तुम्हे,तुम्हे बताये बिना
तुम पढ लेना हर अहसास हमे जताये बिना
चूम लेना लिखी लकीर,इतराये बिना
जैसे चूमते हो हमारी तस्वीर शर्माये बिना
मुस्कुरा देना धड़कन से,पलके भिगाये बिना
जैसे मुस्कुराते हो हमे,हमे देख दिखाये बिना
चाहते हो कितना,ये मालूम है मुझे
अब वो हर रिशता कबूल जो जोड़ दे तुम से मुझे
निखरना इश्क मे तुम,बिखरने की बात छोड़ो
जैसे निखरता है कोई हीरा पछताये बिना
मैने लिखा है तुम्हे,तुम्हे बताये बिना
तुम पढ लेना हर लकीर हमे जताये बिना
गुजर गया वो जमाना,जब एक लंबा इंतजार होता था
धड़कने बड़ जाती थी जब संग लिफाफे डाकिये का दीदार होता था
उनके हाथो लिखी चिठ्ठी से मोहब्ब्त-ए-इज़हार होता था
स्याही की उन बूँदो से ,हर लिखा लफज दिल के आर पार होता था
जब प्रेम फकत जिस्म का नही,पाक रूह का भी तलबगार होता था
गुजर गया वो जमाना,जब प्यार असल मे प्यार होता था
मशरूफ होगा वो भी मेरे जनाजे में,हाँ,इतना है रोयेगा नही
उस रात आँखे बंद करेगा सोने को,हाँ,इतना है खुशी के मारे सोयेगा नही
नजर भर देख लूं तुमको,मुझे इक बार मिलना है
मै मुरझाई कली कोई,मुझे इक बार खिलना है
ठहरती धड़कने रुखसत जो ले इस जिस्म से मेरे
मुझे तेरी खबर लेकर भले सौ बार मरना है
बादस्तूर तुम शिद्दत की शक्ल लेते गये
मै बना वैसा ही जैसा,तुम कहते गये
मैने सिसकती धड़कनो को अपनी थामा था
मैने तो तुमको अपना सब कुछ माना था
मसला यहाँ जिस्म की भूख को मिटाना था
मुसलसल इशक मोहब्बत तो महज इक बहाना था
खूंटी पर टांगा हुआ दिल,जिसके जख्म बस सीकर ही रखे थे
तुम नोच गये बढी बेरहमी से,क्या इस दुखियारे को दर दर तड़पाना ही था
ऊपर से तुम निकले मुसाफिर,ख्वाब हजार
तुम्हे हमारे छोटे से गाँव मे शहर थोडे ही बसाना था
ना तुम मिले होते,ना इश्क हुआ होता
ना शिकवा जिंदगी से ,ना कोई गिला होता
ना सुनसान राते होती,ना खामोशी ने होंठो को सिया होता
ना तुम मिले होते,ना इश्क हुआ होता
ना ख्वाबो मे तुम आते,ना ख्यालो मे हर पल सताते
ना ये सिलसिला तुम्हारा हम जमाने को,इस कदर सुनाते
ना यादे बनी होती,ना किस्सा बयां होता
ना तुम मिले होते,ना इश्क हुआ होता