Poetry Details
इस पोस्ट में ‘फरीहा नकवी जी’ द्वारा लिखी गई कुछ शायरियां और गज़ले प्रस्तुत की गयी है
कयास तो बहुत सुयास तो बहुत सुने तू कौन है कही सुनी से क्या खुले तू कौन है
ये शक्ल की लिबास की बिसात क्या कलाम कर पता चले तू कौन है
सोते सोते आंख अचानक खुल जाती है एक ही खद्शा नींद उड़ाकर ले जाता है
ख्वाब में उड़ता आता है एक मुब हम साया मुझसे तेरा हाथ छुड़ाकर ले जाता है
तुम्हारे बाद किसी कम सुखन ने वहशत में बुझा के सारे दिए आईनों से बातें की
पलटने वाले से यह पूछना नहीं बनता कहां गुजारे मेरे दिन कहां पे रातें की
जिसे मजे से अभी नींद में गवाया है वो सारा वक्त किसी और की अमानत था
इसीलिए नहीं पूरी हुई थी एक दुआ हमारा बखत किसी और की अमानत था
वहां भी रहते हैं जिस जगह दिल नहीं होता मुसाफिरों का पता मुस्तकिल नहीं होता
रखा हुआ है जो इतनो को तुमने एक दिल में तो यह हुजूम कभी मुश्तइल नहीं होता
ना जाने किस हवा में उड़ रहा है दिल तुम्हारे ख्वाब देखने लगा है दिल
अभी तो कॉल खत्म भी नहीं हुई अभी से तुमको याद कर रहा है दिल
इसीलिए तो दर्द आशना है दिल कि खुद बहुत कठा पठा हुआ है दिल
कदम कदम पे ऐसे रोकता है दिल कभी-कभी तो लगता है खुदा है दिल
दिमाग तक कभी सदा नहीं गई अजीब तर्ज का कोई खला है दिल
मेरे मुकाबले पे किसको लाओगे मेरे सिवा किसी को मानता है दिल
तुम्हारे बाद का तो खैर क्या कहे तुम्हारे साथ भी बहुत दुखा है दिल
उसे कहो कि बहुत जल्द मिलने आए हमें अकेले रहने की आदत ही पड़ ना जाए हमें
अभी तो आंख में जलते हैं बेशुमार चराग हवाए हिज्र जरा खुल के आजमाए हमें
हर एक की बात पर कहता नहीं है दिल लब्बैक पसंद आती नहीं हर किसी की राय हमें
हमारे दिल तो मिले आदत नहीं मिलती उसे पसंद नहीं कॉफी और चाय हमें
हमारा नाम हमारा नाम तवज्जो जो खींच लेता था सो लोग अपनी कहानी में खींच लाए हमें
हमें विरासत में अपना लहजा मिला हुआ है कलाम कर ले जिसे भी कोई मुगालता है
हमें ना समझा फला बुरा है फला बुरा है हमारे यहां दर गुजर का रास्ता है और खुला है
जिसे बहुत देर में बनाया सुखनवरों ने बने बनाए से उसका कैसा मुकाबला है
यह जाहिरी हाल अपनी तरजीह में नहीं है हमारे घर का हर आईना गर्द से अटा है
वह मुस्कुराया ही इतने दिन बाद है कि हमने अब उसके खिलते लबों का सदका निकालना है
तेरे हरे पानियों में कब तक रुके कि हमको हमारी बंजर जमी से कोई पुकारता है
सब जिनके लिए झोलियां फैलाए हुए हैं वो रंग मेरी आंख के ठुकराए हुए हैं
एक तुम हो के शोहरत की हवस ही नहीं जाती एक हम है कि हर शोर से उकता हुए हैं
दो चार सवालात में खुलने के नहीं हम यह उकदे तेरे हाथ के उलझाये हुये है
अब किसके लिए लाए हो यह चांद सितारे हम ख्वाब की दुनिया से निकल आए हुए हैं
हर बात को बेवजह उदासी पे ना डालो हम फूल किसी वजह से कुमलाये हुए हैं
कुछ भी तेरी दुनिया में नया क्यों नहीं लगता,लगता है कि पहले भी यहा आए हुए हैं
सब दिल से यहां तेरे तरफदार नहीं है कुछ सिर्फ मेरे बुग्स में भी आए हुए हैं
है और भी दुनिया में सुखनवर बड़े लेकिन कहते हैं कि सादात यहां छाए हुए हैं
दोस्ती को मोहब्बत में तब्दील होने में लमहा ही लगता है पर हमने बरसों लगाए
हम एक दूसरे की जरूरत नहीं थे सो यकसर मोहब्बत के रास्ते से आए
भला हम सफर किसको कहते हैं और कैसे चुनते हैं इसकी हमें क्या खबर थी
कि हमने तो बीते दिनों में फकत राय गानी के नोहे लिखे थे मोहब्बत के मुब मानी चखे थे
अभी तो हमें एक लम्हे में टूटे हुए ख्वाब के चंद टुकड़ों को चुनने में बरसों लगे थे
कभी तुम नहीं थे कभी हम नहीं थे कि धुन पर नवंबर की शामों से आगाज होती हुई
दास्ता में कई मोड़ आए सभी वसवसे कुछ दिनों के लिए हम कहीं छोड़ आए
कहीं हमने मिलकर उदासी में डूबी हुई शाह राहों पे चलते हुए जर्द शामें गुजारी
कभी रेस्तरां में बैठे हुए एक दूजे की आंखों में आते दिनों के कई कासनी ख्वाब और सुरमई खौफ चखे
कभी अपने सरसब्ज पंजाब के लहलहा हुए खेत खलियान में
और कभी सिंध के नीलगंज में कभी सरहदों के बुलंद दर गवानी पहाड़ों की पुर पेच राहों में
एक साथ चलते हुए धूप छाओ के लाखों मनाजिर मिले
हम पर तब जाक पूरी तरह हम सफर के मानी खुले
हमने एक दिल पर बैत जो की तो हमेशा उसी दिल की धड़कन सुनी
अनगिनत नेमतें सामने थी मगर हमने फिर भी मोहब्बत चुनी
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