Best Of Jaun Elia-Manoj Muntashir

Poetry Details:-

Best Of Jaun Elia-इस पोस्ट मे Jaun Elia जी के द्वारा लिखी गयी कुछ शेर और गजले प्रस्तुत की गयी है,जो Manoj Muntashir के द्वारा पेश की गयी है ।

किसी लिबास की खुशबू जब उड़के आती है
तेरे बदन की जुदाई बहुत सताती है
तेरे बगैर मुझे चैन कैसे पड़ता है
मेरे बगैर तुझे नींद कैसे आती है

मै उसी तरह तो बहलता हुँ
और सब जिस तरह बहलते है
क्या तकल्लुफ करें ये कहने में
जो भी खुश है हम उससे जलते है

कोई ताल्लुक नही रहे जब्के सबब भी बाकि हो
क्या मै अब भी जिंदा हुँ?क्या तुम अब भी बाकि हो

हम कहा और तुम कहा जानां
है कई हिज्र दरमियां जानां
अब भी झीलो मे अक्स पड़ते है
अब भी नीला है आसमां जानां

ये तेरे खत ,तेरी खुशबू ये तेरे ख्वाबो ख्याल
मताये जां है तेरे कौल और कसम की तरह
गुजस्तां साल इन्हे मैने गिन के रखा था
किसी गरीब की जोड़ी हुई रकम की तरह

तू अगर आइओ तो जाइओ मत
और अगर जाइओ तो आइओ मत
जा रहे हो तो जाओ लेकिन अब
याद मुझे अपनी दिलाइओ मत

सहुलत से गुजर जाओ मेरी जां
कही जीने की खातिर मर ना रहिओ
नजर बरबार हो जाते है मंजर
जहाँ रहिओ ,वहाँ अक्सर ना रहिओ
कहीं छिप जाओ तहखानो मे जाकर
शब-ए-फितना है अपने घर ना रहिओ

अजब था उसकी दिलदारी का अंदाज
वो बरसो बाद जब मुझसे मिला है
भला मै पूछता उससे तो कैसे
मताये जां तुम्हारा नाम क्या है ?

उसे खून से मैने सींचा मगर
तमन्ना का पौधा फलां ही नही
हुई उस गली मे फजीहत बहुत
मगर मै वहाँ से टला ही नही

खूब है शौक का ये पहलू भी
मै भी बर्बाद हो गया,तू भी
ये ना सोचा था जेर-ए-सायाये जुल्फ
के बिछड़ जायेगी ये खुशबू भी
मै भी बर्बाद हो गया,तू भी

बेदिली क्या युं ही दिन गुजर जायेगे
सिर्फ जिंदा रहे हम तो मर जायेंगे

हाँ ठीक है मै अपनी अना का मरीज हुँ
लेकिन मेरे मिजाज मे क्युं दखल दे कोई
ऐ शख्स अब तो मुझको सभी कुछ कुबूल है
ये भी कुबूल है के तुझे छीन ले कोई

चारासाजो की चारासाजी से दर्द बदनाम तो नही होगा
हाँ,दवा दो मगर ये बतला दो,मुझको आराम तो नही होगा

साल-हा-साल और इक लम्हा,कोई भी तो न इन में बल आया
ख़ुद ही इक दर पे मैंने दस्तक दी,ख़ुद ही लड़का सा मैं निकल आया

दौर-ए-बाबस्तगी गुजार के मै,अहदे बाबस्तगी को भूल गया
यानि तुम वो हो..वाकई..हद है ..मै तो सच मे सभी को भूल गया

रिशता-ए-दिल तेरे जमाने मे रस्म ही क्या निभानी होती
मुस्कुराये हम उससे मिलते वक्त,रोना पड़ते अगर खुशी होती

शर्म ,दहशत,झिझक,परेशानी नाज से काम क्यो नही लेती
आप,वो,जी मगर ये सब क्या है तुम मेरा नाम क्यो नही लेती

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