Jawad Sheikh – Mushaira

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Jawad Sheikh – Mushairaइस पोस्ट में जो गज़ल पेश की गयी है वो Jawad Sheikh के द्वारा लिखी और प्रस्तुत की गयी है ।

कोई इतना प्यारा कैसे हो सकता है
फिर सारे का सारा कैसे हो सकता है
तुझसे जब मिलकर भी उदासी कम नही होती
तेरे बैगेर गुजारा कैसे हो सकता है

ये नही है के वो एहसान बहुत करता है
अपने एहसान का एलान बहुत करता है
आप इस बात को सच ही ना समझ लीजिएगा
वो मेरी जान मेरी जान बहुत करता है

नही है मुन्हसिर इस बात पर यारी हमारी
के तू करता रहे नाहक तरफदारी हमारी
अंधेरे मे हमे रखना तो खामोशी से रखना
कही बेदार ना हो जाये बेदारी हमारी
मगर अच्छा तो ये होता हम एक साथ रहते
भरी रहती तेरे कपड़ो से अल्मारी हमारी
हम आसानी से खुल जाये मगर एक मसला है
तुम्हारी सतह से ऊपर है तहदारी हमारी
कहानीकार ने किरदार ही ऐसा दिया है
अदाकारी नही लगती अदाकारी हमारी
हमे जीते चले जाने पर माएल करने वाली
यहा कोई नही लेकिन सुखनकारी हमारी


तुम अगर सीखना चाहो मुझे बतला देना
आम सा फन तो कोई है नही तोहफा देना
एक ही शक्स है जिसको ये हुनर आता है
रूठ जाने पर फजा और भी महका देना
इश्क दुनिया मे इसी काम को भेजा गया है
जहाँ आग लगी हो उसे भड़का देना
उन बुजुर्गो का यही काम हुआ करता था
जहाँ खूबी नजर आयी उसे चमका देना
दिल बताता मुझे अक्ल की बाते क्या क्या
बंदा पूछे तेरा है कोई लेना देना
और कुछ याद ना रहता था लड़ाई मे उसे
हाँ मेरे गुजिश्ता का हवाला देना
उसकी फितरत मे ना था तर्के ताल्लुक
लेकिन दूसरे शक्स को इस नेहेद पे पहुचाँ देना
जानता कि बहुत खाक उड़ायेगा मेरी
कोई आसान नही था उसे रस्ता देना
क्या पता खुद से छिड़ी जंग कहाँ ले जाये
जब भी याद आँऊ मेरी जान का सदका देना

अर्जे-ए-अलम बतर्जे तमाशा भी चाहिये
दुनिया को हाल ही नही हुलिया भी चाहिये
ऐ दिल किसी भी तरह मुझे दस्तीयाब कर
जितना भी चाहिये उसे जैसा भी चाहिये
दुख ऐसा चाहिये कि मुसलसल रहे मुझे
और उसके साथ साथ अनोखा भी चाहिये
एक जख्म मुझको चाहिये मेरे मिजाज का
यानि हरा भी चाहिये गहरा भी चाहिये
रब्बे सुखन मुझे तेरी यक्ताई की कसम
अब सुन के बोलने वाला भी चाहिये
क्या है जो हो गया हुँ मै थोड़ा बहुत खराब
थोड़ा बहुत खराब तो होना भी चाहिये
हँसने को सिर्फ ओंठ ही काफी नही रहे
जवाद शेख अब तो कलेजा भी चाहिये

मैने चाहा तो नही था कभी ऐसा हो
लेकिन अब ठान चुके हो तो चलो अच्छा हो
तुमसे नाराज तो मै और किसी बात पर हुँ
तुम मगर और किसी वजह से शर्मिंदा हो
अब कही जाके ये मालूम हुआ है मुझको
ठीक रह जाता है जो शक्स तेरे जैसा हो
ऐसे हालात मे हो भी कोई हसास तो क्या
और बेहिस्ब भी अगर हो तो कोई कितना हो
ताकि तू ये समझे मर्दो के भी दुख होते है
मैने चाहा भी यही था कि तेरा बेटा हो

एक तस्वीर के अव्वल नही देखी जाती
देख भी लूं तो मुसलसल नही देखी जाती
देखी जाती है मोहब्बत मे हर जुंब्बिशे दिल
सिर्फ सांसो की रिहर्सल नही देखी जाती
एक तो वैसे बढी तारीख है खवाहिश नगरी
फिर तबील इतनी कि पैदल नही देखी जाती
ऐसा कुछ है भी नही जिससे तुझे बहलाऊँ
ये उदासी भी मुसलसल नही देखी जाती
मैने इक उम्र से बटुए में संभाली हुयी है
वही तस्वीर जो इक पल नही देखी जाती
अब मेरा ध्यान कही और चला जाता है
अब कोई फिल्म मुकम्मल नही देखी जाती

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