KUPIT YAGYASAINI | MAHABHARAT | VAISHNAVI SHARMA | SATISH SRIJAN | QUPIT YAGYASAINI | KRISHNA

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इस पोस्ट में प्र्स्तुत कविता महाभारत के द्रोपदी चीर हरण प्रसंग के संदर्भ से ली गयी है ,इसे काव्य रूप में प्रस्तुत श्री सतीश स्र्जन जी ने लिखा है एवं इसे प्रस्तुत वेष्णवी शर्मा जी ने किया है

हे भीष्म पितामह कुछ बोलो,हे भीष्म पितामह कुछ बोलो
कुल वधु है तुम्हें पुकार रही दुर्योधन जो व्यवहार किया यह तुम सबको क्या लगा सही?
मेरा केश पकड़ कर लाया है करता दुशासन दुर्व्यवहार
आर्यो की सब माताओं ने क्या नहीं दिया कोई संस्कार ?
मैंने तो दाव नहीं खेला चौसर की शाही क्रीड़ा में
है दोष नहीं जब कहीं मेरा तो क्यों मैं ऐसी पीड़ा में ?
संपत्ति ना मैं किसी राजा की जो हारे मुझको खेल जुआ
दादा तुम तो नीति प्रिय हो तब तू क्यों यूं लाचार हुआ
जब गंगा सुत कुछ कह ना सका कृष्णै ने राजा से पूछा
दुर्योधन इतना दृष्ट है तो सम्राट दंड है क्यों छछा?
द्रौपदी ने बारी-बारी से प्रश्नों का ढेर लगा डाला
धृतराष्ट्र विदुर और द्रोणा के मानो मुंह ऊपर हो ताला
आखिर में बरसी पांडव पर आखिर में बरसी पांडव पर
किस बूते पर हो मेरे पिया कुछ कहो भतारों क्या सूझा मुझको बाजी में लगा दिया
मछली की आंख भेदना था वह करके ब्याह के लाए हो
अर्जुन गांडीव कहां गुम है क्यों ऐसे शीश झुकाए हो
जब मीन चक्षू संधान किया तब हृदय मेरा हर्षाया था
मन ही मन में अहला्दित थी मनचाहा वर जो पाया था
मां कुंती ने मुझे बांट दिया बन गए पति पांचों भाई दुर्दशा देख ऐसी मेरी तुम सबको लाज नहीं आई ?
मैं समझी थी बड़ भागन हूं रणवीर की मैं सबला हूं पर अब ऐसा लगता मुझको डरपोको की मैं अबला हूं
है गदा कहां गांडीव कहां है गदा कहां गांडीव कहा क्या जंग लगी तलवारों को
सौ सौ धिक्कार तुम्हें मेरा धिक्कार तेरे हथियारों को
अरे घुंगरू बांधो चूड़ी पहनो गलियों में नाचो छम छम छम
नहीं बेचारी मुझको समझो नई हर से भाई बुलाए हम
हुआ पांचों का बल क्षीण तो क्या हुआ पांचों का बल क्षीण तो क्या मेरे कृष्ण अकेले काफी हैं
उ दंड नीच आताताई को कभी ना देते माफी है
जो पता लगा मेरे वीरन को जो पता लगा मेरे वीरन को क्षण भर ना देर लगाएंगे
नंगे पैरों हिरणागति से मेरे वीर कन्हैया आएंगे
नहीं भगिनी मैं लाचारो की मधुसूदन मेरा भाई है
लगता दुशासन दुर्योधन तेरी मौत शीश पर आई है
होती है भ्रुकुटी वक्र जहां कोहराम वही मच जाता है
केशव हथियार उठा ले तो फिर काल भी ना बच पाता है
जो आए भैया सभा मध्य यदि आए भैया सभा मध्य तो कोई नहीं बच पाएगा
जब चक्र सुदर्शन घूमेगा सब मूली सा कट जाएगा
ना बने निपूती मां तेरी ,ना बने निपूती मां तेरी,कौरव सुत गण कुछ गौर करो
अतिशय अक्षम में अपराध किया ना सर मृत्यु का मोर धरो
इतना सुन गर्जा दुर्योधन इतना सुन गर्जा दुर्योधन
दुशासन देर लगाओ ना निर्वस्त्र करो पंचाली को जंघा पर मेरी बिठाओ ना
अग्रज की आज्ञा पा कर के दुशासन पट को रहा खींच
द्रौपदी अधीर हुई मन में साड़ी हाथों से रही भींच
कुछ ना सूझा तब टेर भरी कुछ ना सूझा तब टेर भरी बोली सुनिए मेरे गिरधारी
अब कोई नहीं अतिरिक्त तेरे प्रभु लाज रखो है लाचारी
कान्हा की शान निराली है कान्हा की शान निराली है है वो दौड़े दौड़े आते हैं
जब कोई आर्थ पुकार करे निर्बल का बल बन जाते हैं
था चक्र सुदर्शन चला दिया जब गज ने टेर लगाई थी
एक सेन नाई की खातिर बस अपनी ठकुरी बिसराई थी
मुट्ठी भर तंदुल के बदले दो लोक सुदामा पाया था
एक बार पुरंदर के कारण उंगली पर अचल उठाया था
अब की द्रौपदी की बारी थी अब की द्रौपदी की बारी थी रो रो कर कृष्ण पुकारी थी
हो गए रास्ते बंद सभी अब अंतिम राह मुरारी थी
हुए कृष्ण कृपालु कृष्णा पर हुए कृष्ण कृपालु कृष्णा पर माधव जो करुण पुकार सुनी
जहां देखो साड़ी ही साड़ी धरती अंबर तक चीर बुनी
अनव्रत खींचता रहा चीर पर छोर दूसरा पा ना सका
हो गया चूर थक कर लेकिन साड़ी की थाह ना लगा सका
था बहुत अचंभित दुशासन था बहुत अचंभित दुशासन ये नारी है या साड़ी है
द्रौपदी में हाड़ मास भी है कि सारी नारी साड़ी है
मूर्छित होकर गिरा दुशासन मूर्छित होकर गिरा दुशासन निर्वस्त्र द्रौपदी कर ना सका
द सहस्त्र हस्त का बलशाली शर्मिंदा था बस मर ना सका
कभी याग सैनी ने नटवर को साड़ी का टुकड़ा बांधा था
कभी याग सैनी ने नटवर को साड़ी का टुकड़ा बांधा था
बदले में आज मुरारी ने साड़ी में साड़ी नाधा था
श्री कृष्ण भाव के भूखे हैं श्री कृष्ण भाव के भूखे हैं भक्तों की श्रद्धा प्यारी है्वे
ऋण चुकता करते ब्याज सहित माधव की लीला न्यारी है

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