Best Poem on Father-Moby

Poetry Details:-

Best Poem on Father-इस पोस्ट मे जो नज्म पेश की गयी है उसे Moby के द्वारा लिखा एवं प्रस्तुत किया गया है,जिस नज्म में पिता और उनकी अहमियत को बहुत ही सुंदर तरीके के बताया गया है।

नन्ही सी आँखे और मुड़ी हुई उंगलियाँ थी
ये बात तब की है जब दुनिया मेरे लिये सोई हुई थी
नंगे से शरीर पे नया कपड़ा पहनाता था
ईद वीद की समझ ना थी पर फिर भी मेरे साथ मनाता था
घर मे खाने के वांदे थे पर एफ डी मे पैसा जोड़ रहा था
और उसके खुद के सपने अधुरे थे पर मेरे लिये बुन रहा था
ये बात तब की थी जब दुनिया मेरे लिये सोई हुई थी
वक्त कटा,साल बढ़ा पर तब भी सब अंजान था
मै फिर भी उसकी जान था
बिस्तर को गीला करना हो या फिर रातो को रोना
एक बाप ही था जिससे छिना मैने उसका सोना था
सुबह फज़र तक गोदो मे खिलाता,झुले मे हिलाता
फिर दिन मे कमाता शाम मे चला आता
कभी खुद से परेशान कभी दुनिया का सताया था
एक बाप ही था जिसने मुझे रोते हुये हँसाया था
अल्फाजो से तो गुंगा था मै पर वो मेरे इशारे समझ रहा था
मै खुद इस बात से हैरान हुं आज कि कल वो मुझे किस तरह पढ रहा था
अब्बा तो छोड़ो यार अभी ‘अ ‘ भी निकला ना था
पर वो मेरी हर फरमाइश को पूरा कर रहा था
और मै भी उसके लाड़ प्यार मे अब ढलने लगा था
घर से वो निकल ना जाये,अब उसके कदमो पे नजरे रखने लगा था
और मुद्दे तो हजार थे बाजार मे उसके पास,
पर कब ढल जायेगा सूरज उसको इसका इंतजार था
और मै भी दरवाजे की चौखट को ताकता रहता था
जब होती थी दस्तक तो वाँकर से झाँकता रहता था
देख के उसकी शकल मे दूर से दूर से चिल्लाता था
जो भी इशारे मुझे आते थे,उससे उसे अपने करीब बुलाता था
वो भी छोड छाड के सब कुछ मुझे सीने से लगाता था
कभी हवा मे उछालता था कभी करतब दिखाता था
मेरी इक मुस्कान के लिये कभी हाथी,कभी घोड़ा बन जाता था
सो सकुं रात भर सुकुन के साथ,इसीलिये पूरी रात एक करवट मे गुजारता था
पर वो बचपन शायद अब सो चुका था
और मै जवानी की दहलीज मे कदम रखने लगा था
उसकी कुर्बानी को उसका फर्ज समझने लगा था
चाहे वो फिर खुद बिना पंखे के सोना हो या मुझे हवा मे सुलाना
या फिर ईद का वो खुद पुराना कपड़ा पहनना हो और मुझे नया पहनाना
या तपते हुये बुखार मे वो ठंडे माथे पे रखी हुई पट्टियाँ हो
या मेरी हर जिद के आगे झुक जाना
वो बचपन था वो गुजर गया वो रिशता था वो सिकुड़ गया
और मै उस कुर्बानी के बोझ को उठा नही पाया
इसीलिये वो शहर मे कही दूर छोड़ आया
नया शहर था,नये शहर की हवा मुझ पर चड़ने लगी थी
अपने बाप की हर नसीहत मुझे एक बचपना लगने लगी थी
काम जो मिल गया था,पैसा जो आने लगा था
क्या जरुरत है बाप को ये सोच मुझमे पलने लगी थी
और उधर मेरा बाप बैचेन था मेरी याद में
कि कुछ रोज तो घर आजा बेटा बस यही था उसकी फरियाद मे
और मै उससे हिसाब लेने लगा था,जो दुनिया का कर्जदार बन चुका था
क्या जरुरत है तुम्हे अब्बु इतने पैसे की,अब ये सवाल करने लगा था
अब घड़ी का काँटा फिर पलट चुका था
कल तक मै किसी का बेटा था आज किसी का बाप बन चुका था
और हसरतो का स्वेटर मै भी बुनने लगा था
कल क्या करेगा मेरा बेटा मै भी यही सोचने लगा था
अब दुनिया में ना उससे कोई आगे था ना कोई अपना था,सब पराया था
बस वही एक सपना था,तब मुझमे एक जज्बात उमडने लगा था
जिस जज्बात से मै हमेशा अंजान था
कि कल क्या गुजरी होगी मेरे बाप पे अब मुझे ये समझ आने लगा था
बेलोस मोहब्बत की मूरत होता है बाप
जो लफ्जो मे ना बुना जाये और कलमो से जो ना लिखा जाये वो होता है बाप
जो रोते हुये को हँसा दे और खुद को माजूर बना के तुम्ही खड़ा कर दे
वो होता है बाप
इक रोज, इक रोज तुम्हे अहसास जरूर होगा
के मशरूफ तुम थे उम्रदराज वो होगा
जिसकी उंगली का सहारा पकड़ के चला करते थे
आज वही छड़ी का तलबगार होगा
जिसके सदके मे जी रहे हो आज,कल वो ना रहे तो क्या होगा
पर अभी वक्त बचा है कुछखास तुम्हारे पास
तब तक जब तक बाप का साया तुम्हारे साथ होगा
और जन्नत के तलबगार हो तो सीने से लगा लेना
क्युंकि वही कल जन्नत का सरदार होगा
सब गिले शिकवे मिटा के चिपक जाना उसको
क्योकि आज तो बाप है, वो कल तुम्हारे साथ ना होगा
वो कल तुम्हारे साथ ना होगा

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