Poetry Details:-
रोज खाली हाथ जब घर लौट कर जाता हुँ मै-इस पोस्ट मे कुछ नज्मे और शायरियाँ पेश की गयी है जो कि Rajesh Reddy जी के द्वारा लिखी और प्रस्तुत की गयी है।
रोज खाली हाथ जब घर लौट कर जाता हुँ मै
मुस्कुरा देते है बच्चे,और मर जाता हुँ मै
युं देखिये तो आंधी में बस एक सजर गया
लेकिन ना जाने कितने परिंदो का घर गया
जैसे गलत पते पे चला आये कोई शख्स
सुख ऐसे मेरे दर पे रुका,और गुजर गया
मै ही सबब था अब के भी अपनी शिकस्त का
इल्जाम अब के बार भी किस्मत के सर गया
युं देखिये तो आंधी में बस एक सजर गया
लेकिन ना जाने कितने परिंदो का घर गया
किसी दिन जिंदगानी में करिशमा क्यो नही होता
मै हर दिन जाग तो जाता हुँ,जिंदा क्यो नही होता
मेरी इक जिंदगी के कितने हिस्सेदार है लेकिन
किसी की जिंदगी में मेरा हिस्सा क्यो नही होता
किसी दिन जिंदगानी में करिशमा क्यो नही होता
मै हर दिन जाग तो जाता हुँ,जिंदा क्यो नही होता
देखना चाहू जो खुद को कम से कम इतना तो हो
आईने मे गर नही मै ,कोई मुझ जैसा तो हो
बादलो मे हर किसी के वास्ते है कोई बूँद
शर्त ये है,उतनी शिद्दत से कोई प्यासा तो हो
देखना चाहू जो खुद को कम से कम इतना तो हो
आईने मे गर नही मै ,कोई मुझ जैसा तो हो
खजाना कौन सा उस पार होगा
वहा भी रेत का अंबार होगा
ये सारे शहर मे दहशत सी क्युं है?
यकीनन कल कोई त्यौहार होगा
खजाना कौन सा उस पार होगा
वहा भी रेत का अंबार होगा
जाने कितनी उडान बाकि है
इस परिंदे मे जान बाकि है
जितनी बँटनी थी,बँट चुकी ये जमीं
अब तो बस आसमान बाकि है
जाने कितनी उडान बाकि है
अब वो दुनिया अजीब लगती है
जिसमे अमनो अमान बाकि है
जाने कितनी उडान बाकि है
इम्तिहां से गुजर के क्या देखा
इक नया इम्तिहान बाकि है
जाने कितनी उडान बाकि है
सर कलम होंगे कल यहाँ उनके
जिनके मुँह में जुबान बाकि है
जाने कितनी उडान बाकि है
इस परिंदे मे जान बाकि है
यहा हर शख्स हर पल हादसा होने से डरता है
खिलौना है जो मिट्टी का फना होने से डरता है
मेरे दिल के किसी कोने मे इक मासूम सा बच्चा
बड़ो की देख कर दुनिया बडा होने से डरता है
खिलौना है जो मिट्टी का फना होने से डरता है
ना बस मे जिंदगी इसके,ना काबू मौत पर इसका
मगर इंसान फिर भी कब खुदा होने से डरता है
खिलौना है जो मिट्टी का फना होने से डरता है
यहा हर शख्स हर पल हादसा होने से डरता है
अजब ये जिंदगी की कैद है,दुनिया का हर इंसा
रिहाई माँगता है और रिहा होने से डरता है
खिलौना है जो मिट्टी का फना होने से डरता है
रंग मौसम का हरा था पहले
पेड़ ये कितना घना था पहले
मैने तो बाद में तोड़ा था उसे
आईना मुझ पे आईना मुझ पे हँसा था पहले
रंग मौसम का हरा था पहले
जो नया है वो पुराना होगा
जो पुराना है नया था पहले
रंग मौसम का हरा था पहले
बाद मे मैने बुलंदी को छुआ
अपनी नजरो से गिरा था पहले