Poetry Details:-
हाँ,ये सच है कि मोहब्बत नही की-Taza Ghazalain-TEHZEEB HAFI-इस पोस्ट में TEHZEEB HAFI की लिखी गयी कुछ गज़ले और शायरियाँ पेश की गयी है,जोकि TEHZEEB HAFI के द्वारा प्रस्तुत की गयी है।
गुज़र चुकी जुल्मते-शब-ए-हिज्र पर बदन मे वो तीरगी है
मै जल मरुंगा मगर चिरागो की लौ को मध्म नही करुंगा
ये अहद ले कर ही तुझको सौंपी थी मैने कल्बो नज़र की सरहद
जो तेरे हाथो से कत्ल होगा मै उसका मातम नही करुंगा
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जिंदगी भर फूल ही भिजवाओगे,या किसी दिन खुद भी मिलने आओगे
खुद को आईने कम देखा करो,एक दिन सूरजमुखी बन जाओगे
पेहरेदारो से बचूगां कब तलक,दोस्त तुम एक दिन मुझे मरवाओगे
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ये शायरी ये मेरे सीने मे दबी हुय़ी आग
भड़क उठेगी कभी मेरी जमा की हुय़ी आग
मै छू रहा हु तेरा जिस्म ख्वाब के अंदर
बुझा रहा हु मै तस्वीर मे लगी हुई आग
खिज़ा मे दूर रखो माचिसो को जंगल से
दिखाई देती नही पेड़ मे छुपी हुई आग
मै काटता हु अभी तक वही कटे हुये लफ्ज़
मै तापता हु अभी तक वही बुझी हुई आग
यही दिया तुझे पहली नज़र मे भाया था
खरीद लाया मै तेरी पसंद की हुई आग
मै एक उम्र से जल बुझ रहा हु इनके सबब
तेरा बचा हुआ पानी तेरी बची हुई आग
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मेरी आँख से तेरा ग़म छलक तो नही गया
तुझे ढूंढ कर कही मै भटक तो नही गया
ये जो इतने प्यार से देखता है तू आजकल
मेरे दोस्त तू कहीं मुझ से थक तो नही गया
तेरी बद्दुआ का असर हुआ भी तो फायदा
मेरे मांद पढ़ने से तू चमक तो नही गया
बढा पुर फरेब है शहदो शीर का ज़ायका
मगर इन लबो से तेरा नमक तो नही गया
तेरे जिस्म से मेरी गुफ्तगू रही रात भर
मै कही नशे मे ज्यादा बक तो नही गया
तेरी बद्दुआ का असर हुआ भी तो फायदा
मेरे मांद पढ़ने से तू चमक तो नही गया
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ये सोच कर मेरा सेहरा में जी नही लगता
मै शामिले सफे आवारगी नही लगता
कभी कभी वो खुदा बनके साथ चलता है
कभी कभी तो वो इंसान भी नही लगता
यकीन क्यो नही आता तुझे मेरे दिल पर
ये फल कहाँ से तुझे मौसमी नही लगता
मै चाहता हुँ वो मेरी ज़बी पे बोसा दे
मगर जली हुई रोटी को घी नही लगता
तेरे ख्याल से आगे भी एक दुनिया है
तेरा ख्याल मुझे सरसरी नही लगता
मै उसके पास किसी काम से नही आता
उसे ये काम कोई काम ही नही लगता
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कदम रखता है जब रस्तो पे यार आहिस्ता आहिस्ता
तो छंट जाता है सब गर्दो गुबार आहिस्ता आहिस्ता
भरी आँखो से होके दिल में जाना सहल थोड़ी है
चढे दरियाओ को करते है पार आहिस्ता आहिस्ता
नजर आता है तो युं देखता जाता हुँ मै उसको
के चल पडता है जैसे करोबार आहिस्ता आहिस्ता
वो कहता है हमारे पास आओ पर सलीके से
