Umeed kahaan se laati hun?-उम्मीद कहाँ से लाती हुँ?-ये सुंदर कविता Pallavi Mahajan द्वार लिखी एवं प्रस्तुत की गयी है,palpoetry यु टयुब चैनल पर ये उपलब्ध है।
उम्मीद कहाँ से लाती हुँ?
इन नज्मो मे,इन बातो मे,अधरो की इन मुस्कानो मे
उम्मीद कहाँ से लाती हुँ
मै कौन हुँ कुछ लाने वाली?बाते ये मेरी सब फानी
लिख कर खुद को समझाती हुँ
फिर तुम्हे बताने आती हुँ
इन नज्मो मे,इन बातो मे,अधरो की इन मुस्कानो मे
इक दिन ऐसा आता है,जब सब बेहतर हो जाता है
हाँ..देर से माना होता है,पर सेहर का आना होता है
कुछ और नही है पास मेरे,बस लफ्ज़ है और कुछ नज्में है
तो इन दोनो ही से अपने दिल को हल्का कर लेती हुँ
लिखने की हिम्मत ना हो,तो लिखा हुआ पढ लेती हुँ
वो तेरी हुँ या मेरी हुँ या उनकी हुँ जो चले गये
इन नज्मो की उम्मीदो ने ही मुझे बचाया है बरसो
कोई रब्त पुराना है इनसे,क्या खुब निभाया है बरसो
इन नज्मो के है कर्ज कई,लिखने वालो के फर्ज कई
तो फर्ज निभाने की खातिर और कर्ज चुकाने की खातिर
उम्मीद तुम्हे दे कर के इन नज्मो को पूरा करती हुँ
शब कितनी भी गहरी हो,मै चाँद को ढ़ूढा करती हुँ
और जब तक सूरज ना निकले,उस चाँद से बाते करती हुँ
इन नज्मो मे,इन बातो मे,अधरो की इन मुस्कानो मे
उम्मीद वही से लाती हुँ?
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