Poetry Details:-
Mohabbat Usey Bhi Hai…मोहब्बत उसे भी है...-इस पोस्ट में कुछ कविताये है जो कि Kirti Chauhan के द्वारा लिखी एवंं प्रस्तुत की गयी है।
झूठ है के उसे याद हुँ मै
इस बहाने से ही आजाद हुँ मै
रिवायत है कि अपने जख्म सबको गहरे लगते है
मुझको सुनने वाले आज मुझ ही को बहरे लगते है
जो मोहब्बत पर विश्वास के किस्से सुनाते है वो
मोहब्बत जानती है उस पे शक के कितने पहरे लगते है
क्या सुनाये.? क्या सुनाये..?हाल सुनाये, ख्याल सुनाये,या सुनाये हालात तुम्हे
खुद को ठीक बताये,अच्छा बताये,बुरा बताये या बताये,जज्बात तुम्हे
दिन को रात बताये,रात को दिन बताये,वो साथ नही अब ये बताये
अब इससे ज्यादा और क्या बताये
छोड़ जाने की वजह बताये,या साथ के उसको कज़ा बताये
जेहन मे छपे वो दाग बताये,या..अब इससे खुलकर क्या बताये
उस पर लिखी वो नज्म सुनाये,या उसकी झूठी कसम गिनाये
उससे सीखा तुम्हे बताये,आओ बात घुमाना तुम्हे सिखाये
जान था वो तुम्हे ये बताये,या जिस्म पर उसका नाम दिखाये
काफी है या और सुनाये या आखो से अब आँसू गिराये
खुद को गिरा कर रिशता बचा रहे थे हम
मोहब्बत उसे भी है,खुद को बता रहे थे हम
लौट आयेगा वापस तो लिपट कर रोयेगे दोनो
खुद से फरेब बाखुबी निभा रहे थे
खास जरूरत नही थी उसको मेरी
फिर भी बिन बुलाये ही वापस जा रहे थे हम
उसका जिक्र हुआ तो किस्सा सुना रहे थे हम
उस किस्से मे भी उन्हे अपना बता रहे थे हम
वक्त रहते खुद को आईना दिखा रहे थे हम
कागज पर नाम लिख उनका खुद ही मिटा रहे थे हम
उसे मेरी तरह लफ्जो मे प्यार जताना नही आता
मै रूठ जाऊ अगर तो उसे मनाना नही आता
छुपाता बहुत कुछ है उसे बताना नही आता
सालो बाद भी उसे तारीखे भुलाना नही आता
तंग बहुत करता है मगर उसे सताना नही आता
डाँट भले ही दे मगर उसे रुलाना नही आता
उसके पास रहती हुँ तो शहजादी सी रखता है
बदतमीजी तो दूर उसे ‘तू’ कह बुलाना नही आता
साथ रहने के सौदे मे खुशियाँ दांव पर लगी थी
पर फैसला तो ये किया था कि खुशी मिले या गम
हम संभाल लेंगे
जब बाते बिगड़ेगी और राते रोज झगड़ेगी
जब खुन्नस सर पर छाई होगी और तुम्हे पता है कि अब लड़ाई होगी
हम संभाल लेंगे
जब उसका मेल ईगो आड़े आने लगेगा और मेरा एटीटियुड थोड़ा ज्याद भाव खाने लगेगा
हम संभाल लेंगे
तो अब आया वो मोड़ जब रिशतो के इस सौदे मे उसे मुनाफा कम लगने लगा
और उसने बस कह दिया कि अब बात मत करना मुझसे
और फिर बात हुई ही नही,ना कभी उसने जिद की और ना कभी मैने पहल की
तो मैने भी इक टूटे दिल वाले आशिक की तरह,दिल को समझाना शुरु कर दिया
वो क्या है ना कि तस्सलियाँ महफूज़ रखती है इरादे
क्योकि नाकाम होना किसको मंजूर है
तो एक समय आया जब तस्सलियाँ साथ छोड़ने लगी थी
और यादे वापस मोड़ने लगी थी,जब उसे शिकायते कम थी और उसकी परवाह ज्यादा
जब वो गलत थोड़ा कम था और मेरा पिघलता सा मन था,जब आँसुओ के पास बहाना था
और मुझे बस वापस जाना था,तब सवालो की दिवारो के बीच कैद पाती थी मै खुद को
चाहती थी कि इक बार इन दीवारो को गिरा कर वो मुझसे पूछे कि “ठीक हो तुम?”
और मै बदले मे ना कह दूं,पर जैसे ही मै खुद को रोता हुआ पाती तो वो सवाल भी
मेरे ख्याल की तरह सवालो की दीवारो के नीचे दब जाते
बात कहाँ बिगड़ी?ये सवाल नही महज,इक बहस का मुद्दा था
जिस पर रोज घंटो मेरा दिल और दिमाग लंबी बहस करते थे
और थक जाते तो कहते शायद तब साथ रहने के सौदे मे खुशिया दांव पर लगायी थी