किस तरह से देखू भी,बाते भी करू तुझसे-Kishan Behari Noor –इस पोस्ट में KRISHNA BIHARI NOOR की लिखी गयी कुछ गज़ले और शायरियाँ पेश की गयी है,जोकि KRISHNA BIHARI NOOR के द्वारा प्रस्तुत की गयी है।
किस तरह से देखू भी,बाते भी करू तुझसे
आँख अपना मजा चाहे, दिल अपना मजा चाहे
मै तो गज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा
सब अपने अपने चाहने वालो मे खो गये
गुजरे जिधर जिधर से वो पलटे हुये नकाब
एक नूर की लकीर सी खिंचती चली गयी
ग़म मेरे साथ साथ बहुत दूर तक गये
मुझमे थकन ना पायी तो बेचारे थक गये
वो लब के जैसे सागर-ऐ-सेहबा दिखाई दे
ज़ुंबिश जो हो तो जाम छलकता दिखाई दे
दरिया मे युं तो होते है कतरे ही कतरे सब
कतरा वही है जिसमे के दरिया दिखाई दे
क्युं आईना कहे उसे,पत्थर ना क्युं कहे
जिस आईने मे अक्स ना उनका दिखाई दे
उस तशना लब की नींद ना टूटे दुआ करो
जिस तशना लब को ख्वाब मे दरिया दिखाई दे
कैसी अजीब शर्त है दीदार के लिये
आँखे जो बंद हो तो वो जलवा दिखाई दे
क्या हुस्न है,जमाल है,क्या रंग रूप है
वो भीड़ में भी जाये तो तन्हा दिखाई दे
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