FIR EK NAZM USKE NAAM KIYA HAI || AMRITESH JHA

Poetry Detail

FIR EK NAZM USKE NAAM KIYA HAI || AMRITESH JHA- इस पोस्ट मे कुछ शायरी और कविता प्रस्तुत की गयी है जिन्हे लिखा और प्रस्तुत AMRITESH JHA ने किया है।

वफा के बदले अब मैं किसी को वफायें नही दूंगा
इस नज्म में मैं उसे बद्दुआये नही दूंगा
वो चाहे तो भर ले सारे जख्म अपने
मगर मैं मेरे जख्मो को दवाये नही दूंगा
वो जिसने मेरी मोहब्बत का ये अंजाम किया है
दुनिया भर के दर्द का मेरे लिये इंतजाम किया है
एक वो है जिसने कब का भुला दिया है मुझको
एक मैं हुँ जिसने,फिर से एक नज्म उसके नाम किया है


उसके सोहबत से मिले दर्द में कभी कमी ना हो
उसके किये पर शायद किसी को यकीं ना हो
मैं इसलिये नही लेता उसका नाम मेरी नज्मो में
कहीं उसका शोहर नज्मो का शौकीन ना हो


इश्क नही,व्यापार किया था उसने
मुनाफा देखकर प्यार किया था उसने
मेरी हँसी,मेरी खुशी दोनो को मार दिया
एक ही तीर से दो शिकार किया था उसने
खैर मेरी खुशियो में उसकी भी हिस्सेदारी थी
बेवफा के साथ साथ वो बेहतर शिकारी थी
हमारी इस हालत के जिम्मेदार हम खुद ही है
क्योंकि उस रिशते के लिये रजामंदी भी तो हमारी थी
खैर उस उड़ते हुये परिंदे को कभी तो जमीन मिले
वो बेवफा अगर बेहतर है तो उसे बेहतरीन मिले
इन आँखो से मैं देख लूं,सातो फेरे उसके
फिर किसी कब्र में मुझे जी भर के सुकून मिले
उसने कहा कि फिर मेरे जुबां पे कभी उसकी बात ना आये
ये कहा मुमकिन है कि बरसात का मौसम हो और बरसात ना आये
उसने मुझसे बेवफाई की,ये मुकद्दर था मेरा
खुदा करे उसके दर पे कभी किसी बेवफा की बारात ना आये


मुझसे बिछड़ कर वो गुल गुलशन हो जाये
उसकी शादी देखूं और मेरी सांसे मेरी दुश्मन हो जाये
मेरे मरने पर तुम सब इतना जशन मनाना यारो
मेरी तेंहरवी उसके बारात से ज्यादा रोशन हो जाये

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