Poetry Details:-
ANDAAZ E BAYAAN AUR-LUCKNOW 2019-NADEEM FARRUKH-इस पोस्ट में जो गज़ल पेश की गयी है वो NADEEM FARRUKH के द्वारा लिखी और प्रस्तुत की गयी है ।
अगर ज़बान अता की है,तो सदा भी दे
वगरना हरफे,गलत की तरह मिटा भी दे
तमाम उम्र सफर ही अगर मुकद्दर है
तो फिर परिंदो को उड़ाने का हौसला भी दे
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सुबह मगरूर को वो शाम भी कर देता है
शोहरते छीन के गुमनाम भी कर देता है
वक्त से ऑख मिलाने की हिमाकत ना करो
वक्त इंसान को नीलाम भी कर देता है
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माफी माँग के एहसान करने वाला है
वो सारे मुल्क को हैरान करने वाला है
गुरूर आ गया फिरौनियत की मंजिल तक
वो अब खुदाई का एलान करने वाला है
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वो शख्स वां अमल था,मगर ज़िद पर अड़ गया
अपनो से दूर हो के मुसीबत मे पड़ गया
मिट्ठी से अपनी जो भी वफाएँ ना कर सका
वो पेड़ आंधियो मे जड़ो से उखड़ गया
उसने भी सब के साथ मेरी की मुखालिफत
जिसके लिये मै सारे जमाने से लड़ गया
जिस दिन मेरे उरूज़ की उसने खबर सुनी
उस दिन से उसका ज़हनी तवाज़ुन बिगड़ गया
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ज़माना जिसके लिये एहतमाम करता है
वो मेरे देल के खंडहर मे कयाम करता है
ज़ईफ बाप से जो बात तक नही करता
अमीरे शहर को झुक कर सलाम करता है
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कुछ इस तरह से जमाने पे छाना चाहता है
वो अफताप पे पेहरे बिठाना चाहता है
तालुकात के धागे तो कब के टूट चुके
मगर ये दिल है कि फिर आना जाना चाहता है
चटक रहा है जो रह रह के मेरे सीने में
ये मुझमे कौन है जो टूट जाना चाहता है
जो कतरा कतरा इकट्ठा हुआ था ऑखो में
वो खून अब मेरी पलको पे आना चाहता है
अमीरे शहर तेरी बंदिशे माज़ अल्लाह
फकीर अब तेरी बस्ती से जाना चाहता है
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हमे तो आखिर ये देखना है
रहेगी लहज़े मे धार कब तक
तुम्हारे लफ्ज़ो की कैचियो से
परिंदे होगे शिकार कब तक
ये वक्त दुनिया मे जिंदगी भर
किसी का होकर नही रहा है
रहेंगे हम बेबकूफ कब तक
बनोगे तुम होशियार कब तक
चलो उठो ,इन पढ़े लिखो से
इन्ही की भाषा मे बात कर ले
सहोगे तुम इन के तंज़ कब तक
बने रहोगे गँवार कब तक
इलाही मेरी ये तक्द दस्ती भी
अब तो घबरा कर पूछती है
हिसाबे दो तीन चार कब तक
महाजनो से उधार कब तक
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आज फिर चाय की मेज पर
एक हसरत बिछी रह गयी
प्यालियो ने तो लब छू लिये
केतली देखती रह गयी