Poetry Details:-
Mai Raavan Hi Thik Hu | Ravan-vani Part-2| Shekhardeep aka Ravan -इस पोस्ट में जो कविता प्रस्तुत की गयी है ,जो कि Shekhardeep द्वारा लिखा और प्रस्तुत किया गया है।
बेहाल इतने रहे है हम,की आज हम खुद के हाल भूल गये
ये ऊँची उड़ान उडने भरने वाले परिंदे लगता है,गुलेल की मार भूल गये
एक वक्त तक खामोश क्या बैठा रावण,
लगता है तुम दुनिया वाले मेरी तलवार की घार भूल गये
फिर चाहे भगवान हो या इंसान, मै सबके लिये एक बहुत बड़ी हानि था
मै रावण बचपन से ही सर्व श्रेष्ट और ग्यानी था
हाँ..बेढंग शिव तांडव सा हुँ,मै मेरी माँ के आशिर्वाद से थोड़ा दानव सा हुँ
जब दर्द मे भी चीख चीख के मैने तांडव किया,तब महाकाल ने खुद मेरा नाम रावण दिया
महाकाल के दिये नाम को कोई कैसे मिटा सकता है..?
ना रावण कभी हारा था और ना कोई हरा सकता है
मेघनाथ के लिये मैने सारे ग्रहो को ग्यारहवें स्थान पर बिठाया था
मुझ रावण ने यमराज और शनि को अपना बंदी बनाया था
सुर्य खुद शनि महाराज को बचाने आ गये,सामने देखो कंकड़ पत्थर कैलाश को हिलाने आ गये
मुझे बस विश्वास घात के तीरो ने भेदा था
मुझ ग्यानी से ग्यान लेने खुद राम मे लक्ष्मण को भेजा था
हाँ..मैने बुराई को जन्म दिया,मैने अपनी ताकत पर घमंड किया
मुझे एक नही साल मे हजार बार जला दो
अरे छोडो मुझ रावण की बातें ,तुम थोड़ा ही सही,मुझे राम बन के दिखा दो
घमंड मुझ मे “मै” का होना जरुरी है,और रावण होना बच्चो का खेल थोडे ही है
जमी धुल मेरे नाम से हट जायेगी,जब मेरे वक्त की आंधी चल जायेगी
और ये आज नफरत नफरत करते है ना..ये भी रावण रंग मे रंग जायेगे
एक वक्त बाद ये भी भीड़ का हिस्सा बन जायेगे
लिबास काला आवाज काली,मै अंधेरे का प्रतीक हुं
तुम सब राम बन जाओ,मै रावण ही ठीक हुं
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हँसने वालो के नाम के साथ साथ चेहरे भी याद है
गल्ती मेरी रही कहीं,वरना इनकी इतनी कहाँ औकात है ?
बता दूं निहत्थे हाथ से घायल शेर पर वार नही करते
ये नदी नाले ना..समंदर पर हुँकार नही भरते