Poetry Details
Woh log jo aamo ka maza paye hui hai, वो लोग जो आमों का मज़ा, पाए हुए हैं-Saghar Khayyami-इस पोस्ट में Saghar Khayyami की लिखी गयी हास्य शेर और शायरियाँ पेश की गयी है,जोकि Saghar Khayyami के द्वारा प्रस्तुत की गयी है।
बोला दुकानदार कि क्या चाहिए तुम्हें ?
जो भी कहोगे मेरी दुकाँ पर वो पाओगे
मैंने कहा कि कुत्ते के खाने का केक है?
बोला यहीं पे खाओगे या ले के जाओगे ?
एक रोज हमसे कहने लगी एक गुलबदन
ऐनक बांध रखी है क्यो आपने रसन?
मिलता है क्या इसी से ये अंदाज-ए-फिक्रो फन
हमने कहा ऐसा नही है जनाब-ए-मन
बैठे जहां हसीन हो कुछ बज्में आम में
रखते है हम निगाह को अपनी लगाम में
एक यार रोज लिखते थे इक महज़बी को खत
लिखते थे शब के पर्दे में,पर्दा नशीं को खत
पहुचे वहीं था,चाहे लिखे ओर कहीं को खत
देता था रोज डाकिया,उस नाजनी को खत
आखिर नतीजा ये हुआ,इतनी बड़ी ये बात
माशूक उनका भाग गया,डाकिये के साथ
बेगम ने हम से पूछा के ऐ सागर-ए-बहार
पच्चीस साल हो गये शादी को मय निसार
लेकिन है गर्म आज भी मैदान-ए-कारज़ार
परवान क्युं चढा ना बताओ हमारा प्यार
हमने कहा के मौलवी साहब मिज़ाह में
क्या पढ गये तलाक का सीगा निकाह में
हुस्न ही हुस्न का हर शहर मे जलवा होता
पूरियां,मुर्ग,परांठे कही हलवा होता
नाक छिलती ना शिकस्ता कोई तलुवा होता
बम्ब बरसते ना फिजांओ से ना बलुवा होता
पूरी दुनिया में हुकुमत जो जनानी होती
आलमी जंग जो होती तो जबानी होती
इल्म सेहरा में जो उतरे,तो मदीना हो जाये
इल्म अंधे को जो मिल जाये तो बीना हो जाये
इल्म ग़र चाहे तो तूफां भी सफीना हो जाये
और इल्म अहमक को जो मिल जाये,कमीना हो जाये
इल्म ग़र अक्ल से बढ जाये तो हंगामा है
और अक्ल टखनो मे उतर आये तो पयजामा है
रफ़्ता रफ़्ता हर पुलीस वाले को शाएर कर दिया
महफ़िल-ए-शेर-ओ-सुख़न में भेज के सरकार ने
एक क़ैदी सुब्ह को फाँसी लगा कर मर गया
रात भर ग़ज़लें सुनाईं उस को थानेदार ने
इक शब हमारे बज़्म में जूते जो खो गए
हम ने कहा बताइए घर कैसे जाएँगे
कहने लगे कि शेर सुनाते रहो यूँही
गिनते नहीं बनेंगे अभी इतने आएँगे
बेज़ार हो गए थे जो शाएर हयात से
क्रिकेट का मैच खेल लिया शाएरात से
वाक़िफ़ न थे जो दोस्तो! औरत की ज़ात से
चौके लगा रहे थे ख़यालों में रात से
आई जो सुब्ह शाम के नक़्शे बिगड़ गए
सुर्रों से हम ग़रीबों के स्टंप उखड़ गए
नाज़-ओ-अदा ओ हुस्न ने जादू जगा दिए
पहले तो ओपनर के ही छके छुड़ा दिए
वन-डाउन पे जो आए तो स्टंप उड़ा दिए
राह-ए-फ़रार के भी तो रस्ते भुला दिए
गो कैच वेरी-लो था मगर बे-धड़क लिया
इक मोहतरम को इक ने गली में लपक लिया
क्या क्या बयान कीजिए इक इक का बाँकपन
जल्वा-फ़िगन ज़मीं पे थी तारों की अंजुमन
हुस्न-ओ-शबाब ओ इश्क़ से भरपूर हर बदन
शाएर पवेलियन में थे पहने हुए कफ़न
जितनी थीं ब्यूटीफुल वो स्लिप पर गली पे थीं
जितनी थीं ओवर-एज सभी बाउंड्री पे थीं
परियों के जिस तरह से परे कोह-ए-क़ाफ़ पर
इक लांग-ऑन पर थी तो इक लांग-ऑफ़ पर
इक थी कवर में एक हसीना मिड-ऑफ़ पर
जो शॉर्ट-पिच थी गेंद वो आती थी नाफ़ पर
ठहरे न वो क्रीज़ पे जो थे बड़े बड़े
मुझ जैसे टीम-टाम तो विकटों पे फट पड़े
वो लाल गेंद फूल हो जैसे गुलाब का
जिस तरह दस्त-ए-नाज़ में साग़र शराब का
साया हवा में नाचता था आफ़्ताब का
बंपर में सारा ज़ोर था हुस्न-ओ-शबाब का
ऐसे भी अपने इश्क़ का मैदाँ बनाते थे
एम्पायर हर अपील पर उँगली उठाते थे
जब बाल फेंकती थी वो गेसू सँवार के
