KYA TUMHE SACH MAI LOT KAR NAHI AANA-क्या तुम्हे सच मे लौट के नही आना-इस पोस्ट मे कुछ कविताये प्रस्तुत की गयी है जो कि KANHA KAMBOJ के द्वारा लिखी और प्रस्तुत की गयी है।
हिज्र मे इक रात मै ऐसे टाल देता हुँ
मै खुद को जैसे सदमे मे डाल देता हुँ
क्या तुम्हे सच मे लौट के नही आना
सोच लो मै तुम्हे एक और साल देता हुँ
जो लोग फूल और खुशबू के बारे पूछते है
उन लोगो को मै तेरी ही मिसाल देता हुँ
तेरे मासूम चेहरे पर एक नूर लगाना है
सो तेरे कानो मे माँ के झुमके डाल देता हुँ
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देखो है कितना बेचारा पागल
दर बदर भटकता है बेसहारा पागल
एक बार को तो आया तरस मेरी हालत पर
फिर उन्होने कहा मुझे दोबारा पागल
अभी ना टेक पैर पानी की सतह पर
अभी तो बहुत दूर है किनारा पागल
हमने खत में लिखा हाले दिल अपना
और उस खत के आखिर में लिखा “तुम्हारा पागल”
मै चाहता था किस्से इश्क के मशहूर हो
किसे करना था बस यहाँ गुजारा पागल
वो तो गाँव में है फिर ये किसने उसकी आवाज में हमें पुकारा पागल
अब तो जेहन तक से पागल हो गया है ‘कान्हा’
अब तो तुम क्या ही बनाओगे तुम हमारा पागल
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