Chhaava पर ऐसी कविता आज तक किसी ने नहीं सुनाया l Kavita Tiwari l Kavi Sammelan

Poetry Details

इस पोस्ट में दो कविताऍ प्रस्तुत की गयी है प्रथम कविता वीर संभाजी महराज के ऊपर है तथा दूसरी कविता बेटियो के ऊपर है,उक्त दोनो कविताओ को कविता तिवारी जी द्वारा लिखा एवं प्रस्तुत किया गया है

धोखे से बंदी बना लिया कुछ घर के ही गद्दारों ने
जंजीरों में था जकड़ लिया उन धूर्त मुगल मक्कारो ने
औरंगजेब ने शर्त रखी झुकना यदि अंगीकार करो
दे दूंगा राज पाठ सारा इस्लाम अभी स्वीकार करो
इतना सुनकर कवि कलश हँसे बोले किससे सामना पड़ा
पहचानो रावण सभा बीच बजरंग बली का ओज खड़ा
संकट में हो यदि धर्म कभी तो फिर बेकार जवानी है
बिन खोले शांत बहे रंग में वो खून नहीं है पानी
सब ओर घेर कर संभा को फिर शुरू मौत का खेल किया
पत्थर मारे पत्थर फेंके कोड़े मारे दुख और दर्द का मेल किया
नाखून उखाड़ दिए फौरन बरछी से छील दिया तन को
जख्मों पर नमक मिर्च रगड़ा पर तोड़ नहीं पाए मन को
मच गई खलबली मुगलों में क्यों अहंकार में फूल गए
छावा हंस कर के बोल पड़ा क्या शेर शिवा को भूल गए
आंखों में खून उतर आया जिवा से फूटे अग्नि देव
जय जयति भवानी गूंज उठा गूंजा हर हर हर महादेव
छावा हंस कर के बोल पड़ा क्या शेर शिवा को भूल गए
दुश्मन की कुट कुचालों को उसने पल में कर दिया ढेर
सुनकर दहाड़ ऐसा लगता छावा ही था खुद बबर शेर
बनकर मशाल जो उठे सदा उन हाथों को पहले काटा
फिर अंगद जैसे पांवों को टुकड़ों टुकड़ों में था छाटा
उस धड़ को भी निर्भय लख कर पल एक नहीं संकोच किया
जलती छण से आंखें फोड़ी भह पलकों को नोच लिया
इतने पर भी जब झुका नहीं भयभीत हुए कुछ अंदर से
तलवार उठाई कायर ने मस्तक को अलग किया धड़ से
हो कितना भी विकराल युद्ध पौरुष ही सदा पछाड़ेगा
खुद महाकाल घट में उतरे उसका क्या काल बिगाड़ेगा
संपूर्ण मराठा बोल पड़ा जय धर्मवीर कविराज की जय
मुट्ठियां भीच कर के बोलो संभाजी महाराज की जय


जिम्मेदारियों का बोझ परिवार पे पड़ा तो ऑटोरिक्सा ट्रेन को चलाने लगी बेटियां
साहस के साथ अंतरिक्ष तक भेद डाला युद्धक विमान भी उड़ाने लगी बेटियां
और कितने उदाहरण ढूंढ कर लाऊं हर क्षेत्र शक्ति आजमाने लगी बेटियां
वीर की शहादत पे अर्थी को कांधा देके अब शमशान तक जाने लगी बेटियां
घर में बटा के हाथ रहती है मां के साथ पिता की समस्त बाधा हरति है बेटियां
कट वाक्य बोलने से पूर्व सोचती हैं खूब मन में सहमती है डरती है बेटियां
बेटे हो उदंड भले आपका दुखा दे दिल कष्ट सह के भी धैर्य धरती है बेटियां
प्रश्न यह जलन शील सबके लिए है आज नित्य प्रति कोख में क्यों मरती है बेटियां
ललिता विशाखा राधा रानी बेटी होती नहीं यशोदा दुलारे नंद नंदन नचाता कौन
अनुसया जैसी बेटी तप साधिका ना होती पालने में ब्रह्मा विष्णु रुद्र को झुला कौन
जनता जनार्दन बताए एक बात आज सावित्री ना होती सत्यवान को बचाता कौन
सब कुछ होता पर एक बात सोच लेना कविता ना होती तो यह कविता सुनाता कौन

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