नज़दीक और होते थे हालात हार के
कहते थे मैच देखने वाले पुकार के
उस्ताद जा रहे हैं शब-ए-ग़म गुज़ार के
उस्ताद कह रहे थे कि फटकार मैच पर
दो दो झपट रही हैं शरीफ़ों के कैच पर
सिलसिला दर्द के छालो का मिटाया हमने
आईना वक्त के सूरज को दिखाया हमने
कहकहा दर्द की शिद्दत पे लगाया हमने
मर्दोज़न,पीरोज़वा सब को हँसाया हमने
हम तो हर दर्द का माजून नजर आते है
महफिल-ए-हुस्न मे खातून नजर आते है
तल्लफ़ुज की खराबी का नतीजा
ज़माने को जमाना कह रहा था
पिटा आशिक फ़साना का गली में
फ़साना को फँसाना कह रहा था
शादी के घर से जिस घड़ी बिजली गुजर गयी
दिल बुझ गये निगाह से ताब-ए-नजर गयी
कैसा मजाक अहले मोहब्बत से कर गयी
किसकी खता थी,दोस्तो और किसके सर गयी
इस तीरगी मे नफ्स शराफत के मिट गये
लड़की किसी ने छेड़ दी और सैक पिट गये
दावत का क्या बयां करे ‘सागर’ किसी से हाल
घेरे हुये थे मेज़ अजीजाने खुश जमाल
मेंहदी लगे वो हाथ,हसीनो के लाल लाल
मालूम हो रहे थे अंधेरे मे शीर माल
‘सागर’ बफ़ज़ले तीरगी मौका जो पा गया
मै शीर माल जान के दो हाथ खा गया
खाये जो हाथ,चेहरे पर देखा किताब को
पलटे वो गोरे हाथ से काली नकाब को
ले आई जाके शोहर-ए- अफ़रासियाप को
कर दो दुरुस्त आशिके खाना खराब को
कीमा बना के रख दिया चेहरे की खाल का
अब तक है याद जायका उस शीर माल का
मुर्गे के इर्द गिर्द थे मुल्ला खड़े हुये
बाकि डिशो के पीछे थे नेता पड़े हुये
गोया जमीं मे पांव हो उनके गढे हुये
एक हम थे खा रहे थे जो छोले सडे हुये
खाते थे लोग मुर्गे मुस्सल्लम भी ठाठ से
खट्टा हुआ था जी मेरा चंटो की चाट से
करते थे वालिदाएन को नूरे नजर तलाश
नरगिस की कर रहा था कोई दी दवर तलाश
अंधो की तरह करते थे सब बामो दर तलाश
वो तीरगी थी पांव में करते थे सर तलाश
क्या थी खबर ये सानिहा होगा दुल्हन के साथ
हीरो से आक और विदाई विलन के साथ
गर्मी उडाये देते थी होशो हवाश को
पानी से भर रहा थे मै औंधे गिलास को
जी चाहता था आग लगा दू लिबास को
लायक बहू ने ठोक दिया जा के सास को
जो आज की बहू है,वही कल की सास है
है फांस इसके पास ,तो बांस उसके पास है
जो आम मैं है वो लब ए शीरीं मैं नहीं रस
रेशों मैं हैं जो शेख की दाढ़ी से मुक़द्दस
आते हैं नज़र आम, तो जाते हैं बदन कस
लंगड़े भी चले जाते हैं, खाने को बनारस
होटों मैं हसीनों के जो, अमरस का मज़ा है
ये फल किसी आशिक की, मोहब्बत का सिला है
आमद से दसहरी की है, मंडी में दस्हेरा
हर आम नज़र आता है, माशूक़ का चेहरा
एक रंग में हल्का है, तो एक रंग में गहरा
कह डाला क़सीदे के एवज़, आम का सेहरा
खालिक को है मक़सूद, के मख्लूक़ मज़ा ले
वो चीज़ बना दी है के बुड्ढा भी चबा ले
फल कोई ज़माने में नहीं, आम से बेहतर
करता है सना आम की, ग़ालिब सा सुखनवर
इकबाल का एक शेर, कसीदे के बराबर
छिलकों पा भिनक लेते हैं , साग़र से फटीचर
वो लोग जो आमों का मज़ा, पाए हुए हैं
बौर आने से पहले ही, वो बौराए हुए हैं
नफरत है जिसे आम से वो शख्स है बीमार
लेते है शकर आम से अक्सर लब ओ रुखसार
आमों की बनावट में है, मुज़मर तेरा दीदार
बाजू वो दसहरी से, वो केरी से लब ए यार
हैं जाम ओ सुबू खुम कहाँ आँखों से मुशाबे
आँखें तो हैं बस आम की फांकों से मुशाबे
क्या बात है आमों की हों देसी या विदेसी
सुर्खे हों सरौली हों की तुख्मी हों की कलमी
चौसे हों सफैदे हों की खजरी हों की फजरी
एक तरफ़ा क़यामत है मगर आम दसहरी
फिरदौस में गंदुम के एवज़ आम जो खाते
आदम कभी जन्नत से निकाले नहीं जाते