जैसे आगे बढती है कतार आहिस्ता आहिस्ता
किसी दिन करखाना-ए-गज़ल मे काम निकलेगा
पलट आयेगे सब बेरोजगार आहिस्ता आहिस्ता
तेरा पैकर खुदा ने भी तो फुरसत में बनाया था
बनायेगा तेरे जेवर सुनार आहिस्ता आहिस्ता
मेरी गोशा नशीनी एक दिन बाज़ार देखेगी
जरुरत कर रही है बेकरार आहिस्ता आहिस्ता
इधर कुछ औरते दरवाजे पर दौड़ी हुई आयी
उधर घोड़ो से उतरे शाह सवार आहिस्ता आहिस्ता
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जख्मो ने मुझमे दरवाजे खोले है
मैने वक्त से पहले टाँके खोले है
बाहर आने की भी सखत नही हमे
तूने किस मौसम मे पिंजरे खोले है
कौन हमारी प्यास पे डाका डाल गया
किसने मस्कीजो के तश्मे खोले है
यू तो मुझको कितने खत मोसूल हुये
इक दो ऐसे थे जो दिल से खोले है
ये मेरा पहला रमजान था उसके बैगेर
मत पूछो किस मुँह से रोज़े खोले है
वरना धूप का पर्वत किससे कटता था
उसने छतरी खोल के रस्ते खोले है
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महीनो बाद दफ्तर आ रहे है
हम एक सदमे से बाहर आ रहे है
तेरी बांहो से दिल उक्ता गया है
अब इस झूले मे चक्कर आ रहे है
कहाँ सोया है चौकीदार मेरा
ये कैसे लोग अंदर आ रहे है
समंदर कर चुका तस्लीम हमको
खजाने खुद ही ऊपर आ रहे है
यही इक दिन बचा था देखने को
उसे बस मे बिठा कर आ रहे है
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उसके चाहने वालो का आज उसकी गली मे धरना है
यही पे रुक जाओ तो ठीक है,आगे जाके मरना है
रुह किसी को सौंप आये हो तो ये जिस्म भी ले जाओ
वैसे भी मैने इस खाली बोतल का क्या करना है
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राते किसी याद मे कटती है ,और दिन दफ्तर खा जाता है
दिन जीने पर मायर होता है,तो मौत का डर खा जाता है
सच पूछो तो तहजीब हाफी मै ऐसे दोस्त शयाजिस हुँ
मिलता है तो बात नही करता और फोन पे सर खा जाता है
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गलत निकले सब अंदाजे हमारे,कि दिन आये नही अच्छे हमारे
सफर से बाज़ रहने को कहा है,किसी ने खोल कर तश्मे हमारे
हर एक मौसम बहुत अंदर तक आया,खुले रहते थे दरवाजे हमारे
उस अब्रे मेहरबां से क्या शिकायत,अगर बर्तन नही भरते हमारे
अगर हम पर यकी आता नही तो कही लगवा को अंगूठे हमारे
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हाँ,ये सच है कि मोहब्बत नही की
दोस्त बस मेरी तबीयत नही की
इसलिये गाँव में सैलाब आया
हमने दरियाओ की इज्जत नही की
जिस्म तक उसने मुझे सौंप दिया
दिल ने इस पर भी कनायत नही की
मेरे एजाज मे रखी गयी थी
मैने जिस बज़्म मे शिरकत नही की
याद भी याद से रखा उसको
भूल जाने मे भी गफलत नही की
उसको देखा था अजब हालत में
फिर कभी उसकी हिफाजत नही की
हम अगर फतह हुये तो क्या
इश्क ने किस पर हुकुमत नही की
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रात को दीप की लौ कम नही रखी जाती
