Jo Bhi Izat Ke Daar Se Dar Jae-जो भी इज्जत के डर से डर जाये-इस पोस्ट मे कुछ गज़लें और शायरियाँ पेश की गयी है जो कि Afkar Alvi के द्वारा लिखी और प्रस्तुत की गयी है।
जो भी इज्जत के डर से डर जाये
मत करे इशक,अपने घर जाये
बात आ जाये जब दुआओ पर
इससे बेहतर है बंदा मर जाये
थोड़ी सी और देर सामने रह
मेरी आँखो का पेट भर जाये
अल मुहैमिन के घर भी खतरे है
जाये भी तो कोई किधर जाये
हाँ अकीदा अगर ना कैद रखे
फिर तो इंसान कुछ भी कर जाये
बेबसी की ये आखिरी हद है
मेरी औलाद आप पर जाये
उसके चेहरे पर आज उदासी थी
हाय अफ्कार अल्वी मर जाये
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चारपाई पे आ उतारी है
जिंदगी जिंदा लाश भारी है
आप दुख दे रहे है रो रहा हुँ
और ये फिलहाल जारी है
रोना लिखा गया रोते है
जिम्मेदारी तो जिम्मेदारी है
मेरी मर्जी जहाँ भी सर्फ़ करु
जिंदगी मेरी है,तुम्हारी है
दुश्मनी के हजारो दर्जे है
आखिरी दर्जा रिशतादारी है
-*-
मै तुम्हे बद्दुआऐ देता हुँ
ताकि तुम मेरा दर्द जान सको
तुम जिसे चाहते हो मर जाये
और तुम उसके बाद जिंदा रहो
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तर्जुबा था सो दुआ की के नुकसान ना हो
इश्क मजदूर को मजदूरी के दौरान ना हो
मै उसे देख ना पाता था परेशानी मे
सो दुआ करता था मर जाये परेशान ना हो
इससे पहले के तुझे और सहारा ना मिले
मै तेरे साथ हुँ जब तक मेरे जैसा ना मिले
कम से कम बदले मे जन्नत उसे दे दी जाये
जिस मोहब्बत के गिरफ्तार को सेहरा ना मिले
लोग कहते है के हम लोग बुरे आदमी है
लोग भी ऐसे जिन्होने हमे देखा ना मिले
बस यही कह के उसे मैने खुदा को सौंपा
इत्तेफाकन कही मिल जाये तो रोता ना मिले
बद्दुआ है के वहाँ आये जहाँ बैठते थे
और ‘अफ्कार’ वहाँ आपको बैठा ना मिले
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