धुंध मे रोशनी मध्म नही रखी जाती
कैसे दरिया की हिफाज़त तेरे जिम्मे ठहराऊ
तुझसे इक आँख अगर नम नही रखी जाती
इसलिये छोड़के जाने लगे सब चारागरां
जख्म से इज्जत-ए-मरहम नही रखी जाती
ऐसे कैसे मै तुझे चाहने लग जाऊ भला
घर की बुनियाद तो यकदम नही रखी जाती
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कब पानी गिरने से खुशबू फूटी है
मिट्टी को भी इल्म है बारिश झूठी है
एक रिशते को लापरवाही ले डूबी
एक रस्सी डीली पड़ने पर टूटी है
हाथ मिलाने पर भी उस पे खुला नही
ये उंगली पर जख्म है या अंगूठी है
उसका हँसना नामुमकिन था युं समझो
सीमेंट की दीवार से कोपल फूटी है
नूह से पूछो पीछे रह जाने वालो
कशती छूटी है कि दुनिया छूटी है
हमने इन पर शेर नही लिखे ‘हाफी’
हमने इन पेड़ो की इज्जत लूटी है
युं लगता है दीनो दुनिया छूट गए
मुझसे तेरे शहर की बस क्या छूटी है
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मेरे जख्म नही भरते यारो मेरे नाखून बड़ते जाते है
मै तन्हा पेड़ हु जंगल का,मेरे पत्ते झड़ते जाते है
मै कौन हुँ ,मै क्या हुँ,कब की हुँ,इक तेरी कब हुँ सबकी हुँ
मुझे ताब नही है छांव की,मै कोयल हुँ सेहराओ की
इक दलदल है तेरी यादो की,मेरे पैर उखड़ते जाते है
मेरे जख्म नही भरते यारो मेरे नाखून बड़ते जाते है
मै किस बच्चे की गुड़िया थी,मै किस पिंजरे की चिड़िया थी
मेरे खेलने वाले कहाँ गये?मुझे चुमने वाले कहाँ गये?
मेरे झुमके गिरवी मत रखना मेरे कंगन तोड़ ना देना
मै बंजर होती जाती हुँ कही दरिया मोड़ ना देना
कभी मिलना इस पर सोचेंगे,हम क्या मंजिल पर पहुचेगें
रस्तो मे ही लड़ते जाते है
मेरे जख्म नही भरते यारो मेरे नाखून बड़ते जाते है
-*-
जब वो इस दुनिया के शोर और खामोशी से कत्ता ताल्लुक होकर
इंग्लिश मे गुस्सा करती है,मै तो डर जाता हुं
लेकिन कमरे की दीवारे हँसने लगती है
वो इक ऐसी आग है,जिसको सिर्फ दहकने से मतलब है
वो इक ऐसा फूल है जिस पर अपनी खुशबू बोझ बनी है
वो इक ऐसा ख्वाब है जिसको देखने वाला खुद मुश्किल मे पड़ सकता है
उसको छूने की ख्वाहिश तो ठीक है लेकिन पानी कौन पकड़ सकता है
वो रंगो से वाकिफ है,बल्कि हर इक रंग के शजरे तक से वाकिफ है
हमने जिनको नफरत से मंसूफ किया,वो उन पीले फूलो की इज्जत करती है
कभी कभी वो अपने हाथ मे पेंसिल लेकर ऐसी सतरह खेंचती है
सब कुछ सीधा हो जाता है,
वो चाहे तो हर इक चीज को उसके अस्ल मे ला सकती है
सिर्फ उसी के हाथो से दुनिया तरतीब मे आ सकती है
हर पत्थर उस पांव से टकराने की ख्वाहिश मे जिंदा है
लेकिन ये तो इसी अधुरेपन का जहां है
हर पिजरे मे ऐसे कैदी कब होते है
हर कपड़े की किस्मत मे वो जिस्म कहाँ है
मेरी बेमकसद बातो से तंग भी आ जाती है
तो महसूस नही होने देती लेकिन अपने होने से उकता जाती है
उसको वक्त की पाबंदी के क्या मतलब है
वो तो बंद घड़ी भी हाथ मे बांध के काँलेज आ जाती है